पूर्व चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा ने फैसले को बीसीसीआई के संविधान का उल्लंघन बतायाबीसीसीआई के अफसरों ने मामले को हितों का टकराव और कमेटी के रिपोर्ट की अवमानना करार दियाDainik Bhaskar Jul 19, 2019, 08:57 PM ISTनई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कमेटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर्स (सीओए) ने शुक्रवार को कहा कि विदेशी दौरों पर पत्नियों और गर्लफ्रेंड्स के खिलाड़ियों के साथ जाने को लेकर कोच और कप्तान फैसला करें। इस फैसले पर पूर्व चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा ने आपत्ति जताई। उन्होंने इसे बीसीसीआई के संविधान का उल्लंघन बताया।जस्टिस लोढ़ा ने कहा कि अभी यहां पर एथिक्स ऑफिसर डी. जैन हैं। उन्हें इस पर निर्णय लेना चाहिए और ऐसे किसी भी कदम का विरोध किया जाना चाहिए जो लोढ़ा कमेटी द्वारा निर्मित नए संविधान के खिलाफ हो। उन्होंने कहा कि मैं क्या कह सकता हूं? एथिक्स ऑफिसर इसपर निर्णय लेने के लिए मौजूद हैं। सब कुछ लोढ़ा पैनल के प्रस्ताव में स्पष्ट दर्शाया गया है। हमारी सिफारिशें बीसीसीआई के संविधान के अनुरूप ही हैं। इस संबंध में जब कोई मुद्दा उठता है तो इसे सुलझाने के लिए एथिक्स ऑफिसर से बातचीत की जानी चाहिए।दो साल में कुछ नहीं हुआ: लोढ़ालोढ़ा ने सीओए द्वारा नए संविधान के लागू ना होने पर नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने कहा- सचमुच दो साल में कुछ भी नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृति मिलने के बाद हम इस संविधान को सही तरीके से लागू होते देखना चाहते थे। दो साल बीत गए, लेकिन इस दिशा में कुछ भी बेहतर नहीं हुआ। उनसे जब यह पूछा गया कि क्या सीओए के बनने के बाद इसे सुलझाने में मदद मिली। तो इसपर लोढ़ा ने कहा- यह व्याख्या और योग्यता का विषय है।मामला हितों के टकराव का है: अधिकारीबीसीसीआई के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा- विदेश दौरे पर अपनी पत्नी या गर्लफ्रेंड को साथ ले जाने के लिए कोच और कप्तान को निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है। इस तरह का मामला हितों के टकराव का है। उन्होंने कहा कि जब आप अपने लाभ के लिए फैसले लेते हैं तो यह हितों का टकराव होता है। लोढ़ा कमेटी की रिपोर्ट में हितों के टकराव से निपटने के लिए उपाय बताए गए हैं। बीसीसीआई के अधिकारी ने कहा कि कप्तान और कोच को अपनी पत्नी और प्रेमिकाओं को विदेश दौरे पर ले जाना स्पष्ट रूप से हितों का टकराव था।सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित नहीं हुआ: बीसीसीआईएक अन्य अधिकारी ने बताया कि सीओए द्वारा हाल ही में लिए गए कुछ फैसले से यह स्पष्ट होता है कि वे सुप्रीम कोर्ट से ऊपर है क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके द्वारा लिए गए कुछ निर्णय केवल सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए जा सकते हैं। हालांकि, अब यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि एथिक्स ऑफिसर जैन इस पूरे मामले से कैसे निपटते हैं क्योंकि सीओए के एक सदस्य ने खुद यह कहा है कि बैठक में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित नहीं किया गया था।
Source: Dainik Bhaskar July 19, 2019 15:22 UTC