मुस्लिम पक्ष का कहना- 1994 के फैसले ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला प्रभावित कियाहिंदू पक्ष का कहना है- 1994 के फैसले को फिर विचार के लिए भेजकर मुस्लिम पक्ष जमीन विवाद पर फैसला टालना चाहताDanik Bhaskar Sep 27, 2018, 10:06 AM ISTनई दिल्ली. मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट इस पर आज फैसला सुना सकता है। कोर्ट बताएगा कि यह मामला संविधान पीठ को रेफर किया जाए या नहीं। तीन जजों की बेंच ने इस मुद्दे पर 20 जुलाई को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट में आज व्यभिचार मामले में भी अहम फैसला किया जा सकता है। कोर्ट तय करेगा कि इसमें महिला को भी दोषी माना जाए या नहीं? माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर सीधे अयोध्या के जमीन विवाद मामले पर पड़ सकता है। दरअसल, 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है और इसके लिए मस्जिद अहम नहीं है। तब कोर्ट ने कहा था कि सरकार अगर चाहे तो जिस हिस्से पर मस्जिद है उसे अपने कब्जे में ले सकती है।जमीन विवाद से पहले यह मामला निपटाना जरूरी : मुस्लिम पक्ष का कहना है कि उस वक्त कोर्ट का फैसला उनके साथ अन्याय था और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जमीन बंटवारे के 2010 के फैसले को प्रभावित करने में इसका बड़ा किरदार था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट का जमीन बंटवारे के मुख्य मामले में किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस मामले को निपटाना चाहिए।हाईकोर्ट ने जमीन तीन हिस्सों में बांटने का दिया था फैसला : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या की 2.7 एकड़ विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था- एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए। दूसरे हिस्से का मालिकाना हक निर्मोही अखाड़े को मिले और तीसरा हिस्सा रामलला विराजमान का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्ष को मिले।व्यभिचार मामले में भी आज आ सकता है फैसला : सुप्रीम कोर्ट आज एक और अहम मामले में फैसला सुना सकता है। इसमें तय होगा कि व्यभिचार में महिला भी बराबर की दोषी है या नहीं? पांच जजों की संविधान पीठ ने 9 अगस्त को व्यभिचार की 157 साल पुरानी आईपीसी की धारा 497 पर फैसला सुरक्षित रखा था। इस धारा में सिर्फ पुरुषों को आरोपी बनाया जाता है।केंद्र की दलील- भारतीय कानून को विदेशी समाज के नजरिए से न देखें : सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से एडीशन सॉलिसिटर जनरल पिंकी आंनद ने कहा था कि हमें कानून को अपने समाज में हो रहे विकास और बदलाव के नजरिए से देखना चाहिए न कि पश्चिमी समाज के नजरिए से। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि विवाहित महिला अगर किसी विवाहित पुरुष से संबंध बनाती है तो सिर्फ पुरुष ही दोषी क्यों हो? जबकि महिला भी अपराध की जिम्मेदार है।
Source: Dainik Bhaskar September 27, 2018 02:21 UTC