Dainik Bhaskar Feb 18, 2019, 08:25 AM ISTपाकिस्तान जब सीधी लड़ाई में नहीं जीता तो उसने घाटी में आतंकियाें को ट्रेनिंग देकर भेजना शुरू कियाबीते 30 साल में आतंक की 70 हजार घटनाएं, 44 हजार से ज्यादा मौतें, इनमें 5 हजार से ज्यादा जवान शहीद हुएश्रीनगर. पुलवामा हमले के बाद कश्मीर का आतंकवाद फिर चर्चा में है। इसकी जड़ें गहरी हैं। आजादी के वक्त कश्मीर में 68% आबादी मुस्लिमों की थी। शासक हिंदू था। सौहार्द ऐसा था कि भारत में विलय की मांग घाटी के चर्चित मुस्लिम नेता शेख अब्दुल्ला ने की थी। कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद शुरू होने से लेकर अब तक की कहानी पर नॉलेज रिपोर्ट।जब जम्मू-कश्मीर रियासत भारत में शामिल हुई1947 : कश्मीर के राजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को भारत में विलय के लिए संधि पत्र पर दस्तखत किए। इसके बाद कश्मीर हमारा हुआ।पाक को जवाब देने के लिए महिलाओं ने फौज बनाई1948 : पाक कबाइलियों ने कश्मीर पर हमला किया। तब इन्हें जवाब देने के लिए कश्मीरी महिलाओं ने फौज बनाकर इनका सामना किया था।चुनाव में धांधली का आरोप लगा उठाए हथियार1987 : चुनाव में धांधली का आरोप लगा पाक के इशारे पर कुछ नेताओं ने हथियार उठाए। इस तरह आतंक और अलगाववाद का दौर शुरू हो गया।और अब...पाकिस्तान कश्मीर के युवाओं को डरा और बहकाकर उन्हें आतंकी गतिविधियों में शामिल कर रहा है। घाटी में पत्थरबाजों की जमात खड़ी हो गई है। लड़कियां तक पत्थरबाजी में शामिल हो रही हैं।1840 में अंग्रेजों से कश्मीर छीनाआजादी से पहले जम्मू-कश्मीर : 2.1 लाख वर्ग किमी में यह रियासत फैली थी आजादी से पहले कश्मीर अलग रियासत थी। 2.1 लाख वर्ग किमी में फैली इस रियासत पर डोगरा राजपूत वंश के राजा हरिसिंह का शासन था। डोगरा राजाओं ने पूरी रियासत को एक करने के लिए पहले लद्दाख को जीता। फिर 1840 में अंग्रेजों से कश्मीर छीना। तब 40 लाख की आबादी वाली इस रियासत की सीमाएं अफगानिस्तान, रूस और चीन से लगती थीं। ये सब बातें मिलकर इसे रणनीतिक तौर पर बेहद अहम बनाती थी।आजादी के दौरान जम्मू-कश्मीर : महाराजा स्वतंत्र रहना चाहते थे और विलय से कतराते रहे जम्मू-कश्मीर के रणनीतिक महत्व के चलते पाकिस्तान इसे अपने में मिलाना चाहता था। अब फैसला राजा हरि सिंह को करना था। पर हरि सिंह स्विट्जरलैंड की तर्ज पर स्वतंत्र रियासत का सपना संजोने लगे। अगस्त 1947 के दूसरे हफ्ते तक दोनों देशों की ओर से कश्मीर विलय की कोशिशें जारी रहीं। इस बीच ब्रिटिश हुकूमत भी खत्म हो गई।आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर : कबाइली हमले के बाद हरिसिंह विलय को राजी हुए आजादी के बाद पाकिस्तान के कबाइली लड़ाकों ने श्रीनगर पर हमला बोल दिया। पाकिस्तानी सेना उनके साथ थी। जब कबाइलियों की फौज श्रीनगर की ओर बढ़ी तो हिंदुओं की हत्या और उनके साथ लूटपाट की खबरें आने लगीं। तब हरि सिंह 25 अक्टूबर को जम्मू पहुंचे, जहां 26 अक्टूबर को भारत में विलय के लिए संधि पत्र पर दस्तखत किए। अगले दिन कबाइलियों से मोर्चा लेने भारतीय सेना श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरी। पर लड़ाकों को पूरी रियासत से बाहर नहीं निकाल पाए। गिलगित-बाल्टिस्तान हाथ से निकल गया।राजनीतिक अस्थिरता का दौर बना रहा : अब्दुल्ला कश्मीर को भारत में चाहते थे, बाद में बदल गए शेख अब्दुल्ला नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक और नेहरू के मित्र थे। आजादी के बाद नेहरू ने उन्हें कश्मीर का प्रमुख बनाया। शेख ने कश्मीर को विशेष दर्जा देने के लिए नेहरू को मनाया। उनके प्रस्ताव को गोपालस्वामी आयंगर ने संविधान सभा में अनुच्छेद 306-ए के तौर पर रखा। बाद में यही अनुच्छेद 370 बना। इस बीच शेख पाकिस्तान के साथ विद्रोह की योजना बनाने लगे। नेहरू को इसकी भनक लगी। 9 अगस्त 1953 को शेख को जेल में डाल दिया गया। वे 1964 में जेल से छूटे। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते 1975 में शेख सीएम बने। 1982 तक इस पद पर रहे। शेख की मृत्यु के बाद फारुख अब्दुल्ला सीएम बने। इसी दौर में अलगाववादियों ने जड़ें जमानी शुरू कीं।आतंक का पोस्टर बॉय, बट की फांसी के बाद शुरू हुआ खूनी खेल : कश्मीर में आतंक की कहानी जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) बनने से शुरू होती है। अमानुल्लाह खान ने 1977 में इंग्लैंड में इसकी स्थापना की। मकबूल बट भी इससे जुड़ा। बट ने 1971 में इंडियन एयरलाइंस का विमान हाइजैक किया। भारत के दबाव में पाकिस्तान ने उसे गिरफ्तार किया, लेकिन दो साल बाद छोड़ दिया। फिर वह कश्मीर आया और श्रीनगर में पुलिस के हत्थे चढ़ गया। उसे रिहा कराने के लिए जेकेएलएफ के आतंकियों ने बर्मिंघम में भारतीय राजनयिक रविंद्र महात्रे काे अगवा कर लिया। मांग नहींं मानी गई तो महात्रे को मार दिया। इधर, भारत में 11 फरवरी 1984 को बट को फांसी दे दी गई। उसके बाद वह आतंकियों का पोस्टर बॉय बन गया। यहीं से कश्मीर में आतंक का दौर शुरू हुआ। बट के नाम पर कई कश्मीरी युवा आतंक की राह पर निकल गए।विवाद कैसे बढ़ा, कश्मीर में अशांति की चार बड़ी वजहें1. दो मोर्चे पर भारतीय सेनाओं को जूझना पड़ा, भारत ने 23 साल में चीन और पाक से छह प्रत्यक्ष युद्ध लड़े : चीन ने 1959, 1962 और 1965 में अतिक्रमण की कोशिश की। वहीं पाकिस्तान से 1948, 1965 और 1971 में लड़ाई हुई। तीनों में पाकिस्तान को शिकस्त मिली। 71 की लड़ाई में पाक के एक लाख सैनिकों को सरेंडर करना पड़ा। पाक के दो टुकड़े कर दिए और बांग्लादेश अस्तित्व में आया। शिमला समझौते से युद्ध खत्म हुआ।2 . 1987 के चुनाव में धांधली का आरोप लगा आजादी की मांग करने वाले नेताओं ने हथियार उठा लिए : 1987 के चुनाव में धांधली के आरोप लगे और चुनाव हारे नेताओं ने हथियार उठा लिए। इस तरह घाटी में अलगाववाद और आतंकवाद की शुरुआत हुई। आतंकियों ने 1989 में गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी को अगवा किया। बेटी को छुड़ाने के लिए 13 आतंकी छोड़े गए।3 लड़ाइयां हारने के बाद पाक ने कश्मीर को अशांत करने के लिए आतंकी तैयार करने शुरू किए : भारत से तीन युद्ध हारने के बाद पाक समझ गया कि वो सीधी लड़ाई में भारत से नही
Source: Dainik Bhaskar February 18, 2019 01:06 UTC