परिस्थिति ही मनुष्य को आध्यात्मिक साधना की ओर मोड़ती है - News Summed Up

परिस्थिति ही मनुष्य को आध्यात्मिक साधना की ओर मोड़ती है


श्री श्री आनन्दमूर्तिआज की परिस्थिति में समाज के हर वर्ग के लोगों के मन में एक भय का वातावरण बना हुआ है। वे सोचते हैं कि आखिर मेरा क्या होगा? इसका जवाब सिर्फ और सिर्फ परमात्मा ही दे सकते हैं, और परमात्मा को पाने का एकमात्र उपाय है अपने मन को आध्यात्मिक जगत की ओर मोड़ना। अर्थात नियमित साधना के द्वारा आगे बढ़ने से ही मनुष्य आध्यात्मिक लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। आनंद मार्ग ऐसा ही एक दर्शन है। इसलिए अध्यात्म विद्या की आराधना में जो सुख मिलेगा, वही सुख नित्य है और उसे ही आनंद कहते हैं। अनित्य वस्तुओं से आनंद नहीं मिलता। अनित्य वस्तुएं आएंगी, कभी हंसाएंगी तो कभी रुलाएंगी। इस जगत में चाहे कितनी भी प्रिय वस्तुएं पाओ, यदि वे अनित्य हैं तो यह तय है कि एक दिन वे तुम्हें कंगाल बनाकर और रुलाकर चली जाएंगी। किंन्तु जो नित्य है, वह लालसा और मोह से परे है। वह तुम्हें नहीं रुलाएगा। वह नित्य है, अपरिणामी है और अपरिवर्तनशील सत्ता है।यम कहते हैं, हे नचिकेता, तुम्हारे सामने ब्रह्मधाम का द्वार खुल गया है। जिसने विनाशशील तथा विनाशरहित, दोनों प्रकार की वस्तुओं का ज्ञान अर्जन किया है, वह मननशीलता में वृध्दि के साथ-साथ खंडित सुख से वृहद सुख की ओर, अर्थात आनंद की ओर अग्रसर होता है। उस समय उतना ही वह शारीरिक सुख छोड़कर, मानसिक सूक्ष्म सुख की ओर झुकता है। देश प्रेम या ऐसे ही अनेक सूक्ष्म सुखों के लिए मनुष्य अपनी देह को उत्सर्ग करने में जरा भी नहीं हिचकता। ये मनुष्य के उन्नत मन का लक्षण हैं। आनंद मार्ग के बताए अष्टांग योग की साधना के द्वारा साधक धीरे-धीरे अपनी छिपी हुई मनन शक्ति को जगा सकता है, और उस उन्नत मन की सहायता से अंत में आत्मिक स्थिति पा सकता है। इस आत्मिक स्थिति में ही उसे सच्चा आनंद मिल सकता है।इसीलिए कहता हूं कि उपयुक्त आचार्य के पास ब्रह्मविद्या सीख लो। प्राकृत ज्ञान के द्वारा यह नहीं मिल पाएगा, और न ही मोटी-मोटी पोथियां पढ़कर ब्रह्मज्ञान का अर्जन होता है। निष्ठा जगाने की इच्छा करो, इच्छा करने से ही निष्ठा जगेगी और निष्ठा जग जाने से भगवत-कृपा अवश्य होगी। इस भगवत कृपा का अंश मात्र पा लेने पर भी मनुष्य का अपने स्थूल शरीर से ‘मैं’पन का बोध हट जाता है, नित्य-अनित्य विवेक जागृत होता है और यह विवेक ही उसे ब्रह्मस्वरूप में प्रतिष्ठित करता है। याद रखो साधना मार्ग में सबसे बड़ी बात है निष्ठा। निष्ठा रहे, तो भगवत कृपा अवश्य होगी, अनिवार्य तौर पर होगी।देह की आसक्तियों को छोड़ना बहुत कठिन है। यथोपयुक्त साधना के द्वारा ही मनुष्य इस देहगत आसक्ति को और बाकी की भी सब तरह की आसक्तियों को जीत सकता है। अष्टांग योग साधना द्वारा जो सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप को जगा सका है, उसकी सब तरह की आसक्तियों के बंधन छिन्न हो जाने को बाध्य हो जाते हैं और वह नियमित साधना से परम लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता है। यही कारण है कि मनुष्य हर विकट परिस्थिति में आध्यात्मिक पथ का ही सहारा लेता है। दूसरे शब्दों में आत्मा को परमात्मा के साथ मिलाने के सबसे उत्कृष्ट मार्ग को ही आध्यात्मिक साधना कहते हैं। हर इंसान इस पथ की तलाश में ही आनंद का अनुभव करता है।प्रस्तुतिः दिव्यचेतनानन्द अवधूत


Source: Navbharat Times October 20, 2020 05:15 UTC



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