यात्री-स्पाइसजेट स्टाफ के बीच बहस,VIDEO: दो दिन फ्लाइट कैंसिल होने पर हंगामा; बीमार बच्ची को इलाज के लिए ले जा रहे थे परिजन - khajuraho News

खजुराहो एयरपोर्ट पर यात्री और स्पाइस जेट के कर्मचारी के बीच हुई बहस का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। यह वीडियो 18 मई और 19 मई का है। जिसमें स्पाइस जेट की दिल्ली की उड़ान पहले 18 मई और दूसरी बार 19 मई में को तय समय से 20 मिनट पहले कैंसिल कर द. एयरपोर्ट पर मौजूद एक पैसेंजर मुकेश त्रिपाठी ने दावा भी किया कि दिल्ली की फ्लाइट कैंसिल होने से किडनी पेशेंट बच्ची की मां दो दिन तक परेशान होती रही। पीड़ित की मां और भाई खजुराहो एयरपोर्ट पर स्पाइस जेट के कर्मचारी से जबलपुर से फ्लाइट करने की रिक्वेस्ट कर रहे हैं, लेकिन उनकी तरफ से कोई व्यवस्था नहीं की जाती है।वीडियो वायरल कर रहे हैं मुकेश राज त्रिपाठी जो छतरपुर निवासी है, उनका कहना है कि स्पाइसजेट के कर्मचारियों का रवैया बेहद ही शर्मनाक था, एक तरफ बच्ची की मां और उसका भाई स्पाइसजेट कर्मचारियों से गिड़गिड़ा रहे थे और दूसरी तरफ कर्मचारी उनकी एक नहीं सुन रहे थे।बच्ची किडनी की पेशेंट थी और उसका डायलिसिस होना था और लगातार दो दिन तक फ्लाइट कैंसिल होने की वजह से परिवार बेहद परेशान हो रहा था। उन्होंने स्पाइस जेट कर्मचारियों से विनती की थी कि उनकी दिल्ली जाने की व्यवस्था की जाए और इसके लिए वह अतिरिक्त शुल्क भी देने को तैयार थे, लेकिन स्पाइसजेट कर्मचारियों ने उनकी एक न सुनी।साथ ही कहा कि आपको जहां शिकायत करनी है जो करना है आप कर सकते है, हम लोग सिर्फ आपका पैसा वापस कर सकते हैं। इसके सिवा कोई और मदद नहीं कर सकते है। युवक ने स्पाइसजेट पर कई आरोप भी लगाए है और उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी इस मामले पर गौर फरमाने की बात कही है। इस संबंध में स्पाइसजेट के अधिकारियों से संपर्क करना चाहा पर बात नहीं हो सकी।

May 22, 2024 09:47 UTC


आजमगढ़ में गुड्डू जमाली के कारण दिलचस्प हुआ मुकाबला, दांव पर लगी सपा-भाजपा की प्रतिष्ठा; पढ़ें Ground Report

इस समय हम आजमगढ़ जिले के सरायमीर में हैं। सरायमीर को दुनिया जानती है। अंडरवर्ल्ड डॉन अबु सलेम का गांव इसी इलाके में है। स्थानीय बाजार में यादव डेयरी के ठीक पास जोया चाइल्ड केयर है। यही चुनावी केमेस्ट्री है आजमगढ़ जिले की।आजमगढ़... यहां का सरताज बनने के लिए एक ही केमिस्ट्री काम करती है और वह है- एमवाई यानी मुस्लिम और यादव की जुगलबंदी। आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं। इस संसदीय क्षेत्र के लिए अब तक हुए 20 चुनावों पर नजर डालें तो 17 बार इसी समीकरण से सांसद चुने गए। 2022 उपचुनाव के दो प्रतिद्वंद्वी दिनेश लाल यादव निरहुआ और धर्मेंद्र यादव इस बार फिर आमने सामने हैं, लेकिन गुड्डू जमाली के साइकिल पर सवार होने से थोड़ा समीकरण बदले हैं। बदले परिदृश्य पर वाराणसी के संपादकीय प्रभारी भारतीय बसंत कुमार की रिपोर्ट...यादव डेयरी-जोया केयर की केमेस्ट्री ही यहां चुनाव के केंद्र में है। उपचुनाव में इस केमेस्ट्री में हुआ बदलाव तो कमल खिल गया। कारण बने गुड्डू जमाली। जमाली बसपा से उम्मीदवार बने और मुसलमानों के वोट बैंक में सेंध लगाकर सपा की राह में कांटा बिछा दिया।समाजवादी पार्टी ने चुनाव से ठीक पहले गुड्डू को ही एमएलसी बनाकर राह का कांटा साफ कर लिया। आजमगढ़ में यादव और मुसलमान वोटरों की संख्या जीत के दरवाजे तक सीधे ले जाती है। इस लोकसभा सीट पर यादव करीब 25 प्रतिशत हैं और मुसलमान 13 प्रतिशत।एमवाई के इस गढ़ में यही वोट यहां का आजम बना देते हैं। वैसे, दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ से पहले रमाकांत यादव यहां कमल खिला चुके हैं। मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव दोनों को आजमगढ़ सीट ने संसद पहुंचने का मौका दिया।मुलायम परिवार के धर्मेंद्र उपचुनाव की हार के बाद फिर से इस बार मैदान में हैं। 2009 के परिसीमन के बाद अब आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र में आजमगढ़ सदर, गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, मेंहनगर विधानसभा क्षेत्र हैं। इन सभी पांच विधानसभा क्षेत्र से सपा के ही विधायक हैं।योगी-मोदी की लहर के बावजूद 2022 के विधानसभा चुनाव में जिले की सभी दस सीटें सपा के खाते में चले जाने का आधार भी ऊपर की केमेस्ट्री ही है। जिले में दो लोकसभा क्षेत्र हैं-एक आजमगढ़ और दूसरा लालगंज।दस विधायकों में चार यादव और दो मुसलमान हैं। 2022 के लोकसभा उपचुनाव में अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को हराने वाले निरहुआ के साथ आजमगढ़ के विकास का साथ है। आजमगढ़ की यूनिवर्सिटी, संगीत महाविद्यालय, यहां का नया हवाई अड्डा और पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का जुड़ाव भी गिनाने को कम नहीं है।पर विरोधी कहते हैं कि हवाईअड्डे की उड़ान में हौसला नहीं है। धर्मेंद्र-दिनेश की सीधी लड़ाई चतुर्दिक दिख रही है। बसपा ने यहां से तीसरी बार प्रत्याशी बदलते हुए फिर मुस्लिम प्रत्याशी मशहूद अहमद को मैदान में उतारा, लेकिन लड़ाई साइकिल और कमल में सीधी तनी है।विकास खंड मिर्जापुर की ग्राम पंचायत बीनापारा के प्रधान मोहम्मद असलम स्पष्ट कहते हैं कि मुस्लिम मतों को लेकर कोई संशय नहीं है। तय है कि जो भाजपा को हराएगा, मुसलमान उसके पक्ष में वोट करेगा। बसपा के होने का कोई कन्फ्यूजन इस बार नहीं है।उन्होंने आगे कहा- यह सच है कि मैं प्रधान हूं और मेरी भी पंचायत में योगी-मोदी सरकार की योजनाओं से मुसलमानों के घर भी रोशन हुए हैं। लेकिन वजीरे आजम नरेन्द्र मोदी, वजीरे आला योगी आदित्यनाथ और वजीरे दाखिला (गृह मंत्री) अमित शाह के बयान से मुसलमानों की बावस्तगी टूट जाती है।मंजीरपट्टी मस्जिद के पास बसे वसीम अहमद मानते हैं कि अब वह दौर मिट चुका जब सरकारें मुस्लिम वोट की मोहताज होती थीं। कम से कम लोकसभा चुनाव में ऐसी स्थिति नहीं है। राशन अगर फ्री नहीं होता तो क्रांति आ जाती।मंदिर-मस्जिद से ज्यादा भाजपा के पक्ष में राशन का समर्थन है। रोजगार एक बड़ा मुद्दा है। यहां रोजगार रहता तो विदेश में यहां की आबादी नहीं बसती। मैं खुद विदेश गया हूं। भारतीय मुसलमान बहुत मजबूरी में मुस्लिम देश में रह रहे हैं। इस माटी जैसा हक यहां के मुसलमानों को कहीं नहीं मिलने वाला। वसीम बताते हैं कि तीन तलाक कोई मसला नहीं है। यह भ्रम पालिटिकल हो सकता है।शेखपुरा निवासी जितेंद्र यादव विकास को अपने चश्मे से देखते हैं। कहते हैं, अब हवाईअड्डा का नाम लोग कम ले रहे हैं। 19 सीटर प्लेन में रोज 19 सीटें भी नहीं भर पाती हैं। श्री दुर्गाजी महाविद्यालय चंडेश्वर के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डा. प्रवेश कुमार सिंह कहते हैं कि जाति और अल्पसंख्यक मत ही इस बार भी चुनावी गणित का गुणा-भाग है। फर्क यह है कि निरहुआ ने लड़ाई ठीक-ठाक ठान दी है। पहली बार मुलायम परिवार के उम्मीदवार गली-गली घूम रहे हैं।डीएवी पीजी कालेज की प्रोफेसर डा. गीता सिंह कहती हैं कि यहां की जनता प्रसन्न है पर वोट के समय जाति हावी हो जाती है। महिला की कोई जाति नहीं है। वह अपने परिवार के पुरुषों की जातिगत निष्ठा ही जीती है।जूही शुक्ला, श्री अग्रसेन महिला महाविद्यालय की प्राचार्य हैं। कहती हैं कि योगी राज में सुरक्षा की निश्चिंतता बड़ा फैक्टर है। डा. पूनम तिवारी एनजीओ चलाती हैं। गांव से शहर तक सघन संपर्क में चुनावी ताप महसूस करती हैं। पूनम मानती हैं कि टफ है इस बार का चुनाव। कोई खुद से आश्वस्त नहीं हो सकता।2009 में पहली बार आजमगढ़ में खिला था कमलवर्ष 2009 में परिसीमन में आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र का भूगोल बदल गया। इसके साथ ही इस संसदीय क्षेत्र का सियासी समीकरण भी बदल गया। 2009 में भाजपा के रमाकांत यादव जीत दर्जकर पहली बार इस सीट पर कमल खिलाने में कामयाब हुए। मोदी लहर के बीच हुए 2014 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव चुनावी दंगल में उतरे।उन्हें बीजेपी के रमाकांत यादव के मुकाबले में 60 हजार वोटों से जीत मिली। 2019 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव बसपा से गठबंधन कर अपने पिता की सीट बरकरार रखने में कामयाब हुए। 2022 के लोकसभा उप चुनाव में बीजेपी के दिनेश लाल यादव निरहुआ ने अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को हराकर क

May 22, 2024 07:37 UTC


परचून की दुकान से भी कम सिनेमा हॉल की कमाई, सिंगल स्‍क्रीन थ‍िएटर में 10-12 लोग देख रहे फिल्‍में!

धूल खा रहे स‍िंंगल स्‍क्रीन थ‍िएटरआज भी बड़ी स्‍क्रीन पर लोगों को फ‍िल्‍में देखना पसंदऔर क्‍या हैं चुनौत‍ियां? सिंगल स्‍क्रीन सिनेमा हॉल अपने अंत‍िम दिन गिन रहे हैं। उनकी कमाई देखकर तो यही लगता है। उन्‍हें 'हाउस फुल' का बोर्ड लगाए जमाने गुजर गए हैं। हर गुजरते साल के साथ सन्‍नाटा बढ़ता जा रहा है। परचून की दुकानों की दुकानदारी भी इन हॉल की रोजाना कमाई से ज्‍यादा है। मालिक थिएटर बंद रखना पसंद कर रहे हैं। कारण है खुलने पर वे रोजाना लगभग 4,000 कमाते हैं। वहीं, बिजली, रखरखाव और अन्य परिचालन लागतों पर खर्च लगभग 7,000 रुपये आता है। इस तरह यह पूरी तरह नुकसान का सौदा बन गया है। तेलंगाना में तो नौबत यह आ गई है कि कई सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों ने अगले 10 दिनों तक बंद रहने का फैसला किया है।ये वही थिएटर हैं जहां दर्शक अतीत में फिल्मों के रिलीज होने का इंतजार देखते थे। थ‍िएटर में झूमते हुए ताली और सीटी बजाते थे। नाचते थे। यहां तक कि स्क्रीन पर सिक्के भी फेंकते थे। इन सिंगल-स्क्रीन सिनेमाघरों में पहले दिन पहले शो का माहौल यह संकेत दे सकता था कि फिल्‍म ब्लॉकबस्टर होगी या नहीं। कई बार टिकट खरीदने के लिए कतार में इंतजार कर रही भीड़ को एडजस्‍ट करने के लिए 1,000 सीटें भी काफी नहीं होती थीं। टिकट काउंटर पर 'हाउसफुल' का साइन लगा होता था। इसकी छोटी कांच की खिड़की बंद हो जाती थी। इससे दलालों से टिकट खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता था। वो टिकटों की ब्लैक मार्केटिंग करते थे। लेकिन, अब सबकुछ बदल गया है।इन सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों में अब केवल अंधेरे और धूल भरे गलियारे बचे हैं। सिनेमाघरों में पुरानी कुर्सियां, फटे पोस्टर और जीर्ण-शीर्ण छतों से आती रोशनी की किरणें हैं। पूरे देश में यही स्थिति है। भारतीय सिंगल स्क्रीन सिनेमा इस स्थिति में कैसे पहुंच गए?घरों में टेलीविजन की लोकप्रियता बढ़ने के बाद से सिंगल स्क्रीन सिनेमा को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। सैटेलाइट टीवी ने लोगों को दुनियाभर की फिल्में और शो देखने में सक्षम बनाया। ऐसे में उन्हें मनोरंजन के लिए स्थानीय सिनेमा में जाने की जरूरत महसूस नहीं हुई। फिर वीसीआर (वीडियो कैसेट रिकॉर्डर) आया। वीसीआर एक कॉम्पैक्ट और हल्का उपकरण था। इसका आकार 15 इंच के लैपटॉप के बराबर था। वीसीआर में वीडियो टेप का इस्तेमाल किया जाता था। यह घटना आज के OTT (ओवर-द-टॉप) प्लेटफॉर्म क्रांति जैसी थी।आज ओटीटी प्लेटफॉर्म और मल्टीप्लेक्स ने सिंगल स्क्रीन सिनेमा को काफी प्रभावित किया है। इससे उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है। हर साल खुलने वाले 200 नए मल्टीप्लेक्स के कारण लगभग 150 सिंगल स्क्रीन सिनेमा बंद हो जाते हैं। महामारी ने मल्टीप्लेक्स को भी प्रभावित किया है। इससे ओटीटी प्लेटफॉर्म की लोकप्रियता में बढ़ोतरी हुई है।हालांकि, BookMyShow के एक हालिया सर्वे के अनुसार, 90% भारतीय अभी भी बड़ी स्क्रीन पर फिल्में देखना पसंद करते हैं। ऐसे में थिएटरों में फिर से उछाल देखने को मिल रहा है। लेकिन, यह उछाल मुख्य रूप से मल्टीप्लेक्स में देखा जा रहा है। कोई भी व्यक्ति खराब रखरखाव वाले सिंगल-स्क्रीन थिएटर में फिल्म क्यों देखना पसंद करेगा, जहां खाने-पीने के सीमित विकल्प हों और फिल्‍म से पहले या बाद में बॉलिंग या शॉपिंग जैसे मनोरंजन के विकल्प न हों?क्या आपने कभी सोचा है कि इन सिंगल स्क्रीन थिएटरों का रखरखाव ठीक से क्यों नहीं किया जाता? ऐसा मुश्किल हो गया है। सबसे पहले मुंबई जैसे शहर में नीतियों पर चर्चा करें, जो भारत के फिल्म उद्योग का दिल और आत्मा है। इस क्षेत्र में सिंगल-स्क्रीन सिनेमा का पुनर्निर्माण करना काफी चुनौतीपूर्ण है। यह 1992 के एक नियम के कारण है जो महाराष्ट्र में सिनेमाघरों को पूर्ण परिवर्तन से गुजरने से रोकता है। ऐसे में वे इसे वाणिज्यिक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स या गोदाम में बदलने में असमर्थ हैं, क्योंकि पुनर्विकास का एक हिस्सा मौजूदा सिनेमा के कम से कम एक तिहाई बैठने की क्षमता वाले सिनेमा हॉल के लिए आवंटित किया जाना चाहिए।सिंगल स्क्रीन सिनेमा के नवीनीकरण में कोई बुराई नहीं है। लेकिन, मालिक जोखिम लेने से हिचकिचाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि मनोरंजन के बंडल विकल्पों के साथ नवीनीकृत सिंगल स्क्रीन सिनेमा होने से ऐसी फिल्में हासिल करने की मूलभूत व्यावसायिक समस्या हल नहीं होगी जो बड़े दर्शकों को आकर्षित करेंगी। मल्टीप्लेक्स कई स्क्रीन पर लोकप्रिय फिल्मों के साथ कम लोकप्रिय फिल्‍में भी दिखा सकते हैं। हालांकि, सिंगल स्क्रीन सिनेमा मालिकों को ऐसी फिल्में चुननी होती हैं जो बॉक्स ऑफिस पर हिट हों और अच्छी खासी कमाई कराएं। हालांकि, ऐसी ब्लॉकबस्टर फिल्‍मों को पूरे साल चलाना संभव नहीं है।निर्माता और फिल्म वितरक अपनी फिल्मों को मल्टीप्लेक्स में चलाना पसंद करते हैं। उन्हें ऐसा करने में अधिक सहजता महसूस होती है। मल्टीप्लेक्स में वे अपनी फिल्मों के लिए प्राइम टाइम शो सुरक्षित कर सकते हैं, भले ही ग्राहक आधार बड़ा न हो, जबकि सिंगल स्क्रीन वाले केवल ब्लॉकबस्टर फिल्मों के लिए प्राइम टाइम आवंटित करते हैं।मुंबई में सिंगल स्क्रीन मालिकों को एक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जिसे वे टाल नहीं सकते। वह है क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों की स्क्रीनिंग। राज्य सरकार का लक्ष्य इन फिल्मों को बढ़ावा देना है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनका सार बरकरार रहे और समय के साथ कम न हो। ऐसे में सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों सहित सिनेमाघरों को हर साल 44 मराठी फिल्में दिखानी पड़ती हैं। महाराष्ट्र के अन्य शहरों के लिए यह आवश्यकता और भी अधिक है। यह सिंगल स्क्रीन थिएटरों के लिए एक बड़ी वित्तीय चुनौती है। कारण है कि उन्हें एयर-कंडीशनिंग, कर्मचारियों के वेतन, करों और अन्य खर्चों के लिए ऊंची लागत वहन करनी पड़ती है, जबकि उनकी वार्षिक आय 5,00,000 रुपये से कम हो गई है।इस स्थिति में सिंगल स्क्रीन सिनेमा के पास केवल एक ही विकल्प बचता है। वे अन्य मल्टीप्लेक्स के साथ अधिग्रहण सौदा करने का विकल्

May 22, 2024 04:22 UTC


Tags
Finance      African Press Release      Lifestyle       Hiring       Health-care       Online test prep Corona       Crypto      Vpn      Taimienphi.vn      App Review      Company Review      Game Review      Travel      Technology     
  

Loading...

                           
/* -------------------------- overlay advertisemnt -------------------------- */