Hindi NewsOpinionEfforts To End The Leadership Crisis In The States, The Solution Of Internal Crises Of Congress With 'Punjab Format'रशीद किदवई का कॉलम: राज्यों में नेतृत्व संकट खत्म करने के प्रयास, कांग्रेस के अंदरूनी संकटों का हल ‘पंजाब प्रारूप’ से10 घंटे पहलेकॉपी लिंकऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के विजिटिंग फेलो और ‘सोनिया अ बायोग्राफी’ के लेखककांग्रेस अंदर ही अंदर फट नहीं रही है। उसमें बस विभिन्न प्रतिस्पर्धी हितों के बीच गहन सत्ता संघर्ष चल रहा, जो अब निर्णायक दौर में है। सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी एकसाथ हैं। कई क्षेत्रीय नेता, कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, बड़े नेता और अन्य, अनुभव, वफादारी, विचारधारा की आड़ में पार्टी पद, विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण आदि के जरिए अपना हित साधना चाहते हैं, जबकि वास्तविक उद्देश्य कहीं ज्यादा निजी है।राहुल, सोनिया और प्रियंका गांधी ने आखिरकार ‘पंजाब प्रारूप’ को आकार दे दिया, जो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी लागू होगा। महत्वपूर्ण नेतृत्व संबंधी मुद्दों के समाधान की कोशिश हो रही है। कुछ कांग्रेस नेताओं को लगता है कि राहुल को संसद में पार्टी के नेता का पद लेने पर विचार करना चाहिए।इसमें विपक्ष के नेता का आधिकारिक टैग भले न हो, लेकिन लोकसभा में तत्कालीन यूपीए की संयुक्त ताकत राहुल को आसानी से विपक्ष के नेतृत्व के लिए जरूरी महत्व दे देगी। ‘प्रधानमंत्री की परछाई’ के रूप में राहुल को मोदी सरकार को विभिन्न मुद्दों पर घेरने के कई मौके मिलेंगे।अगर राहुल वास्तव में संसदीय भूमिका की ओर बढ़ते हैं, तो क्या एआईसीसी, प्रियंका गांधी या कमलनाथ, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल या मुकुल वासनिक या सचिन पायलट जैसे किसी गैर-गांधी को कांंग्रेस के 88वें अध्यक्ष के रूप में देख सकती है? पंजाब के अंदरूनी संकट की कहानी काफी कुछ राजस्थान जैसी है। सचिन पायलट-अशोक गहलोत की तरह पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कभी भी नवजोत सिंह सिद्धू से सहज नहीं थे। आंतरिक मूल्यांकन कह रहा था कि सिद्धू के प्रचार के बिना कांग्रेस नहीं जीत रही थी। इसने सिद्धू को भूमिका देने की अनुशंसा की और कैप्टन को मंत्रिपरिषद के विस्तार के लिए बुलाया। प्रियंका गांधी असंतुष्ट सिद्धू से मिलीं। सिद्धू को फरवरी 2022 के विधानसभा चुनावों में महत्वूर्ण भूमिका देने का वादा किया गया।सोनिया गांधी ने भी कैप्टन को प्रियंका की बात मानने कहा। कैप्टन फरवरी 2022 तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे। कांग्रेस खुलकर न स्वीकारे लेकिन पंजाब की उसकी योजना असम में भाजपा से प्रेरित है, जिसने जब तक जरूरी था, सर्बानंद सोनोवाल का समर्थन किया और चुनाव हो जाने के बाद ज्यादा गतिशील हिमंत बिस्व शर्मा को चुना। कांग्रेस ऐसा कर पाएगी, यह तो वक्त ही बताएगा।राहुल-प्रियंका समझ गए हैं कि चुनावी असफलताओं के कारण ‘हाईकमान’ का अधिकार कुछ कम हुआ है। प्रियंका, राहुल से कहती रही हैं कि वे एआईसीसी व पार्टी शासित राज्यों आदि के बारे अपनी राय को लेकर पारदर्शिता व स्पष्टवादिता रखें। कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि एक बार गांधियों ने कैप्टन को नियंत्रित कर लिया, फिर वे राजस्थान पर ध्यान देंगे, जहां अशोक गहलोत, सचिन पायलट को हाशिए पर धकेल रहे हैं। यह यूपी की जटिल राजनीति में उतरने से पहले प्रियंका की परीक्षा होगी।सोनिया ने अब पार्टी के भीतर एकता, आम सहमति बनाने व सबको साथ लेकर चलने के प्रयासों से ध्यान हटाना शुरू कर दिया है। उन्हें इसका अहसास अगस्त 2019 से एआईसीसी की ‘अंतरिम अध्यक्ष’ बनने के बाद उनके कार्यकाल में हुआ है, जब उन्होंने देखा कि उनके बेटे राहुल और बेटी प्रियंका का पार्टी संगठन चलाने का अलग-अलग मिजाज है। कहा जा रहा है कि सोनिया ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से कह दिया है कि वे 10 अगस्त 2021 के बाद अंतरिम प्रमुख नहीं रहेंगी।पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मौजूदा संकटों में अब पैटर्न दिख रहा है। राहुल अतीत, अनुभव, वफादारी के आधार पर नहीं, बल्कि पदानुक्रम के हर स्तर पर पार्टी नेताओं के बारे में ‘राय बनाना’ चाहते हैं। राजनीतिक अधिकार के लिए जरूरी चुनावी सफलता के अभाव में ‘नई कांग्रेस’ की उनकी खोज और जटिल हो गई है।(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Source: Dainik Bhaskar July 10, 2021 00:22 UTC