बोल बम के जयकारों से गूंज रही सतपुड़ा की वादी, साल में एक बार खुलता हैं यह शिव मंदिरहोशंगाबाद/विदिशा/रायसेन, जेएनएन। Mahashivratri 2020 : सतपुड़ा की रानी कही जाने वाली पचमढ़ी की वादियां इन दिनों बोल बम के जयकारों से गूंज रही हैं। त्रिशूल लिए हजारों श्रद्धालुओं में चौरागढ़ पहुंचने की धुन है। मप्र के होशंगाबाद जिले के अतंर्गत सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में चौरागढ़ महादेव मंदिर मौजूद है, जहां महाशिवरात्रि तक चलने वाले आठ दिनी मेले के दौरान आसपास के जिलों सहित नजदीकी प्रदेशों से करीब छह लाख श्रद्धालु बाबा के दर्शनों को पहुंचते हैं।महाशिवरात्रि के दिन यहां अपार जनसमूह उमड़ेगा। मन्नत पूरी होने पर एक इंच आकार से लेकर दो क्विंटल तक वजनी त्रिशूल बाबा को अर्पित किए जाते हैं। पुजारी बाबा गरीबदास बताते हैं कि चौरागढ़ महादेव की मान्यता को लेकर अनेक कथाएं हैं।एक कथा यह भी है कि भस्मासुर को वरदान देने के बाद भगवान शिव ने यहां निवास किया था। चौरागढ़ में आदिवासियों की प्राचीन बसाहट रही है। चौरागढ़ मेला के नोडल अधिकारी जिला पंचायत सीईओ आदित्य सिंह ने बताया कि अब तक 50 हजार से अधिक त्रिशूल भेंट हो चुके हैं। महाशिवरात्रि पर यह संख्या कई गुणा बढ़ जाएगी।छिंदवाड़ा जिले के जुन्नरदेव निवासी बंशीलाल खापरे करीब एक क्विंटल वजनी त्रिशूल भेंट करने चौरागढ़ आए हैं। वे अपने परिवार और मोहल्ले के 15 लोगों की मदद से यह त्रिशूल लेकर मंदिर की ओर नंगे पांव बढ़ रहे हैं। महाराष्ट्र के अकोला और अमरावती से दो बसों से श्रद्धालु यहां त्रिशूल चढ़ाने आए हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन पिपरिया है। पचमढ़ी से 10 किमी तक वाहन जाता है। यहां से चार किमी पैदल रास्ता है। फिर 325 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर पहुंचते हैं। पचमढ़ी मध्यप्रदेश का एकमात्र हिल स्टेशन है। सतपुड़ा श्रेणियों के बीच स्थित होने के कारण और अपने सुंदर स्थलों के कारण इसे सतपुडा की रानी भी कहा जाता है। यहाँ घने जंगल, मदमाते जलप्रपात और निर्मल तालाब हैं।महाशिवरात्रि पर शिवलिंग से हटाया जाता है पीतल का आवरणविदिशा की गंजबासौदा तहसील के उदयपुर गांव में भगवान शिव का एक हजार साल पुराना नीलकंठेश्वर मंदिर है। इसका निर्माण परमार राजा उदयादित्य ने कराया था। मंदिर में पांच फीट ऊंचे चबूतरे पर तीन फीट ऊंचा शिवलिंग है, जिस पर पीतल का आवरण चढ़ा रहता है। महाशिवरात्रि पर साल में एक बार इस आवरण को हटाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु लाल पत्थर से बने शिवलिंग के दर्शन करते हैं।शिवरात्रि पर यहां मेला भी लगता है, जिसमें एक लाख से अधिक लोग जुटते हैं। कलेक्टर कौशलेंद्र सिंह ने बताया कि मेले को लेकर तैयारियां अंतिम दौर में हैं। करीब 51 फीट ऊंचे इस मंदिर के चारों तरफ पत्थर की मजबूत दीवारें बनी हुई हैं। मंदिर के बाहरी हिस्से पर शिव, दुर्गा, ब्रह्मा, विष्णु और गणेश सहित अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उत्कीर्ण की गई हैं।साल में एक बार खुलते हैं रायसेन के किले में स्थित मंदिर के द्वाररायसेन में किले में मौजूद शिव मंदिर के द्वार महाशिवरात्रि ही पर खुलते हैं। 12वीं शताब्दी में निर्मित किले में इस दिन मेला भी लगता है। मंदिर के ताले खुलवाने के लिए कई आंदोलन हुए। 1974 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद सेठी तक को आना पड़ा था, लेकिन अब भी साल में केवल महाशिवरात्रि पर ही मंदिर के द्वार खुलते हैं। यह शिव मंदिर सोमेश्वर धाम के नाम से भी पहचाना जाता है।महाशिवरात्रि पर प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में मंदिर के ताले खोले जाते हैं और दिनभर पूजाअर्चना व अभिषेक का क्रम चलता है। सांझ ढलते ही मंदिर में ताले लगा दिए जाते हैं। दरअसल, यह कोई धार्मिक परंपरा न होकर प्रशासनिक व्यवस्था है। बताते हैं कि एक बार सांप्रदायिक तनाव के दौरान बनी परिस्थितियों के चलते प्रशासन व पुलिस ने संयुक्तरूप से यह निर्णय लिया था।[इनपुट- होशंगाबाद से अच्छेलाल वर्मा, विदिशा से अजय जैन और रायसेन से अम्बुज माहेश्वरी की रिपोर्ट]ये भी पढ़ें:-Mahashivratri 2020 Rudrabhishek: महाशिवरात्रि पर ऐसे करें रुद्राभिषेक, इस तरह से पूरी होंगी आपकी 10 मनोकामनाएंMahashivratri 2020: ऐसे करें अपनी राशि के हिसाब से भगवान शिव की पूजा, 117 साल बाद बना महासंयोगMahashivratri 2020: इस शिवरात्रि श्रवण नक्षत्र के साथ सर्वार्थ सिद्धि और वरीयान योग का संयोग, जानिएPosted By: Sanjay Pokhriyalडाउनलोड करें जागरण एप और न्यूज़ जगत की सभी खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस
Source: Dainik Jagran February 20, 2020 04:22 UTC