खताआज क्यों सुनाई नहीं पड़ी मंदिर की घंटी, मस्जिद में अजाननहीं दिखाई पड़ती गलियों में हिंदू-मुस्लिम के नामोनिशांक्यो रुठा हुआ है आज खुदा, क्या गलती हुई इंसान सेअजीब बात है बेखौफ घूम रहे हैं जानवर परिंदें भी हमसेरोज सुबह नत मस्तक मंदिर में घंटी बजा चंदन माथे परकिया रोज सजदा तेरा मस्जिद में पांचों वक्त अजान होने परसमझे खता हुई हमसे जो भूला बैठे थे इंसानियत को हीदिखा दिया हमारी औकात आज लाकर अर्श से फर्श पर ही-अंतुल कुमार.............................................उपद्रवी की कब्र बनानालॉकडाउन में संगरोध होकरबैठे थे हम आपस में दूरी बनाकर सपरिवारतभी हमारे मन का हुआ अद्वितीय विस्तारएकोपद्धति अध्ययन करने कीइच्छा स्वतः जागृत हो आईएकनिष्ठा से सतत अध्ययन करऔर बार-बार पानी और साबुन से हाथ धोने परमेरे हाथ की लकीरें स्पष्ट होकरनव रचनाधर्मिता का नव संकल्प बनींपरिणामस्वरूप मैंने इस दौरानकर डालीं नए मुहावरों की खोजहाथ धो-धोकर उपद्रवी की कब्र बनानाहाथ धोए तो कोई उपद्रवी पास न आएबार-बार हाथ धो और उपद्रवी से पल्ला झाड़ो-आलोक सक्सेना.........................................................ऐ इंसान तू अपनी तरक्की पर बहुत इतरायाअब वक्त तेरे सजा पाने का आयातूने बेजुबान जानवरों को बहुत सतायाप्रकृति को भी तूने बहुत नुकसान पहुंचायाप्रकृति ने भी तुझे बहुत चेतायालेकिन तू मूर्ख इंसान समझ न पायाअब देख तेरी करनी का क्या फल आयाकोरोना महामारी ने कितना कोहराम मचायातूने सुधरने का हर मौका गंवायाऐ इंसान तू अपनी तरक्की पर बहुत इतरायाअब वक्त तेरे सजा पाने का आयाअब वक्त तेरे सजा पाने का आया-गर्व सिंघल.................................................घर से बाहर नहीं जाओगेअब भी नहीं संभले तो फिर संभल न पाओगेदेश का विनाश करोगे और मित्र खुद भी जाओगेअभी एक मौका है कुछ इस देश के लिए करने काकुछ नहीं कर सकते तो घर रहकर अहसान कर पाओगेभाग रहे है हो खुद ही जिंदगी से दूर तुम बार-बारअपनी परवाह नहीं तो क्या, अपने परिवार को नही बचाओगेदेखो देख रही है हर नन्ही निगाहें तुमको और बूढ़ी भीइनका ही सोच लो एक बार, फिर घर से बाहर नहीं जाओगे-अनुराग सिंह...........................................................................ये सन्नाटा...ये सन्नाटा मेरे शहर का लिबास नहींइसे तो मसरूफियत के रंगों का बड़ा चाव है'कफ़न' का खौफ है जिसने कदम को रोक रखाइसीलिए खामोशी की कतरनों में लिपटा पड़ा है- प्राची..........................................................दर्द-ए-देशकुछ तो होंगे वो लोग, जिनमें दर्द-ए-देश रहा होगाउस समय आखिर, ऐसा क्या हुआ होगाक्या हुआ था आखिर उस दिन ऐसाजब देश-विभाजन हुआ होगाकोई तो बताएं हमें आखिर, वो 'मंज़र' क्या हुआ होगाबातें थी शायद वो कुछ ऐसी, जिनमें गहरा कोई 'राज' छिपा होगाचाहते हैं हम जानना, तब की हवाओं का 'मिज़ाज' कैसा हुआ होगा-दिनेश गिरिराज.............................................आज मन नही लग रहाजिंदगी का ये सफर तुम्हारे बिना नहीं कट रहाकहने को तो हजारों की भीड़ है यहां पर तुम्हारी परछाई तक नहींहाथ पकड़ने वाले तो बहुत हैं पर तुम्हारी उंगली जैसी किसी हाथ में ताकत नहींशोर तो बहुत है यहां पर कानों को सिर्फ तुम्हारी खामोशी सुनने की आदत हैचल तो रहा है ये सफर पर आज जान गया हूं मैं कि तुम्हारे बिना जिंदगी सिर्फ एक आफत है-दीपांशु...............................................सब एकसाथइस शांत पहर मेंधरती गूंज रही हैसरहदों...सरहदों पार एक-सी हवाएंआज बेरोकटोक बह रही हैसुनसान हुई सड़कों परआजादी का लुत्फ पंछीघूम-खेल उठा रहे हैंखुली हवा में सांस लेवो नया पैगाम दे रहे हैंदुनिया की इस हलचल कोएक ठहराव दे रहे हैंकहीं भूख और लाचारीसर उठा रहीकहीं अनेक सांसेंतोड़ रही दम हैंतू रख धैर्य, घर में ठहरयही तेरी शक्ति हैदेश का शहर और गांव भीखड़ा आज एक संग है- अंजलि गंगवाल..................................सकारात्मक सोचकामकाज और भागदौड़ में, सपने सच करने की होड़ मेंरोज निकलते घर से हम, अपना भविष्य संवारनेअचानक आई ऐसी विपदा, जिंदगी को लगी थामनेमिलना-जुलना बंद हो गया, घर में इंसान कैद हो गयानहीं है कोई आम बीमारी, महामारी है खड़ी सामनेकुदरती नहीं ये इंसानी कहर हैसुनामी नहीं ये कोरोना जहर हैइसका केवल एक उपाय, सामाजिक दूरी बनाएंसमय बिता कर अपनों संग, जीत जाएंगे हम ये जंगहार जाएगा ये अंधेरा, फिर होगा मनचाहा सवेराआएगा वो पल दोबारा, होगा आज और कल हमारा-निखिल टंडन.......................................आसहर खिड़की बा पर्दा हैआखिर यह डर किसका हैकितना करुणामय दौर हैविनम्रता बड़ी घनघोर हैजीवन की आस हैशांति मगर उदास हैघर रहकर दिखाना हैकोरोना पर विजय पाना है-मोहम्मद राशिद......................................................आज फिर से आवाज आई हैभारत मां ने दुदंभी बजाई हैउठो जागो, फिर मुश्किल की घड़ी आई हैइक करोना नामक राक्षस सेसबकी जान पे बन आई हैकमर कसो भारत मां के वीरोंदेश ने आवाज लगाई हैघर में बंद हो जाओ सबइस वायरस को न नजर आओ अबतुम्हारी रक्षा के जो दूत हैं बाहरघर रहकर उनका हौसला बढ़ाओ तुमजब तुम बाहर नजर न आओगे उसकोधराशाही हो जाएगाकोरोना जल्द ही नष्ट ही जाएगादुनिया से हट जाएगा- इंदु अरोड़ा...............................................सिर्फ मानव रुका है, जीवन नहीं, प्रकृति नहींसुबह से कबूतर इस तरह उड़ रहे हैंजैसे मानवों ने पिंजरा बना रंखी धरा के किवाड़ खोले हैंबोल रहे हैं देख मानव कैद होना कैसा लगता हैगाड़ियां बंद हैं, तो चिड़ियाओं के चहकने की आवाज कानों में आ रही हैंगा रही हैं वो, हमारे घर परिवार उजाड़ने वाला आज अपना घर परिवार बचाने की भीख मांग रहा हैपेड़ झूम कर लहरा रहे हैंसुधर जा रे मानव, सुधर जाबाकी सबको ईश्वर बचा लेगा, तुझे बचाने इस बार तो स्वयं ईश्वर भी नहीं आएगा-वीरेंद्र मलिक.....................................................मिलकर कोरोना को हराना हैमिलकर कोरोना को हराना हैघर से हमें कहीं नहीं जाना हैहा
Source: Navbharat Times April 02, 2020 02:26 UTC