आजमगढ़ में गुड्डू जमाली के कारण दिलचस्प हुआ मुकाबला, दांव पर लगी सपा-भाजपा की प्रतिष्ठा; पढ़ें Ground Report - News Summed Up

आजमगढ़ में गुड्डू जमाली के कारण दिलचस्प हुआ मुकाबला, दांव पर लगी सपा-भाजपा की प्रतिष्ठा; पढ़ें Ground Report


इस समय हम आजमगढ़ जिले के सरायमीर में हैं। सरायमीर को दुनिया जानती है। अंडरवर्ल्ड डॉन अबु सलेम का गांव इसी इलाके में है। स्थानीय बाजार में यादव डेयरी के ठीक पास जोया चाइल्ड केयर है। यही चुनावी केमेस्ट्री है आजमगढ़ जिले की।आजमगढ़... यहां का सरताज बनने के लिए एक ही केमिस्ट्री काम करती है और वह है- एमवाई यानी मुस्लिम और यादव की जुगलबंदी। आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं। इस संसदीय क्षेत्र के लिए अब तक हुए 20 चुनावों पर नजर डालें तो 17 बार इसी समीकरण से सांसद चुने गए। 2022 उपचुनाव के दो प्रतिद्वंद्वी दिनेश लाल यादव निरहुआ और धर्मेंद्र यादव इस बार फिर आमने सामने हैं, लेकिन गुड्डू जमाली के साइकिल पर सवार होने से थोड़ा समीकरण बदले हैं। बदले परिदृश्य पर वाराणसी के संपादकीय प्रभारी भारतीय बसंत कुमार की रिपोर्ट...यादव डेयरी-जोया केयर की केमेस्ट्री ही यहां चुनाव के केंद्र में है। उपचुनाव में इस केमेस्ट्री में हुआ बदलाव तो कमल खिल गया। कारण बने गुड्डू जमाली। जमाली बसपा से उम्मीदवार बने और मुसलमानों के वोट बैंक में सेंध लगाकर सपा की राह में कांटा बिछा दिया।समाजवादी पार्टी ने चुनाव से ठीक पहले गुड्डू को ही एमएलसी बनाकर राह का कांटा साफ कर लिया। आजमगढ़ में यादव और मुसलमान वोटरों की संख्या जीत के दरवाजे तक सीधे ले जाती है। इस लोकसभा सीट पर यादव करीब 25 प्रतिशत हैं और मुसलमान 13 प्रतिशत।एमवाई के इस गढ़ में यही वोट यहां का आजम बना देते हैं। वैसे, दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ से पहले रमाकांत यादव यहां कमल खिला चुके हैं। मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव दोनों को आजमगढ़ सीट ने संसद पहुंचने का मौका दिया।मुलायम परिवार के धर्मेंद्र उपचुनाव की हार के बाद फिर से इस बार मैदान में हैं। 2009 के परिसीमन के बाद अब आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र में आजमगढ़ सदर, गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, मेंहनगर विधानसभा क्षेत्र हैं। इन सभी पांच विधानसभा क्षेत्र से सपा के ही विधायक हैं।योगी-मोदी की लहर के बावजूद 2022 के विधानसभा चुनाव में जिले की सभी दस सीटें सपा के खाते में चले जाने का आधार भी ऊपर की केमेस्ट्री ही है। जिले में दो लोकसभा क्षेत्र हैं-एक आजमगढ़ और दूसरा लालगंज।दस विधायकों में चार यादव और दो मुसलमान हैं। 2022 के लोकसभा उपचुनाव में अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को हराने वाले निरहुआ के साथ आजमगढ़ के विकास का साथ है। आजमगढ़ की यूनिवर्सिटी, संगीत महाविद्यालय, यहां का नया हवाई अड्डा और पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का जुड़ाव भी गिनाने को कम नहीं है।पर विरोधी कहते हैं कि हवाईअड्डे की उड़ान में हौसला नहीं है। धर्मेंद्र-दिनेश की सीधी लड़ाई चतुर्दिक दिख रही है। बसपा ने यहां से तीसरी बार प्रत्याशी बदलते हुए फिर मुस्लिम प्रत्याशी मशहूद अहमद को मैदान में उतारा, लेकिन लड़ाई साइकिल और कमल में सीधी तनी है।विकास खंड मिर्जापुर की ग्राम पंचायत बीनापारा के प्रधान मोहम्मद असलम स्पष्ट कहते हैं कि मुस्लिम मतों को लेकर कोई संशय नहीं है। तय है कि जो भाजपा को हराएगा, मुसलमान उसके पक्ष में वोट करेगा। बसपा के होने का कोई कन्फ्यूजन इस बार नहीं है।उन्होंने आगे कहा- यह सच है कि मैं प्रधान हूं और मेरी भी पंचायत में योगी-मोदी सरकार की योजनाओं से मुसलमानों के घर भी रोशन हुए हैं। लेकिन वजीरे आजम नरेन्द्र मोदी, वजीरे आला योगी आदित्यनाथ और वजीरे दाखिला (गृह मंत्री) अमित शाह के बयान से मुसलमानों की बावस्तगी टूट जाती है।मंजीरपट्टी मस्जिद के पास बसे वसीम अहमद मानते हैं कि अब वह दौर मिट चुका जब सरकारें मुस्लिम वोट की मोहताज होती थीं। कम से कम लोकसभा चुनाव में ऐसी स्थिति नहीं है। राशन अगर फ्री नहीं होता तो क्रांति आ जाती।मंदिर-मस्जिद से ज्यादा भाजपा के पक्ष में राशन का समर्थन है। रोजगार एक बड़ा मुद्दा है। यहां रोजगार रहता तो विदेश में यहां की आबादी नहीं बसती। मैं खुद विदेश गया हूं। भारतीय मुसलमान बहुत मजबूरी में मुस्लिम देश में रह रहे हैं। इस माटी जैसा हक यहां के मुसलमानों को कहीं नहीं मिलने वाला। वसीम बताते हैं कि तीन तलाक कोई मसला नहीं है। यह भ्रम पालिटिकल हो सकता है।शेखपुरा निवासी जितेंद्र यादव विकास को अपने चश्मे से देखते हैं। कहते हैं, अब हवाईअड्डा का नाम लोग कम ले रहे हैं। 19 सीटर प्लेन में रोज 19 सीटें भी नहीं भर पाती हैं। श्री दुर्गाजी महाविद्यालय चंडेश्वर के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डा. प्रवेश कुमार सिंह कहते हैं कि जाति और अल्पसंख्यक मत ही इस बार भी चुनावी गणित का गुणा-भाग है। फर्क यह है कि निरहुआ ने लड़ाई ठीक-ठाक ठान दी है। पहली बार मुलायम परिवार के उम्मीदवार गली-गली घूम रहे हैं।डीएवी पीजी कालेज की प्रोफेसर डा. गीता सिंह कहती हैं कि यहां की जनता प्रसन्न है पर वोट के समय जाति हावी हो जाती है। महिला की कोई जाति नहीं है। वह अपने परिवार के पुरुषों की जातिगत निष्ठा ही जीती है।जूही शुक्ला, श्री अग्रसेन महिला महाविद्यालय की प्राचार्य हैं। कहती हैं कि योगी राज में सुरक्षा की निश्चिंतता बड़ा फैक्टर है। डा. पूनम तिवारी एनजीओ चलाती हैं। गांव से शहर तक सघन संपर्क में चुनावी ताप महसूस करती हैं। पूनम मानती हैं कि टफ है इस बार का चुनाव। कोई खुद से आश्वस्त नहीं हो सकता।2009 में पहली बार आजमगढ़ में खिला था कमलवर्ष 2009 में परिसीमन में आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र का भूगोल बदल गया। इसके साथ ही इस संसदीय क्षेत्र का सियासी समीकरण भी बदल गया। 2009 में भाजपा के रमाकांत यादव जीत दर्जकर पहली बार इस सीट पर कमल खिलाने में कामयाब हुए। मोदी लहर के बीच हुए 2014 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव चुनावी दंगल में उतरे।उन्हें बीजेपी के रमाकांत यादव के मुकाबले में 60 हजार वोटों से जीत मिली। 2019 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव बसपा से गठबंधन कर अपने पिता की सीट बरकरार रखने में कामयाब हुए। 2022 के लोकसभा उप चुनाव में बीजेपी के दिनेश लाल यादव निरहुआ ने अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को हराकर क


Source: Dainik Jagran May 22, 2024 07:37 UTC



Loading...
Loading...
  

Loading...