लोकसभा चुनाव: बंगाल में हिंसा, बीजेपी प्रत्याशी और टीएमसी समर्थकों में झड़पXपश्चिम बंगाल: ममता vs मोदी की जंग में कौन भारी? Xचुनाव हमेशा जीतने के लिए लड़ा जाता है, यह बात कई मायनों में सच है लेकिन देश में कुछ लोग ऐसे भी हुए हैं जो चुनावी दंगल में हारने के लिए ही खड़े होते हैं। इन्हें 'धरती पकड़' के नाम से जाना जाता है। इनमें से कोई मनोरंजन के लिए तो कोई राष्ट्रवाद की भावना फैलाने के उद्देश्य से मैदान में होता है। यहां जानिए प्रमुख पांच 'धरती पकड़' के बारे मेंबरेली के रहनेवाले थे। वार्ड पार्षद से लेकर राष्ट्रपति तक का चुनाव लड़ा। जवाहर लाल नेहरू ने विधानसभा टिकट देने की पेशकश की थी, लेकिन काका ने मना कर दिया। जमानत राशि जब्त होने पर वह कहते कि यह देश के फंड में उनका योगदान है।भागलपुर के रहनेवाले हैं। इन्होंने लगभग हर राज्य से चुनाव लड़ा हुआ। इसबार दिल्ली और पटना से लड़ रहे हैं। नामांकन में अपने साथ गधों को ले जाते थे। कहते कि यह दिखाता है कि नेता कैसे लोगों को मूर्ख बनाते हैं।तमिलनाडु का यह शख्स इलेक्शन किंग के नाम से मशहूर है। पद्मराजन अपने नाम गिनेस रेकॉर्ड दर्ज कराना चाहते हैं और वह भी सबसे ज्यादा चुनाव हारने वाले प्रत्याशी के तौर पर। इसबार धर्मपुरी सीट से चुनावी मैदान में।ओडिशा के रहनेवाले हैं। पीवी नरमिम्हा राव, बीजू पटनायक, नवीन पटनायक के खिलाफ लड़े चुनाव। इसबार सुबुधी ने बरहामपुर और अस्का सीट ने नामांकन भरा है।'अडिग' वारणसी के रहनेवाले हैं। यहीं से वह पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। भगवान राम की तरह ड्रेस पहनकर नामांकन करने पहुंचे थे।दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। यह कहावत पश्चिम बंगाल की सियासत में चरितार्थ होती नजर आ रही है। लोकसभा चुनाव में बंगाल में बीजेपी सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस को कड़ी टक्कर देती दिख रही है और उम्मीद है कि उसके वोट शेयर में बड़ा उछाल आ सकता है। बदलते राजनीतिक परिदृश्य में बीजेपी को एक अस्वाभाविक सहयोगी मिला है। जी हां, बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ( सीपीएम ) काडर जमीनी स्तर पर चुपचाप बीजेपी की मदद कर रहा है। इसकी वजह टीएमसी चीफ और राज्य की सीएम ममता बनर्जी हैं।बंगाल में बीजेपी के पास उत्तर भारत समेत अन्य राज्यों जैसे मजबूत संगठन का अभाव है। इस वजह से जमीनी स्तर पर टीएमसी और यहां तक कि प्रभावहीन हो चुकी कांग्रेस और लेफ्ट के मुकाबले पार्टी कमजोर है। पार्टी के चुनावी प्रबंधकों ने माना है कि वे दूसरे अप्रत्याशित लोगों से समर्थन पर निर्भर हैं। इनमें कहीं न कहीं ग्राउंड लेवल पर सीपीएम वर्कर्स भी शामिल हैं। ये जमीनी कार्यकर्ता सत्ताधारी पार्टी के कथित उत्पीड़न और बढ़ती ताकत को टक्कर देने के लिए ममता के खिलाफ हैं, भले ही इसके लिए उन्हें भगवा खेमे से हाथ मिलाना पड़ रहा है।34 साल तक लेफ्ट के शासन के बाद अब टीएमसी के बढ़ते हमलों से परेशान सीपीएम वर्कर्स बूथ और वॉर्ड लेवल पर बूथ मैनेजमेंट में बीजेपी की मदद कर रहे हैं। यहां तक कि जिन वॉर्डों में लेफ्ट की थोड़ी भी पकड़ है वहां सीपीएम काडर चुपचाप बीजेपी के लिए प्रचार कर रहा है। मिसाल के तौर पर कोलकाता उत्तर संसदीय क्षेत्र में 1862 पोलिंग बूथ हैं। बीजेपी को उम्मीद है कि इस बार उसके पास सिटिंग टीएमसी एमपी सुदीप बंदोपाध्याय को हराने का मौका है लेकिन उसके कार्यकर्ताओं की पहुंच केवल 500 बूथों तक है। ऐसा बताया जाता है कि सीपीएम वर्कर्स ने बीजेपी को मदद की पेशकश की है और बीजेपी उनसे सहायता ले रही है।बीजेपी के चुनावी प्रबंधक कुछ इलाकों में डोर टू डोर कैंपेन के लिए उनके साथ सावधानी से लगातार बैठकें कर रहे हैं। नारेबाजी और शोर के बगैर यह अंदरूनी खेल चल रहा है। दोनों पक्षों के बीच एक अलिखित समझौता यह भी है कि मतदान के दिन जिन बूथों पर बीजेपी के एजेंट न हों वहां सीपीएम के कार्यकर्ता निगरानी रखें। बंदोपाध्याय के खिलाफ बीजेपी ने राहुल सिन्हा को उतारा है।यह कोई इकलौता मामला नहीं है जिसे वरिष्ठ बीजेपी पदाधिकारी मान रहे हैं। इसी तरह का अनुभव बीजेपी को पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा में हुआ था, जब उसने माणिक सरकार के नेतृत्व वाली लेफ्ट की सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया था। बंगाल में जमीनी स्तर पर चल रही उठापटक के बारे में माणिक सरकार ने साफ इशारा किया है। मंगलवार को बंगाल में पार्टी के पक्ष में प्रचार करते हुए सीपीएम पोलित ब्यूरो के सदस्य ने कहा, 'खुद को तृणमूल कांग्रेस से बचाने के लिए बीजेपी को चुनने की गलती मत करें। त्रिपुरा में देखिए। सिर्फ 14 महीनों के दौरान उन्होंने त्रिपुरा में जो किया वह टीएमसी के आतंक से बहुत आगे है। उन्हें न्योता मत दीजिए। यह एक भयंकर भूल होगी। यह एक आत्मघाती फैसला होगा।'बीजेपी को सीपीएम काडर से मिल रहे सहयोग को भांपते हुए ममता ने पार्टी कार्यकर्ताओं को सावधान रहने को कहा है। अपनी रैलियों में वह कहती रहती हैं, 'सीपीएम कार्यकर्ता ऐसा फिर कर रहे हैं। उनसे सावधान रहें, वे हमारे शत्रुओं की मदद कर रहे हैं। सतर्क और होशियार रहिए।'हालांकि बंगाल में बदल रहा सियासी घटनाक्रम सीपीएम के लिए अच्छी खबर नहीं है। अपने किले में पहले से हाशिए पर चल रही पार्टी के सामने अपने छोटे से वोट शेयर को भी खोने का खतरा बढ़ता दिख रहा है। अपने कैंडिडेट के बजाए कई बीजेपी उम्मीदवारों को उसका काडर मदद पहुंचा रहा है। सीपीएम कार्यकर्ताओं ने एक दिलचस्प नारा ईजाद किया है- उन्नीसै हाफ, इक्कीसै साफ (2019 में आधा और 2021 में साफ)। इसके जरिए 2021 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी को सत्ता से बाहर करने का इशारा है।
Source: Navbharat Times May 09, 2019 03:45 UTC