बिहार के गया में 1980 में आरोपी ने की थी चचेरे भाई की हत्याDainik Bhaskar Jul 18, 2019, 10:46 AM ISTनई दिल्ली. अदालत के गलियाराें में अक्सर कहा जाता है- न्याय में देरी, अन्याय से कम नहीं। कुछ ऐसा ही बिहार के गया निवासी बनारस सिंह के साथ हुआ। 1980 में नाबालिग रहते मामूली कहासुनी पर उसने चचेरे भाई की हत्या कर दी। लेकिन, निचली अदालत और हाईकोर्ट ने उसे नाबालिग नहीं माना।39 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अब जाकर बनारस सिंह यह साबित कर पाया है कि घटना के वक्त वह नाबालिग था। हालांकि, यह जीत उसके लिए कोई मायने नहीं रखती, क्योंकि वह करीब 10 साल साल तक जेल में रह चुका है। यह नाबालिग हाेने की सूरत में सुनाई जाने वाली सजा से तीन गुना ज्यादा है।सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि वारदात के समय बनारस सिंह नाबालिग था। उसे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत अधिकतम तीन साल कैद की सजा देनी चाहिए। वह 10 साल जेल में बिता चुका है, ऐसे में उसे तुरंत रिहा करना चाहिए।1980 में गिरफ्तारी के बाद गया की जिला सत्र अदालत ने बनारस सिंह काे उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बनारस सिंह ने इसके खिलाफ पटना हाईकोर्ट में अपील की। उसकी दलील थी कि अपराध के वक्त उसकी उम्र 17 साल 6 महीने थी। उसे नाबालिग की तरह सजा दी जाए। हाईकोर्ट ने 1998 में उसकी अपील खारिज कर दी।पटना हाईकाेर्ट के फैसले के खिलाफ बनारस सिंह 2009 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। 10 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से जवाब मांगा। इसमें 10वीं के सर्टिफिकेट और बाकी रिकॉर्ड्स से साबित हो गया कि बनारस सिंह अपराध के समय 17 साल 6 महीने का था।
Source: Dainik Bhaskar July 18, 2019 02:37 UTC