2018 में मिली हस्तलिपि (दाएं) और वह कंटेनर जिसमें हस्तलिपि मिली है (बाएं)भगवान बदरी के भक्त थे बदरुद्दीनउत्तराखंड के चार धामों में से एक बदरीनाथ में जब शाम के वक्त आरती होती है तो नजारा देखते ही बनता है। हालांकि, इस साल वहां की हवा में आरती के मंत्रों के साथ एक सवाल भी गूंज रहा है कि 'पवन मंद सुगंध शीतल' आरती असल में लिखी किसने है। इस आरती को 100 से भी ज्यादा साल हो चुके हैं लेकिन हाल ही में भारतीय जनता पार्टी सरकार ने इसके रचयिता का ऐलान कर नई बहस छेड़ दी है।दरअसल, सरकार का कहना है कि एक स्थानीय लेखक धान सिंह बर्थवाल ने यह आरती लिखी है जबकि सालों से यह मान्यता चली रही है कि चमोली में नंदप्रयाग के एक पोस्टमास्टर फखरुद्दीन सिद्दीकी ने 1860 के दशक में यह आरती लिखी थी। सिद्दीकी भगवान बदरी के भक्त थे और लोग बाद में उन्हें 'बदरुद्दीन' बुलाने लगे थे।धान सिंह के परपोते महेंद्र सिंह बर्थवाल हाल ही में प्रशासन के पास आरती की हस्तलिपि के साथ पहुंचे। कार्बन डेटिंग टेस्ट के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ऐलान किया कि यह हस्तलिपि 1881 की है, जब यह आरती चलन में आई थी। बदरुद्दीन का परिवार ऐसा कोई सबूत दे नहीं सका, इसलिए बर्थवाल परिवार के दावों को सच मान लिया गया है।हालांकि, 1889 में प्रकाशित एक किताब में यह आरती है और बदरुद्दीन के रिश्तेदार को इसका संरक्षक बताया गया है। यह किताब अल्मोड़ा के एक संग्रहालय में रखी है। उसके मालिक जुगल किशोर पेठशाली का कहना है, 'अल-मुश्तहर मुंसी नसीरुद्दीन को किताब का संरक्षक बताया गया है जो हिंदू धर्म शास्त्र स्कंद पुराण का अनुवाद है और इसके आखिरी पन्ने में आरती लिखी है।'विशेषज्ञों ने लेखक का पता करने के लिए राज्य सरकार के किताब को नजरअंदाज करने और सिर्फ कार्बन डेटिंग पर विश्वास करने पर सवाल उठाया है। आईआईटी रुड़की के असोसिएट प्रफेसर एएस मौर्या ने कहा है कि कार्बन डेटिंग से सटीक साल का पता नहीं लगता है। उनका कहना है कि असली उम्र डेटिंग टेस्ट में मिले नतीजों से 80 साल आगे पीछे हो सकती है। यह साफतौर पर नहीं कहा जा सकता कि बर्थवाल हस्तलिपि 1881 में ही लिखी गई थी। दूसरी ओर, कार्बन डेटिंग करने वाले उत्तराखंड स्पेस ऐप्लिकेशन सेंटर के निदेशक एमपीएस बिश्ट का दावा है कि टेस्ट के नतीजे एकदम सटीक हैं।हालांकि, हर कोई इस बात को मानने को तैयार नहीं है। पुजारी पंडित विनय कृष्णा रावत का कहना है कि उनके दादा बदरुद्दीन को जानते थे। उन्होंने दावा किया है कि बदरुद्दीन ने उनके दादा को बताया था कि आरती उन्होंने लिखी है। पंडित कृष्णा बताते हैं, 'मेरे दादा अकसर बताते थे कि कैसे रुद्राक्ष पहनने वाला मुस्लिम आदमी बदरीनाथ मंदिर की सीढ़ियों पर भक्ति में डूबकर बैठा देखा जा सकता था।' बदरी-केदार मंदिर समिति का भी कहना है कि कई साल से मान्यता यही है कि बदरुद्दीन ने आरती को लिखा है। बर्थवाल परिवार का दावा है कि उन्हें 2018 में आरती की हस्तलिपि घर के तहखाने में मिली।बदरुद्दीन के वंशजों को इस बात का दुख है कि परिवार की विरासत को उनसे छीना जा रहा है। उनके परपोते अयाजुद्दीन ने कहा, 'वह भगवान बदरीनाथ के भक्त थे, इसलिए परिवार ने उनके विश्वास को जीवित रखा है।' हर साल होने वाली रामलीला में अयाज लंका के राजा रावण के बेटे मेघनाद की भूमिका निभाते हैं। उनके चाचा संस्कृत में श्लोक पढ़ते हैं। घर को दिवाली और ईद दोनों पर सजाया जाता है।
Source: Navbharat Times June 15, 2019 03:12 UTC