राजनीति से संन्यास ले चुके भाजपा के वयोवृद्ध नेता जीतमल जैन ने कहा कि आज राजनीति व्यवसाय हो गई है। पार्टियों में नैतिकता का पतन हुआ है। राजनीति में पैसे का बोलबाला है। अब देश नहीं, नेता बड़े हो गए हैं। जैन ने कहा कि भगवाधारियों को चुनाव लड़ाना मैं भाजपा की भूल मानता हूं। साधु-संतों को समाज को दिशा देनी चाहिए। मूलतः अजमेर के रहने वाले जैन ने अलवर को राजनीति की कर्मस्थली बनाया था। 1955 में वे अलवर आए और 1972 से 1990 तक 5 चुनाव लड़े। इनमें 3 बार वे विधायक बने। वे आरएसएस भी जुड़े रहे। 1972 में पहला चुनाव भारतीय जनसंघ से लड़े और हार गए। इसके बाद उन्हें 1985 में भी पराजय का सामना करना पड़ा। 1975 में आपातकाल के दौरान वे 19 महीने जेल में रहे। 1977 में में जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार विधायक बने। इसके बाद 1980 तथा 1990 में विधायक रहे। वे दो बार भाजपा के जिला अध्यक्ष और दो बार नगर विकास न्यास के चेयरमैन रहे। अब 89 साल की उम्र के हो चुके जैन से दैनिक भास्कर ने मौजूदा राजनीति पर बातचीत की। पेश है, जैन से हुई बातचीत के अंश-भास्कर : आपके समय के चुनाव और आज के चुनाव में क्या बदलाव देखते हैं?उत्तर : मैंने 5 चुनाव लड़े। सब जनता का पैसा था। चुनाव के बाद जो पैसा बचता, उसे पार्टी फंड में जमा करा दिया जाता। उस समय कार्यकर्ता ईमानदार था। बूथ लगाने वाला कार्यकर्ता एक रुपए नहीं लेता था, घर से रोटी खाकर आता था। अब कार्यकर्ता को पैसा चाहिए। आज राजनीति में पैसे का बोलबाला है। लोगों के लिए पैसा सब कुछ है। मैं सारी जिंदगी साइकिल पर चला हूं।भास्कर : आप राजनीति में क्या बदलाव देख रहे हैं?उत्तर : आज राजनीति व्यवसाय हो गई है। उस समय देश बड़ा था। अब देश नहीं, नेता बड़े हो गए हैं। राजनीति में आरोप- प्रत्यारोप के दौर चल पड़े है। नैतिकता का पतन सब पार्टियों में हुआ है। किसी में ज्यादा तो किसी में कम। राजनीति के साथ अब तो चिकित्सा, शिक्षा और मीडिया भी व्यवसाय बन गया है। राजनीति में ही नहीं नैतिक पतन सारे समाज का हुआ है।भास्कर : साधु-संतों का राजनीति में आना क्या उचित है?उत्तर : भगवाधारी जो समाज को दिशा देने वाले हैं, उनको चुनाव लड़ाना भाजपा की भूल मानता हूं। समाज को दिशा देने के लिए इन्होंने घर छोड़ा है। आप राजनीति में आ रहे हैं। सांसद, मंत्री और मुख्यमंत्री तक बन रहे हैं। राजनीति में जब पैसे का बोलबाला है, तो वो क्या ईमानदार रह सकते हैं? राजनीति में झूठ भी बोलना पड़ता है।भास्कर : आप मानते हैं कि राजनीति का स्तर गिरा है?उत्तर : देखिए, कितना बड़ा सोच था उस समय की राजनीति का। 1955 में जागीरदारी उन्मूलन एक्ट बनना था। उस समय राजस्थान में कांग्रेस की सरकार थी। अधिकतर जागीरदार स्वतंत्र पार्टी में थे। सरकार ने बैठक बुलाई। दो दिन तक बैठक चली। बैठक में चर्चा हुई कि जनसंघ को समर्थन करना चाहिए या नहीं। अंत में निर्णय लिया कि राजस्थान और देश के हित में कानून बनना चाहिए। भारतीय जनसंघ ने इसका समर्थन किया। प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहाराव ने भी देश के लिए अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र संघ में भेजा। यह नैतिकता थी।भास्कर : क्या आप मानते हैं कि लालकृष्ण आडवाणी की पार्टी ने उपेक्षा की है?उत्तर : पार्टी में सारी व्यवस्थाएं बदल गई हैं। आज मुझे भी कौन पूछता है? आडवाणी जी मेरे पास अलवर में रहे हैं, मै निजी तौर उन्हें अच्छे से जानता हूं। आज लगता है कि मेरा 75 साल की उम्र में राजनीति से संन्यास लेने का फैसला सही था।भास्कर : पिछले 5 साल के केंद्र सरकार के कार्यकाल को कैसा मानते हैं?उत्तर : यह बात ठीक है नरेंद्र मोदी ईमानदार और व्यक्तिगत रूप से ठीक हैं। उनके कार्यकाल में उनके मंत्रिमंडल के किसी भी मंत्री पर बड़े भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे। हालांकि देश बड़ा है। कुछ नेताओं पर लगाम नहीं लगा सके। उसका परिणाम राजस्थान में देखने को मिला। राजस्थान में राजाशाही चली। मुख्यमंत्री खुद रानी बन गई और विधायकों को जागीरदार बना दिया। उसका परिणाम जनता ने चुनाव में दे दिया। आज विधायकों के पास करोड़ों रुपए कहां से आए?
Source: Dainik Bhaskar April 21, 2019 01:18 UTC