राहुल ही नहीं नेहरू भी चाहते थे देशद्रोह कानून को हटाना, गांधी से लेकर कन्‍हैया तक बने थे आरोपी - News Summed Up

राहुल ही नहीं नेहरू भी चाहते थे देशद्रोह कानून को हटाना, गांधी से लेकर कन्‍हैया तक बने थे आरोपी


राहुल ही नहीं नेहरू भी चाहते थे देशद्रोह कानून को हटाना, गांधी से लेकर कन्‍हैया तक बने थे आरोपीनई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र के एलान के साथ ही भाजपा ने इसकी आलोचना करना शुरू कर दिया है। दरअसल, इस घोषणा पत्र के सामने आने के बाद एक बार फिर से देशद्रोह पर बहस छिड़ गई है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में इस कानून को खत्‍म करने की बात कही है। आपको बता दें कि 1859 तक देश में इस तरह का कोई कानून नहीं था। इसे 1860 में बनाया गया और फिर 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया।जहां तक इस पर बहस की बात है तो आपको बता दें कि ब्रिटिश औपनिवेशिक काल की सरकार ने 19वीं और 20वीं सदी में राष्ट्रवादी असंतोष को दबाने के लिए यह कानून बनाए थे। खुद ब्रिटेन ने अपने देश में राजद्रोह कानून को 2010 में समाप्त कर दिया था। आपको यहां पर ये भी बता दें कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी इस कानून को गलत और आपत्तिजनक करार दिया था। हालांकि देश की आजादी के बाद भी यह कानून लगातार विवाद में रहा है। कई मानवाधिकार और सामाजिक संगठनों ने इस कानून के खिलाफ आवाज उठाई है।इसका इतिहास और दूसरी बातों की जानकारी देने से पहले आपको बता दें कि पार्टी ने आखिर अपने घोषणा पत्र में क्‍या कहा है।ये भी पढ़ें- पीएम मोदी के वार पर बोले राहुल गांधीः सब हिंदू हैं, मगर देश में रोजगार की जरूरत है, न्याय की जरूरत हैघोषणा पत्र में देशद्रोह कानून खत्‍म करने का वादाकांग्रेस के घोषणा पत्र में कहा गया है कि सत्ता में आने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (जो की देशद्रोह के अपराध को परिभाषित करती है) जिसका कि दुरूपयोग हुआ, और बाद में नये कानून बन जाने से उसकी महत्ता भी समाप्त हो गई है उसे खत्म किया जायेगा। इसके अलावा पार्टी ने उन कानूनों में भी संशोधन करने की बात कही है जिसके तहत बिना सुनवाई के व्यक्ति को गिरफ्तार और जेल में डालने का अधिकार है। इसके अलावा वह हिरासत और पूछताछ के दौरान थर्ड-डिग्री तरीको का उपयोग करने और अत्याचार, क्रूरता या आम पुलिस ज्यादतियों के मामलों को रोकने के लिए अत्याचार निरोधक कानून बनाने की बात कही है।ये है इसका इतिहाससन 1837 में लॉर्ड टीबी मैकॉले की अध्यक्षता वाले पहले विधि आयोग ने भारतीय दंड संहिता तैयार की थी। सन 1870 में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने सेक्शन 124-A को आईपीसी के छठे अध्याय में जोड़ा। 19वीं और 20वीं सदी के प्रारम्भ में इसका इस्तेमाल ज्यादातर प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादियों और स्वतंत्रता सेनानियों के लेखन और भाषणों के खिलाफ किया गया था।ये भी पढ़ें- Congress Manifesto: कांग्रेस सत्ता में आई तो बदलेगी भाजपा सरकार की ये योजनाएंक्‍या कहता है भारतीय कानूनभारतीय दंड संहिता यानि आईपीसी के सेक्शन 124-A के अंतर्गत किसी पर राजद्रोह का आरोप लगाया जा सकता है। इसके मुताबिक कोई भी व्‍यक्ति यदि मौखिक या लिखित, इशारों में या स्पष्ट रूप से दिखाकर, या किसी भी अन्य तरीके से ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है, जो भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के लिए घृणा या अवमानना, उत्तेजना या असंतोष पैदा करने का प्रयास करे, उस पर देशद्रोह का आरोप लगाया जा सकता है। इसके तहत दोष सिद्ध होने पर उसको उम्रकैद और जुर्माना या 3 साल की कैद और जुर्माना या केवल जुर्माने की सजा दी जा सकती है।इन पर भी लगा था देशद्रोह का आरोपदेशद्रोह का पहला मामला 1891 में अखबार निकालने वाले संपादक जोगेन्द्र चंद्र बोस पर दर्ज किया गया था। इसके अलावा बाल गंगाधर तिलक पर भी इसके तहत मामला दर्ज किया गया था। 1870 में बने इस कानून का इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी के खिलाफ वीकली जनरल में 'यंग इंडिया' नाम से आर्टिकल लिखे जाने की वजह से किया था। यह लेख ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लिखा गया था। इसके अलावा बिहार के केदारनाथ सिंह द्वारा दिए गए एक भाषण की वजह से राज्‍य सरकार ने उनपर 1962 में देशद्रोह का आरोप लगाया था। हालांकि हाईकोर्ट ने इस आरोप को हटा दिया था। इसके अलावा 2010 में बिनायक सेन पर नक्‍सल विचारधारा फैलाने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। इसके अलावा कोलकाता के बिजनेसमैन पीयूष गुहा को देशद्रोह के मामले में दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। इसके अलावा 2012 में काटूर्निस्‍ट असीम त्रिवेदी पर भी देशद्रोह का आरोप लगा था। 2012 में तमिलनाडु सरकार ने कुडनकुलम परमाणु प्‍लांट का विरोध करने वाले 7 हजार ग्रामीणों पर देशद्रोह की धाराएं लगाईं थी। 2015 में हार्दिक पटेल और कन्‍हैया कुमार पर भी इस आरोप के तहत मामला दर्ज किया गया था। इतना ही नहीं इस आरोप की चपेट में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एसएआर गिलानी, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधती रॉय भी आ चुके हैं।चुनाव की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करेंPosted By: Kamal Verma


Source: Dainik Jagran April 02, 2019 09:49 UTC



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