आटा गूंथने और मवेशियों के लिए चारा जुटाने के बीच गुड्डी देवी कन्नौजिया के चेहरे पर तब मुस्कान तैर जाती है जब वह यह बताती हैं कि अब उन्हें नाश्ता बनाने के लिए तड़के नहीं उठना पड़ता। स्कूल जाने वाली अपनी 2 बेटियों के लिए नाश्ता और लंच बॉक्स तैयार करने के लिए उन्हें तड़के उठना पड़ता था क्योंकि उन्हें मिट्टी के चूल्हे पर काम करना पड़ता था।अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाली 36 साल की गुड़ियां यूपी की उन 10 महिलाओं में थीं, जिन्हें अप्रैल 2016 में पीएम मोदी के हाथों गैस चूल्हा, रेग्युलेटर और एक एलपीजी सिलेंडर पाने के लिए चुना गया था।बलिया और गाजीपुर, गोरखपुर, बांसगांव और घोसी जैसी आस-पास की सीटों पर एसपी-बीएसपी गठबंधन और बीजेपी के बीच तगड़ी लड़ाई देखी जा रही है। गठबंधन के दलित-मुस्लिम-यादव के मजबूत समीकरण और बीजेपी द्वारा नए उम्मीदवार को मैदान में उतारने की वजह से बलिया में कांटे की टक्कर है। हालांकि कई का मानना है कि उज्ज्वला, उजाला और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी केंद्र की स्कीम पूर्वांचल की कुछ सीटों पर निर्णायक भूमिका निभा सकती है।हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के संवाददाता ने बलिया के सरैया और डुमरी गांव में ओबीसी और एसटी समुदाय की एक-एक महिलाओं से बात की। उन्होंने बताया कि उज्ज्वला ने उनके समय, पैसे और उनकी ऊर्जा की बचत की है क्योंकि पहले उन्हें गोबर के उपले बनाने पड़ते थे और जंगल से सूखी लकड़ियां बीननी पड़ती थी।
Source: Navbharat Times May 17, 2019 04:08 UTC