कानून / आईपीसी की धारा 497 रद्द, क्या थी यह धारा और क्यों था इस पर विवाद? - News Summed Up

कानून / आईपीसी की धारा 497 रद्द, क्या थी यह धारा और क्यों था इस पर विवाद?


Danik Bhaskar Sep 27, 2018, 03:21 PM ISTयूटिलिटी डेस्क. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने बहुमत से फैसला सुनाते हुए आईपीसी के सेक्शन 497 को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया। कोर्ट ने कहा कि हम समानता की बात करते हैं लेकिन यह कानून महिलाओं और पुरुषों भेद करता है। अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 497 पुरुषों को मनमानी का अधिकार देने वाली है। सुप्रीम कोर्ट ने विवाहेतर संबंधों पर कहा कि एडल्टरी (व्याभिचार) अपराध नहीं हो सकता। पति, पत्नी का मालिक नहीं है, महिला की गरिमा सबसे ऊपर है और उसका अपमान नहीं किया जा सकता है।इस तरह के मुकदमे में आरोपी पुरुष को अधिकतम पांच साल तक की सजा का प्रावधान था। हालांकि, ऐसे मामलों की शिकायत थाने में नहीं की जा सकती थी। इसके लिए पति को सबूतों के साथ मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत करनी होती थी।ऐसी स्थिति में महिला का पति एडल्टरी के नाम पर उस पुरुष के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 198 के तहत मुकदमा कर सकता है। आईपीसी का यह आर्टिकल पति को अपनी पत्नी के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने का अधिकार नहीं देता था।1860 में जब इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) बना था तभी उसमें सेक्शन 497 जोड़ा गया था। इस सेक्शन में प्रावधान था कि शादीशुदा महिला की सहमति से उसके पति के अलावा कोई अन्य पुरुष संबंध बनाता है तो इसे व्यभिचार माना जाएगा।आईपीसी के इस सेक्शन में था कि अगर महिला के पति को उसके दूसरे पुरुषों के साथ संबंध बनाने पर कोई अपत्ति नहीं है तो किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकती है।लेकिन अगर पति को महिला के संबंधों से आपत्ति है तो वह दूसरे पुरुष के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 198 (2) के तहत केस दायर कर सकता है। ऐसी स्थिति में उस पुरुष को पांच साल तक की सजा हो सकती थी। यही वह बात थी जो पत्नी को पति की सम्पत्ति के तौर पर पेश करती थी। जिसका साफ मतलब था कि पति अगर चाहे तो पत्नी का कैसे भी इस्तेमाल कर सकता है।इसके अलावा इसमें ये प्रावधान नहीं था कि अगर शादीशुदा महिला के पति ने किसी दूसरी औरत से साथ संबंध बनाया है तो महिला शिकायत कर सके।


Source: Dainik Bhaskar September 27, 2018 08:35 UTC



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