नईदुनिया प्रतिनिधि, अंबिकापुर : ब्रिटिश काल की प्रस्तावित चिरमिरी-बरवाडीह (अब अंबिकापुर-बरवाडीह) रेल लाइन की प्रासंगिकता समय के साथ कम हो गई है। झारखंड के बरवाडीह के बजाय उत्तर प्रदेश का रेणुकूट वर्तमान समय में यात्री और माल परिवहन के लिए ज्यादा लाभकारी है।अंबिकापुर-रेणुकूट रेल लाइन की लागत व दूरी भी बरवाडीह की तुलना में बेहद कम है। वर्तमान समय में संचालित कोयला खदानें और प्रस्तावित कोल ब्लॉक भी इसी रेल रुट पर है। इस प्रस्तवित रेल मार्ग का रेट आफ रिटर्न्स भी बरवाडीह की तुलना में अधिक है,इन्हीं कारणों से अंबिकापुर- बरवाडीह के बजाय अंबिकापुर -रेणुकूट रेल लाइन को ज्यादा उपयोगी माना जा रहा है। लंबे समय से इस रेल लाइन को पूर्ण करने की मांग की जा रही है। इस मांग को लेकर सर्वदलीय रेल संघर्ष समिति के बैनर तले पदयात्रा का भी आयोजन किया गया था।रेणुकूट से लेकर अंबिकापुर तक पदयात्रा कर उत्तर छत्तीसगढ़ के सर्वागीण विकास के लिए उक्त रेल लाइन की स्वीकृति देने की वकालत की गई थी।दरअसल चिरमिरी-बरवाडीह रेल लाइन का प्रस्ताव अंग्रेजों के समय का था।उस दौरान माल परिवहन के लिए इस लाइन को उपयुक्त माना गया था। चिरमिरी और रांची क्षेत्र के खदानों से उत्पादित कोयले के परिवहन के लिए इसे उपयुक्त माना गया था लेकिन आज के समय में परिस्थिति बदल चुकी है। बरवाडीह से सीधे तौर पर किसी का आना-जाना नहीं है। जंगल-पहाड़ से घिरे इस क्षेत्र के लिए अंबिकापुर से सीधे सड़क परिवहन की भी आवश्यकता महसूस नहीं की गई है। वर्तमान समय में सर्वाधिक प्रासंगिकता अंबिकापुर- रेणुकूट रेललाइन की है, जो रेलवे के कोयला परिवहन और यात्री परिवहन दोनों के लिए सर्वाधिक फायदेमंद हो सकता है।अंबिकापुर- रेणुकूट की 152 किलोमीटर परियोजना के लिए अनुमानित लागत लगभग 8200 करोड़ प्रस्तावित है। यह प्रस्ताव डबल लाइन के लिए निर्धारित किया गया है। इस रेल लाइन से समूचे छतीसगढ़ के लोगों काअंबिकापुर-बरवाडीह डबल रेल लाइन के लिए 17400 करोड़ की लागत प्रस्तावित है। सिंगल लाइन के लिए प्रस्तावित लागत साढ़े आठ हजार करोड़ से अधिक का है। वर्षो तक इस रेल लाइन की भी मांग की जाती रही लेकिन बदली परिस्थितियों में इस रेल लाइन के बजाय अंबिकापुर-रेणुकूट ज्यादा लाभकारी है। कोल इंडिया से पूर्व में इस रेल लाइन के लिए सहभागिता की उम्मीद पीपीपी माडल में थी लेकिन कोल इंडिया ने यह कहते हुए इस रेललाइन में निवेश से मना कर दिया कि कोल कंपनियों की खदानें इस लाइन में नहीं हैं और न ही भविष्य में किसी कोल परियोजना की संभावना है।बनारस,अयोध्या,प्रयागराज के अलावा लखनऊ,दिल्ली तक पहुंचना आसान होगा। रेणुकूट रेल लाइन से शिक्षा-स्वास्थ्य की सुविधा भी बेहतर ढंग से सुलभ हो सकेगी। देश की राजधानी दिल्ली से जुड़ाव होगा। कई ट्रेनें यहां से दिल्ली के लिए जाती है।इन रेल मार्गों का भी चल रहा सर्वेरेल मंत्रालय ने अंबिकापुर से विंढमगंज और अंबिकापुर से गढ़वा रेल लाइन के भी सर्वे की मंजूरी दी है। विंढमगंज-अंबिकापुर रेल लाइन 181 किलोमीटर है और इसमें 16 स्टेशन प्रस्तावित हैं। इसकी लागत 8800 करोड़ रुपए आंकी गई हैं। अंबिकापुर से गढ़वारोड की 170 किलोमीटर के लिए अभी अलाइनमेंट का अप्रूवल नहीं मिल सका है। इस कारण इस लाइन के सर्वे का काम आगे नहीं बढ़ सका है और न ही डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट बन सका है।बरवाडीह व रेणुकूट रेल लाइन : तुलनात्मक जानकारीबरवाडीह रेणुकूटदूरी - 199.98 किमी दूरी - 152.30 किमीलागत- 8758.37 करोड़ लागत -8217.92 करोड़आरओआर - 2.69 प्रतिशत आरओआर- 4.94 प्रतिशतडीपीआर जमा-27 जुलाई 2023 - 16 अक्टूबर 2023(नोट :1. रेणुकूट सड़क मार्ग पर प्रतिदिन 300 यात्री वाहनों से लगभग 12 हजार लोगों की आवाजाही। बरवाडीह की ओर सीधी सड़क नहीं।2. रेणुकूट रेल लाइन के सिंगरौली से जुड़ जाने पर रेट आफ रिटर्न्स 14 प्रतिशत तक होने का अनुमान)कोयला परिवहन के होगा आसान,दूरी व लागत कम : मुकेश तिवारीदक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के क्षेत्रीय रेल उपयोगकर्ता परामर्शदात्री समिति सदस्य मुकेश तिवारी ने बताया कि अंबिकापुर को बृहत्तर रेल नेटवर्क से जोड़ने के लिए अंबिकापुर -रेणुकूट(उत्तर प्रदेश ),अंबिकापुर -विंढमगंज ( उत्तर प्रदेश),अंबिकापुर- बरवाडीह (झारखण्ड ) प्रस्तावित है।तीनों प्रस्तावित रेल लाइन में से दो रेणुकूट और बरवाडीह का डीपीआर और फाइनल लोकेशन सर्वे ( एफएलएस) रेलवे बोर्ड को भेज दिया गया है, बिंढमगंज अंबिकापुर रेल लाइन का सर्वे पूर्ण कर पूर्व मध्य रेलवे को भेज दिया गया जहां से जल्द ही दिल्ली रेलवे बोर्ड में जाने वाला है।तीनों में से एक रेल लाइन के चयन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बैठक जल्दी गति शक्ति भवन दिल्ली में जल्द होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।सरगुजा अंचल की जन भावना अंबिकापुर को रेणुकूट से रेल मार्ग के माध्यम से जोड़ने की है। यह प्रस्तावित मार्ग अन्य वैकल्पिक मार्गो की तुलना में लघुतर, कम लागत वाला और अपेक्षाकृत अधिक उपयोगी है।अंबिकापुर -रेणुकूट प्रस्तावित रेल मार्ग के समीप जगन्नाथपुर ओसीपी 3.5 मिलियन टन प्रतिवर्ष की कोल खदान संचालित है, जिसमें आगामी 20 वर्ष तक उत्पादन हो सकता है।मदन नगर में 15 मिलियन टन प्रतिवर्ष उत्पादन देने वाली माइंस चालू होने वाली है जो आगामी 25 साल चलने वाला प्रोजेक्ट रहेगा। इसके अतिरिक्त भवानी प्रोजेक्ट कल्याणपुर,बरतीकलां वाड्राफनगर, बगड़ा,कोटेया जैसे कई कोल प्रोजेक्ट इस रेल मार्ग के नजदीक है।सरगुजा अंचल कोयला उत्पादन के लिए जाना जाता है साथ ही पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश का सिंगरौली क्षेत्र भी कोयला उत्पादक क्षेत्र है। आपस में जुड़ जाने पर यह कोयला परिवहन के लिए स्वर्णिम अवसर उपलब्ध कराएगा जो आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक लाभप्रद एवं व्यवहारिक है।अब अप्रासंगिक हो गया है बरवाडीह रेल लाइनवर्तमान समय में बरवाडीह रेल लाइन अप्रासंगिक हो चुका है। विरल आबादी और जंगल से घिरे इस क्षेत्र में रेल लाइन विस्तार का लाभ न तो जनता को मिलेगा और न ही राजस्व की प्राप्ति होगी
Source: Dainik Jagran July 18, 2024 18:48 UTC