Vishvas News Analysis: 2025 में मिस-इन्फॉर्मेशन और गंभीर वित्तीय नुकसान का जरिया बना #Deepfake - News Summed Up

Vishvas News Analysis: 2025 में मिस-इन्फॉर्मेशन और गंभीर वित्तीय नुकसान का जरिया बना #Deepfake


नई दिल्ली (अभिषेक पराशर)। वर्ष 2025 में दुनिया के सामने मिस-इन्फॉर्मेशन और डिस-इन्फॉर्मेशन की चुनौतियां केवल बरकरार ही नहीं रहीं, बल्कि सिंथेटिक मीडिया (डीपफेक) ने इन्‍हें एक राजनीतिक-वित्तीय संकट के रूप में तब्दील कर दिया। विश्व आर्थिक मंच (WEF) की ‘ग्लोबल रिस्क्स रिपोर्ट, 2025′ में मिस-इन्फॉर्मेशन को शॉर्ट टर्म (दो वर्ष) के लिए शीर्ष वैश्विक जोखिम के रूप में पहले पायदान पर रखा गया, वहीं दूसरी ओर भारत में इसका असर राष्ट्रीय सुरक्षा, लोकतांत्रिक प्रक्रिया और आम नागरिकों की जेब पर साफ दिखा।2025 में भारतीय और वैश्विक परिदृश्य में AI और डीपफेक तकनीक का उपयोग सूचना युद्ध के एक सशक्त हथियार के रूप में उभरा। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और वैश्विक स्तर पर इजरायल-ईरान संघर्ष जैसी बड़ी भू-राजनीतिक घटनाओं से लेकर महाकुंभ जैसे आयोजन तक, हर जगह डीपफेक वीडियो और ऑडियो का इस्तेमाल प्रोपेगेंडा फैलाने का प्रमुख जरिया बना। इसके साथ ही, डीपफेक फ्रॉड देश की साइबर सुरक्षा के सामने एक अभूतपूर्व चुनौती पेश कर रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 तक अकेले भारत को इसकी वजह से 70,000 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान है।राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि फेक या फॉल्स न्यूज से संबंधित मामलों में 2023 में 27% की बढ़ोतरी हुई। ऐसे में, यह विश्लेषण बताता है कि AI के नियमन के लिए वैश्विक शिखर सम्मेलनों (जैसे पेरिस AI एक्शन समिट) के बावजूद, फेक न्यूज और डीपफेक का बढ़ता दायरा कितनी बड़ी और जटिल चुनौती पेश कर रहा है।लोकतांत्रिक प्रक्रिया में दखल! पिछले वर्ष की तरह ही 2025 में भी डीपफेक का दायरा केवल राजनीतिक क्षेत्र और राजनीतिक दुष्प्रचार के मामलों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और मनोरंजन जगत भी इसके दायरे में शामिल रहे। एआई से संबंधित मुख्य तीन तरह के ट्रेंड्स नजर आए, जिनमें राजनीतिक दुष्प्रचार के लिए डीपफेक ऑडियो और वीडियो का इस्तेमाल के साथ फाइनेंशियल मिस-इन्फॉर्मेशन (साइबर फ्रॉड समेत) और हेल्थ मिस-इन्फॉर्मेशन शामिल हैं।2025 चुनावों का वर्ष रहा। फरवरी में दिल्ली विधानसभा का चुनाव हुआ और फिर साल के अंत में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ। इसके अलावा उपराष्ट्रपति के चुनाव के साथ कई राज्यों में खाली हुई विधानसभा सीटों पर उपचुनाव भी हुए। हालांकि, चुनावी मिस-इन्फॉर्मेशन मुख्य रूप से दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावाें के दौरान ही देखने को मिला, जिसमें डीपफेक मल्टीमीडिया की भी प्रमुखता रही।बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी, जेडीयू नेताओं की रैली के वीडियो को एआई की मदद से मैनिपुलेट करते हुए उसमें ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ का नारा जोड़ा गया। इसके अलावा ईवीएम मैनिपुलेशन और चुनाव के नतीजों में छेड़छाड़ का मुद्दा भी मिस-इन्फॉर्मेशन के केंद्र में रहा।चुनावों के दौरान राजनीतिक दुष्प्रचार के लिए डीपफेक ऑडियो या वीडियो का इस्तेमाल हुआ। हालांकि, इनकी संख्या बहुत अधिक नहीं रही। वहीं, फाइनैंशियल मिस-इन्फॉर्मेशन की श्रेणी में मुख्य तौर पर असाधारण रिटर्न के आश्वासन के साथ, बड़े कॉरपोरेट लीडर्स की आवाज वाले सिंथेटिक ऑडियो का इस्तेमाल किया गया।वहीं, स्वास्थ्य संबंधी भ्रामक और गलत सूचनाओं की वजह से न केवल लोगों की सेहत प्रभावित होती है बल्कि अर्थव्यवस्था को भी व्यापक नुकसान होता है। भारत में एआई के जरिए डॉक्टर्स के चेहरे और आवाज का इस्तेमाल कर (डॉ. नरेश त्रेहन या डॉ. देवी शेट्टी के डीपफेक) कर गलत दवाओं के प्रभाव को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता है। साइबर सुरक्षा कंपनियों के मुताबिक ऐसे ‘मिरेकल क्योर’ (‘चमत्कारिक इलाज’) विज्ञापन की वजह से लोगों को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है।फेक/फॉल्स न्यूज पर क्या कहते हैं आंकड़े? Contribute to Vishwas News कॉरपोरेट और राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर सत्ता को हमेशा आइना दिखाने वाली फैक्ट चेक जर्नलिज्म सिर्फ और सिर्फ आपके सहयोग से संभव है। इस मुहिम में हमें आपके साथ और सहयोगी की जरूरत है। फर्जी और गुमराह करने वाली खबर के खिलाफ जारी इस लड़ाई में हमारी मदद करें और कृपया हमें आर्थिक सहयोग दें।टैग्स


Source: NDTV December 25, 2025 06:03 UTC



Loading...
Loading...
  

Loading...

                           
/* -------------------------- overlay advertisemnt -------------------------- */