अशोक कुमार आर्य : वो बचपन ही था जब परियों की कहानी मन को रोमांचित कर उठती थी। भूत-प्रेतों की कथाएं सुनने से डर लगता। युवा होते-होते पता चल जाता कि ये महज कहानियां हैं। विज्ञान ने तरक्की के साथ इस तरह की कल्पनाओं पर भी विराम लगाया। अब भला डॉक्टर ही भूत बाधा को मानने लगे तो दूसरों के लिए क्या कहेंगे। नौ साल की लंबी पढ़ाई के बाद किसी घटना को भूत-बाधा बता देना वाकई चिकित्सा की लंबी पढ़ाई पर सवाल खड़ा करने वाला है। दरअसल, बीते दिनों अस्पताल की इमरजेंसी में बिथरीचैनपुर से एक युवक आया। उसे चोट लगी हुई थी। स्टाफ ने उसका नाम, पता पूछा और चोट लगने का कारण। घरवालों ने बता दिया कि चुड़ैल ने पेड़ से गिरा दिया। स्टाफ ने उसके बताए अनुसार पुलिस को भेजी जाने वाली सूचना में भी यही लिख दिया। डॉक्टर साहब ने भी उसे देखे बिना वैसे ही आगे बढ़ा दिया।साहब को नहीं भेजते सूचनाएंमंडल के बड़े साहब हैं। लोगों की सेहत का ध्यान रखना और सरकारी योजनाओं को लागू कराने की जिम्मेदारी है। शासन के निर्देशों का पालन कराने के लिए भी साहब ही उत्तरदायी हैं। स्वभाव से काफी सीधे और बेहद कम बोलने वाले। किसी को डांटते भी हैं तो बहुत जोर से नहीं। तेज गुस्सा तो शायद उन्हें कभी आता ही नहीं। सकारात्मक और मृदु स्वभाव होने के बाद भी अधीनस्थ अधिकारी उन्हें महत्वपूर्ण सूचनाएं देना भूल जाते हैं। बीते दिनों जब देश में बड़े संक्रमण को लेकर अलर्ट आया तो उन्होंने अपने अधीनस्थ अफसरों को सचेत कर दिया। पड़ोसी देश की सीमा से सटे गांवों में कड़ी चौकसी करवा दी। शासन को रोजाना का पत्रचार व अन्य सूचनाएं दी जाने लगीं लेकिन कई बार उन्हें सूचनाएं ही नहीं दी गईं। उन्हें खुद फोन करके सूचनाएं लेनी पड़ीं। इस पर उन्होंने अधिकारियों को कसा, जिसके बाद व्यवस्थाएं पटरी पर आ सकीं।कहीं नजर न लग जाएं...बीते पांच सालों में यकीनन स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार हुआ। सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ी तो मरीजों का आंकड़ा भी बढ़ा। आसान उपकरण और आधुनिक मशीनें तो अस्पताल में आ गई, लेकिन मानव संसाधन आज तक पूरा नहीं हो सका। डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी लगातार बनी हुई है। जिला अस्पताल की बात करें तो शासन ने यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों के 43 पद दिए हैं, लेकिन सिर्फ 30 डॉक्टर ही यहां सेवाएं दे पा रहे हैं। कार्डियोलॉजिस्ट, चेस्ट फिजिशियन समेत तमाम विशेषज्ञों के पद खाली हैं। वही बाल रोग विशेषज्ञ भी एक मात्र बचे हैं। सिर्फ नेत्र विभाग ही मुकम्मल है, जहां चार पद के बावजूद पांच विशेषज्ञ डॉक्टर व्यवस्था बनाए हैं। सभी मोतियाबिंद के ऑपरेशन करने में एक्सपर्ट। कोई विशेषज्ञ एक दिन में बीस तो दूसरे तीस मरीजों की आंखों के ऑपरेशन तक कर देते हैं। इसलिए स्टाफ भी कहने लगा है, इस विभाग को नजर न लगे।जादूगर जैसे डॉक्टर साहबचमत्कारी तालाब से उठता धुआं, हर दरवाजे पर नया तिलिस्म। डरावनी आवाजें तो कही रंग-बिरंगी रोशनी का आभास। कही लटकते कंकाल तो वहीं सब पर नजर रखने वाली तीसरी आंख। कुछ दूरी पर हर गतिविधि से रूबरू होता ‘जादूगर’। निश्चित तौर पर यह किसी माया नगरी का सीन है, लेकिन अपने डॉक्टर साहब के चैबर में आने वाले हर शख्स को यह आभास अनायास हो जाता है। डॉक्टर साहब भी किसी जादूगर से कम नहीं। मरीजों का आधा मर्ज अपनी बातों से ठीक कर देते हैं। निराले अंदाज में गंभीर पलों को खुशनुमा बनाने का मंत्र भी उन्हें खूब आता है। घूमने और विरल चीजों को सहेजने के शौकीन हैं। जहां जाते हैं वहां के खास पलों को कैद कर लेते हैं। फिर जादुई पोटली से निकालकर उन्हें सजा देते हैं। स्टेशन रोड पर उनका अस्पताल विश्व के हैरतअंगेज कारनामों, खूबसूरत वादियों, जानकारी भरी घटनाओं की गवाही दे रहा है।Click here to enlarge imageClick here to enlarge imagePosted By: Ravi Mishraडाउनलोड करें जागरण एप और न्यूज़ जगत की सभी खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस
Source: Dainik Jagran February 19, 2020 03:22 UTC