Hindi NewsLocalRajasthanPaliIf You Get Couplets, Verses And Poetry To Be Heard In Maid Language During Budget Speech, Then Chokhi Baat Howe'laAds से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐपमायड़ रो मान: बजट भाषण के दौरान यदि मायड़ भाषा में सुनने को मिले दोहे, छंद और कविता तो चोखी बात होवे’लापाली एक दिन पहले लेखक: तोषचंद्र चौहानकॉपी लिंकपद्मश्री सम्मान के लिए चयनित शिक्षा-साहित्यविद् डॉ. अर्जुन सिंह शेखावत जैसे विद्वजन कर रहे हैं उम्मीद...संविधान की आठवीं अनुसूची में राजस्थानी को शामिल करवाने में जुटे विद्वजन राज्य बजट प्रस्तुत करने के दौरान भी मायड़ भाषा की उपस्थिति महसूस करने की उम्मीद कर रहे हैं। पद्मश्री के लिए चयनित शिक्षा और साहित्य विद् डॉ. अर्जुनसिंह शेखावत जैसे प्रबुद्धजन बजट भाषण में भी राजस्थानी के मुहावरों, दोहों व लोकोक्तियों को सुनने की आस कर रहे हैं।उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था के इस लेखे-जोखे के बीच राजस्थान की गौरवमयी गाथा, परम्पराएं, सांस्कृतिक सद्भाव आदि दर्शाते दोहे, छन्द व कविता की कुछ पंक्तियां मायड़ भाषा में सुनने को मिले। डॉ. लक्ष्मी कुमारी चूंडावत, विजय दान देथा, कन्हैया लाल सेठिया सहित कई नामवर साहित्यकारों की रची पंक्तियां बजट भाषण के माध्यम से आम जन तक पहुंचकर बजट को अपणायत भरा भाव दे सकती है।कन्हैयालाल सेठिया कह गए हैं- ई धरती रो रुतबो ऊंचोकन्हैया लाल सेठिया रचित कालजयी पंक्तियां “ आ धरती गोरा धोरा री, आ धरती मीठा मोरा री, ई धरती रो रुतबों ऊँचो, आ बात कवे कूंचो कूचों “ में संसाधनों से समृद्ध धरा की कल्पना है। जो क्रूड ऑयल की उपलब्धता से साकार भी हो रही है। सीमित संसाधनों में भी जीवट जगाने की बातें सुनाती विजय दान देथा के कहानी संग्रह “बाता री फ़ूलवारी”, लोक नायकों के व्यक्तित्व से जुडे़ प्रेरक गीतों के मुखड़ों का बजट भाषण में राजस्थानी अन्दाज़ में समावेश किया जा सकता है।हमारी लोग कलाओं में भी होता रहा है अर्थतंत्र का जिक्रशेखावत कहते हैं कि सपनों को साकार करने में पैसों की भूमिका को लोकगीतों में सरलता से दर्शाया गया है। “पइसा ओछा परिया” लोकगीत में महंगाई व कमाई में असंतुलन के चलते बाज़ार और मेले जाने में हो रही दिक्कतों को बताया गया है।वित्त की समझ को शृंगार के प्रतीक माध्यमों से जोड़कर “सुरियों लेवी है के लीला लीला गड़े माय जातां रेयो”गाये जा रहे लोकगीत में चूड़ी, नथ, बिंदी, झुमके, गले का हार आदि लाने का कहता तो है पर “दिलाएगा भी या बरगलाएगा” के माध्यम से पॉकेट बजट के हालात बताए हैं। बंधेज से बनी थैलियों में बजट की काॅपी का वितरण करने का सुझाव भी दिया गया है।
Source: Dainik Bhaskar February 10, 2021 22:31 UTC