बोकारो में राजनीतिक मौसम वैज्ञानिकों की भरमार है। लोग मौसम देखकर दल व सिद्धांत बदल लेते हैं। इन्हीं में से एक बेरमो क्षेत्र के राजनीतिक मौसम वैज्ञानिक ने पलटी मारी है। हालांकि पलटी मारने में तो उनसे भी कई लोग आगे हैं, लेकिन उनका हिसाब थोड़ा आर्थिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर होता है। लंबे समय तक गुरु के साथ रहे। पैर-हाथ पकड़कर गुरु से बड़े-बड़े प्लाट अपने नाम करा लिये। जब देखा कि गुरु का कुछ नहीं चल रहा है और गुरु भाई लोग सबका हिसाब लेगा। हिसाब नहीं देने पर बुखार छुड़ा देगा, सो पलटी मारकर झारखंडी कंघी की ब्रांडिंग करने लगे। कुछ दिनों तक ब्रांडिंग की और पुराने समय में बटोरे गए सभी को ठीक-ठाक करने पर फिर से उन्होंने पलटी मार दी। इस बार कह रहे हैं कि गिरिडीह का आर्थिक तापमान बढऩे वाला है। मौसम की नजाकत को समझते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृृढ़ करने के लिए केले के व्यापार में उतर गए हैं। भले ही कुछ लोग इसे उनके राजनीतिक सोच का नतीजा बता रहे हैं, लेकिन उनके नजदीकी कहते हैं कि नाथ बाबू ऐसे मौसम वैज्ञानिक हैं जो कि केवल और केवल अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ हैं। राजनीति शास्त्र तो उनका अतिरिक्त विषय है। कम से कम इस चुनाव में उनका लक्ष्य एक खोखे का है। देखना है, बेचारे कितना सफल हो पाते हैं।सचिव, बैद, गुरु, तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस..: गिरिडीह वाले बाबा इन दिनों घर-घर घूमकर समर्थन बटोर रहे हैं। लोग उन्हें सांत्वना देकर उनका गम कम करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि पीठ पीछे बाबा के साथ कोई नहीं है। लोग बीते 10 वर्षों से उन्हें समझा रहे थे, लेकिन कहा गया है कि अहंकार भगवान का भोजन होता है। बाबा भी अहंकारी हो गए थे। उपर से परामर्श देने वालों ने उनकी लुटिया डुबोने का पूरा इंतजाम किया। समर्थक बताते हैं कि भगवान ने बाबा को नगरीय चुनाव में गलती सुधारने का मौका दिया, लेकिन बाबा तो बाबा है। इसके बाद दूसरा मौका गोमिया में मिला। यहां भी बाबा ने अपने अहंकार के सामने किसी को खड़ा नहीं होने दिया। इसके बाद जब वे बेटिकट हो गए तो अब इधर-उधर मांगकर चौपाल में मांदर बजाते फिर रहे हैं। बाबा के इस हालत के लिए उनके परामर्शी जवाबेह हैं। चूंकि गोस्वामी जी ने कहा है कि सचिव बैद गुरु तीनि, जौं प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास। यहां बाबा के सचिव बाबा से उपर के हो गए। बैद बाबा के घर के तो गुरु ऐसे बने, जिनके पुत्र ने ही उन्हें पगलाने की उपाधि दे दी हो।...भाई जी का जाति प्रेम: भाई जी पहले टेंशन में थे। सबका साथ सबका विकास का नारा लेकर चल रहे थे। जब से टिकट मिला है भाईजी भी जातिगत गणित साधने में लग गए हैं। कहीं जेल में मिल रहे हैं तो कहीं कुछ कर रहे हैं। हो भी क्यों नहीं, सबको अपने भाइयों पर भरोसा रहता है। तो भाई जी को भी किसी ने समझाया कि सबकुछ ठीक है भोज में भंडार का जिम्मा स्वजातिय को दीजिए। सो भाईजी ने खोजकर अपने जाति के पुराने नेताजी को बोकारो की कमान दे दिया है। इससे दूसरे लोग दुखी चल रहे हैं, लेकिन करें क्या। दूसरे लोग भी यही कर रहे थे। भाईजी भी इसी रास्ते पर चल पड़े हैं। देखना है इसका फायदा होता है, या नुकसान।...एमपी इन वेटिंग: 2009 के चुनाव में जब पत्रकारों ने शब्द निकाला पीएम इन वेटिंग तो लोगों को अजीब सा लगा। लेकिन अब यह शब्द फिर चर्चा में आ गया है। निचले स्तर पर इन दिनों जिन दलों के प्रत्याशियों की घोषणा नहीं हुई है, उनके कार्यक्रम से पूर्व उत्साहित कार्यकर्ताओं ने नेता को एमपी इन वेटिंग कहना शुरू कर दिया है। फिलहाल धनबाद के बाबा व गिरिडीह के दादा, दोनों एमपी इन वेटिंग की श्रेणी में हैं। दादा तो समझ गए है कि केवल 23 मई का इंतजार है। उसी प्रकार बाबा के चाहने वाले भी कह रहे हैं बस एलान होना बाकी है। नाम घोषित हुआ समझें कि परिणाम आपके हाथ में है। इस पर किसी ने कहा कि साहब, ई शब्द बड़ा खतरनाक है। डिजिटल युग में जो "इन वेटिंग" हुआ, कन्फर्म नहीं होने पर बिना जानकारी के रद भी हो जाता है।Posted By: Deepak Pandey
Source: Dainik Jagran April 02, 2019 12:06 UTC