उत्तर प्रदेश के बरेली की महिमा शाह लकवा की शिकार हैं। वह न खड़ी हो सकती हैं, न चल-फिर सकती हैं, न खा सकती हैं और किताब के पन्ने तक भी पलट नहीं सकती हैं। महिमा तीन साल की उम्र तक बोल भी नहीं पाती थी। जब वह पढ़ती थीं तो उनकी मां स्मिता शाह उनकी मदद करती थीं। मां पास बैठकर किताब के पन्नों को पलटती थी। महिला को 12वीं क्लास के एग्जाम में 79.2 फीसदी मार्क्स हासिल हुए हैं। वह बताती हैं कि एग्जाम से ठीक कुछ दिन पहले उनको बड़े झटके का सामना करना पड़ा था। उन्होंने बताया, 'मेरे परिवार ने मेरी कॉपी लिखने के लिए तीन लोगों का नाम फाइनल किया था लेकिन जिस दिन फिजिक्स का एग्जाम था, उससे एक दिन पहले रात में सभी ने इनकार कर दिया। मैं रात भर रोती रही। फिर दूसरे लिखने वाली की मदद ली गई। लेकिन वह विज्ञान में कमजोर था जिससे उसे वैज्ञानिक शब्दों को समझने में दिक्कत होती थी।' महिमा के पिता शैलेंद्र शाह इंडियन वेटरिनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट में टेक्निकल ऑफिसर हैं। वह जानवरों के व्यवहार में दक्षता रखने वाली पशुचिकित्सक बनना चाहती हैं।
Source: Navbharat Times May 03, 2019 05:13 UTC