Dainik Bhaskar May 10, 2019, 02:52 PM ISTइससे पहले मार्च 2012 और मई 2015 के एडिशन में भी मोदी को कवर पेज पर जगह दी गई थीमैगजीन के मुताबिक- 2014 में लोगों का गुस्सा कैश करने के लिए मोदी ने नारा दिया था, सबका साथ-सबका विकासमैगजीन के मुताबिक- विपक्ष कमजोर, इसलिए मोदी को दूसरा कार्यकाल मिलने के आसार ज्यादावॉशिंगटन. अमेरिका की प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर एक बार अपने कवर पेज पर जगह दी है। लेकिन इस बार विवादास्पद सवाल किया है। पूछा है- क्या विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र फिर से मोदी को पांच साल का मौका देने को तैयार है? मैगजीन ने अपने कवर पेज पर 'इंडियाज डिवाइडर इन चीफ' शीर्षक से मोदी का फोटो लगाया है। मोदी पर आधारित यह लेख आतिश तासीर ने लिखा है।इससे पहले टाइम ने 2014, 2015 और 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्व के 100 सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में शामिल किया था। 2012 फिर 2015 में अपने कवर पेज पर जगह दी थी।मैगजीन ने लिखा- नाकाम हैं, तभी ले रहे राष्ट्रवाद का सहारामैगजीन का मानना है कि 2014 में लोगों को आर्थिक सुधार के बड़े-बड़े सपने दिखाने वाले मोदी अब इस बारे में बात भी नहीं करना चाहते। अब उनका सारा जोर हर नाकामी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराकर लोगों के बीच राष्ट्रवाद की भावना का संचार करना है। भारत-पाक के बीच चल रहे तनाव का फायदा उठाने से भी वह नहीं चूक रहे हैं।मैगजीन का दावा- 2014 में थे मसीहा, अब सिर्फ राजनेतामैगजीन का कहना है कि बेशक मोदी फिर से चुनाव जीतकर सरकार बना सकते हैं, लेकिन अब उनमें 2014 वाला करिश्मा नहीं है। तब वे मसीहा थे। लोगों की उम्मीदों के केंद्र में थे। एक तरफ उन्हें हिंदुओं का सबसे बड़ा प्रतिनिधि माना जाता था तो दूसरी तरफ लोग उनसे साउथ कोरिया जैसे विकास की उम्मीद कर रहे थे। इससे उलट अब वे सिर्फ एक राजनीतिज्ञ हैं, जो अपने तमाम वायदों को पूरा करने में नाकाम रहा है।1947 के जिक्र के साथ शुरू की स्टोरीस्टोरी की शुरुआत 1947 से की गई है। बताया गया है कि विभाजन के बाद तीन करोड़ से ज्यादा मुस्लिम भारत में रह गए थे। हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सेकुलरिज्म का रास्ता अपनाया। हिंदुओं के लिए कानून की पालना जहां अनिवार्य की गई, वहीं मुस्लिमों के मामले में शरियत को सर्वोपरि माना गया। मोदी के कार्यकाल से पहले तक यह व्यवस्था कायम रही, लेकिन 2014 में गुजरात जैसे सूबे के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों के गुस्से को पहचाना और 282 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। देश पर लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस केवल 44 सीटों तक सिमट गई। यहां तक कि उसे विपक्ष का नेता बनने लायक सीटें भी नहीं मिल सकीं।मोदी के कार्यकाल में अविश्वास का दौर शुरू हुआमैगजीन का कहना है कि यह जरूर है कि लोगों को एक बेहतर भारत की उम्मीद थी, लेकिन मोदी के कार्यकाल में अविश्वास का दौर शुरू हुआ। हिंदु-मुस्लिम के बीच तेजी से सौहार्द कम हुआ। गाय के नाम पर एक वर्ग विशेष को निशाना बनाया गया। सबसे अहम यह कि सरकार ने इस पर कोई ठोस कदम उठाने की बजाए चुप रहना ही बेहतर समझा। मैगजीन का कहना है कि अपनी नाकामियों के लिए अक्सर कांग्रेस के पुरोधाओं को निशाना बनाने वाले मोदी जनता की नब्ज को बेहतर समझते हैं। यही वजह है कि जब भी फंसा महसूस करते हैं तो खुद को गरीब का बेटा बताने से नहीं चूकते।मोदी ने राजनीति को अपने इर्द-गिर्द घुमाने की कोशिश कीउन्होंने राजनीति को अपने इर्द-गिर्द घुमाने की कोशिश की है। तभी उनके एक युवा नेता तेजस्वी सूर्या कहते हैं कि अगर आप मोदी के साथ नहीं हैं तो आप देश के साथ भी नहीं हैं। तीन तलाक को खत्म करके उन्होंने मुस्लिम महिलाओं का मसीहा बनने की कोशिश भी की, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि महिलाओं की सुरक्षा के मामले में भारत को सबसे निचले पायदानों में से एक पर रखा जा रहा है। सांप्रदायिक खाई के साथ जातिवादी खाई तेजी से बढ़ती जा रही है।नोटबंदी की मार नहीं झेल पाया है देशटाइम ने लिखा है कि मोदी ने लगभग हर क्षेत्र में अपने मन मुताबिक फैसले लिए। हिंदुत्व के प्रबल समर्थक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के बोर्ड में शामिल किया। उनके बारे में कोलंबिया के अर्थशास्त्री ने कहा था- अगर वह अर्थशास्त्री हैं तो मैं भरतनाट्यम डांसर। मैगजीन का कहना है कि गुरुमूर्ति ने ही कालेधन से लड़ने के लिए नोटबंदी का सुझाव दिया था। इसकी मार से भारत आज भी नहीं उबर सका है। मोदी को लगता है कि सत्ता में बने रहने के लिए राष्ट्रवाद ही बेहतर विकल्प है। वह भारत-पाक के बीच चल रहे तनाव का फायदा लेने से नहीं चूक रहे। इसीलिए आर्थिक विकास पर वह राष्ट्रवाद को तरजीह दे रहे हैं।विपक्ष का केवल एक एजेंडा है कि कैसे भी मोदी को रोको2017 में उत्तरप्रदेश में चुनाव जीतने के बाद उन्होंने उन योगी आदित्यनाथ को सूबे की कमान सौंपी, जो सीधे तौर पर हिंदु-मुस्लिम के बीच विभाजन की बात करते हैं। हालांकि, मोदी को विपक्ष के कमजोर होने का फायदा मिल रहा है। विपक्ष का केवल एक एजेंडा है कि कैसे भी मोदी को रोको।दूसरा कार्यकाल मिलने में ज्यादा अड़चनें नहींमोदी को पता है कि उन्होंने 2014 में किए वायदे पूरे नहीं किए, लेकिन उसके बाद भी वह अपने व्हाइट हाउस में बैठकर तमाम नाकामियों के लिए सल्तनत (कांग्रेस) को जिम्मेदार ठहराने में गुरेज नहीं करते। मैगजीन का मानना है कि मोदी को दूसरा कार्यकाल मिलने में ज्यादा अड़चनें नहीं हैं, लेकिन लोगों को उस स्थिति के लिए खुद को तैयार रखना होगा, जहां मोदी अपनी तमाम नाकामियों के लिए सारी दुनिया को सजा देने से पीछे नहीं हटेंगे।
Source: Dainik Bhaskar May 10, 2019 06:53 UTC