परचून की दुकान से भी कम सिनेमा हॉल की कमाई, सिंगल स्‍क्रीन थ‍िएटर में 10-12 लोग देख रहे फिल्‍में! - News Summed Up

परचून की दुकान से भी कम सिनेमा हॉल की कमाई, सिंगल स्‍क्रीन थ‍िएटर में 10-12 लोग देख रहे फिल्‍में!


धूल खा रहे स‍िंंगल स्‍क्रीन थ‍िएटरआज भी बड़ी स्‍क्रीन पर लोगों को फ‍िल्‍में देखना पसंदऔर क्‍या हैं चुनौत‍ियां? सिंगल स्‍क्रीन सिनेमा हॉल अपने अंत‍िम दिन गिन रहे हैं। उनकी कमाई देखकर तो यही लगता है। उन्‍हें 'हाउस फुल' का बोर्ड लगाए जमाने गुजर गए हैं। हर गुजरते साल के साथ सन्‍नाटा बढ़ता जा रहा है। परचून की दुकानों की दुकानदारी भी इन हॉल की रोजाना कमाई से ज्‍यादा है। मालिक थिएटर बंद रखना पसंद कर रहे हैं। कारण है खुलने पर वे रोजाना लगभग 4,000 कमाते हैं। वहीं, बिजली, रखरखाव और अन्य परिचालन लागतों पर खर्च लगभग 7,000 रुपये आता है। इस तरह यह पूरी तरह नुकसान का सौदा बन गया है। तेलंगाना में तो नौबत यह आ गई है कि कई सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों ने अगले 10 दिनों तक बंद रहने का फैसला किया है।ये वही थिएटर हैं जहां दर्शक अतीत में फिल्मों के रिलीज होने का इंतजार देखते थे। थ‍िएटर में झूमते हुए ताली और सीटी बजाते थे। नाचते थे। यहां तक कि स्क्रीन पर सिक्के भी फेंकते थे। इन सिंगल-स्क्रीन सिनेमाघरों में पहले दिन पहले शो का माहौल यह संकेत दे सकता था कि फिल्‍म ब्लॉकबस्टर होगी या नहीं। कई बार टिकट खरीदने के लिए कतार में इंतजार कर रही भीड़ को एडजस्‍ट करने के लिए 1,000 सीटें भी काफी नहीं होती थीं। टिकट काउंटर पर 'हाउसफुल' का साइन लगा होता था। इसकी छोटी कांच की खिड़की बंद हो जाती थी। इससे दलालों से टिकट खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता था। वो टिकटों की ब्लैक मार्केटिंग करते थे। लेकिन, अब सबकुछ बदल गया है।इन सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों में अब केवल अंधेरे और धूल भरे गलियारे बचे हैं। सिनेमाघरों में पुरानी कुर्सियां, फटे पोस्टर और जीर्ण-शीर्ण छतों से आती रोशनी की किरणें हैं। पूरे देश में यही स्थिति है। भारतीय सिंगल स्क्रीन सिनेमा इस स्थिति में कैसे पहुंच गए?घरों में टेलीविजन की लोकप्रियता बढ़ने के बाद से सिंगल स्क्रीन सिनेमा को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। सैटेलाइट टीवी ने लोगों को दुनियाभर की फिल्में और शो देखने में सक्षम बनाया। ऐसे में उन्हें मनोरंजन के लिए स्थानीय सिनेमा में जाने की जरूरत महसूस नहीं हुई। फिर वीसीआर (वीडियो कैसेट रिकॉर्डर) आया। वीसीआर एक कॉम्पैक्ट और हल्का उपकरण था। इसका आकार 15 इंच के लैपटॉप के बराबर था। वीसीआर में वीडियो टेप का इस्तेमाल किया जाता था। यह घटना आज के OTT (ओवर-द-टॉप) प्लेटफॉर्म क्रांति जैसी थी।आज ओटीटी प्लेटफॉर्म और मल्टीप्लेक्स ने सिंगल स्क्रीन सिनेमा को काफी प्रभावित किया है। इससे उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है। हर साल खुलने वाले 200 नए मल्टीप्लेक्स के कारण लगभग 150 सिंगल स्क्रीन सिनेमा बंद हो जाते हैं। महामारी ने मल्टीप्लेक्स को भी प्रभावित किया है। इससे ओटीटी प्लेटफॉर्म की लोकप्रियता में बढ़ोतरी हुई है।हालांकि, BookMyShow के एक हालिया सर्वे के अनुसार, 90% भारतीय अभी भी बड़ी स्क्रीन पर फिल्में देखना पसंद करते हैं। ऐसे में थिएटरों में फिर से उछाल देखने को मिल रहा है। लेकिन, यह उछाल मुख्य रूप से मल्टीप्लेक्स में देखा जा रहा है। कोई भी व्यक्ति खराब रखरखाव वाले सिंगल-स्क्रीन थिएटर में फिल्म क्यों देखना पसंद करेगा, जहां खाने-पीने के सीमित विकल्प हों और फिल्‍म से पहले या बाद में बॉलिंग या शॉपिंग जैसे मनोरंजन के विकल्प न हों?क्या आपने कभी सोचा है कि इन सिंगल स्क्रीन थिएटरों का रखरखाव ठीक से क्यों नहीं किया जाता? ऐसा मुश्किल हो गया है। सबसे पहले मुंबई जैसे शहर में नीतियों पर चर्चा करें, जो भारत के फिल्म उद्योग का दिल और आत्मा है। इस क्षेत्र में सिंगल-स्क्रीन सिनेमा का पुनर्निर्माण करना काफी चुनौतीपूर्ण है। यह 1992 के एक नियम के कारण है जो महाराष्ट्र में सिनेमाघरों को पूर्ण परिवर्तन से गुजरने से रोकता है। ऐसे में वे इसे वाणिज्यिक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स या गोदाम में बदलने में असमर्थ हैं, क्योंकि पुनर्विकास का एक हिस्सा मौजूदा सिनेमा के कम से कम एक तिहाई बैठने की क्षमता वाले सिनेमा हॉल के लिए आवंटित किया जाना चाहिए।सिंगल स्क्रीन सिनेमा के नवीनीकरण में कोई बुराई नहीं है। लेकिन, मालिक जोखिम लेने से हिचकिचाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि मनोरंजन के बंडल विकल्पों के साथ नवीनीकृत सिंगल स्क्रीन सिनेमा होने से ऐसी फिल्में हासिल करने की मूलभूत व्यावसायिक समस्या हल नहीं होगी जो बड़े दर्शकों को आकर्षित करेंगी। मल्टीप्लेक्स कई स्क्रीन पर लोकप्रिय फिल्मों के साथ कम लोकप्रिय फिल्‍में भी दिखा सकते हैं। हालांकि, सिंगल स्क्रीन सिनेमा मालिकों को ऐसी फिल्में चुननी होती हैं जो बॉक्स ऑफिस पर हिट हों और अच्छी खासी कमाई कराएं। हालांकि, ऐसी ब्लॉकबस्टर फिल्‍मों को पूरे साल चलाना संभव नहीं है।निर्माता और फिल्म वितरक अपनी फिल्मों को मल्टीप्लेक्स में चलाना पसंद करते हैं। उन्हें ऐसा करने में अधिक सहजता महसूस होती है। मल्टीप्लेक्स में वे अपनी फिल्मों के लिए प्राइम टाइम शो सुरक्षित कर सकते हैं, भले ही ग्राहक आधार बड़ा न हो, जबकि सिंगल स्क्रीन वाले केवल ब्लॉकबस्टर फिल्मों के लिए प्राइम टाइम आवंटित करते हैं।मुंबई में सिंगल स्क्रीन मालिकों को एक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जिसे वे टाल नहीं सकते। वह है क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों की स्क्रीनिंग। राज्य सरकार का लक्ष्य इन फिल्मों को बढ़ावा देना है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनका सार बरकरार रहे और समय के साथ कम न हो। ऐसे में सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों सहित सिनेमाघरों को हर साल 44 मराठी फिल्में दिखानी पड़ती हैं। महाराष्ट्र के अन्य शहरों के लिए यह आवश्यकता और भी अधिक है। यह सिंगल स्क्रीन थिएटरों के लिए एक बड़ी वित्तीय चुनौती है। कारण है कि उन्हें एयर-कंडीशनिंग, कर्मचारियों के वेतन, करों और अन्य खर्चों के लिए ऊंची लागत वहन करनी पड़ती है, जबकि उनकी वार्षिक आय 5,00,000 रुपये से कम हो गई है।इस स्थिति में सिंगल स्क्रीन सिनेमा के पास केवल एक ही विकल्प बचता है। वे अन्य मल्टीप्लेक्स के साथ अधिग्रहण सौदा करने का विकल्


Source: Navbharat Times May 22, 2024 04:22 UTC



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