इंदौरः सही हाथों तक पहुंचे इसलिए हर जगह खुद जाकर करते हैं मदद - News Summed Up

इंदौरः सही हाथों तक पहुंचे इसलिए हर जगह खुद जाकर करते हैं मदद


गगन लेदर हाउस ने इस फील्ड में शहर का नाम सिर्फ प्रदेश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी रोशन किया है। यहां से कई देशों में लेदर प्रोडक्ट्स को एक्सपोर्ट किया जाता है। यदि व्यवसाय के इस पहलू के साथ दूसरा पक्ष देखें तो यहां से न सिर्फ प्रोडक्ट्स निकलते हैं, बल्कि लोगों की मदद जैसा नेक काम भी होता है।संचालक मुकेश पाटीदार ने बताया कि 1996 में जब शोरूम की शुरुआत की थी, तब ही सोच लिया था कि इसमें से मिलने वाले प्रॉफिट का एक हिस्सा सिर्फ सेवा कार्यों में ही जाएगा। इसके बाद कभी स्कूलों में कॉपी-किताबें बांटना हो, गरीब इलाकों में जाकर फूड पैकेट वितरित करना, वृद्धाश्रम, अनाथ आश्रम आदि में जरूरत के काम कराने जैसे कार्य लगातार चलते रहते हैं।मुकेश पाटीदार ने कहा कि मदद तब ही सफल है जब वह सही व्यक्ति तक पहुंचे। इसलिए जब भी कोई मेरे पास मदद मांगने आता है और वह जिस भी आश्रम या संस्था का नाम बताता है तो मैं खुद जाकर वहां एक बार देखता हूं कि कितनी सच्चाई है।इसके पीछे एक दूसरा महत्वपूर्ण कारण यह भी होता है कि वहां पर ऐसे दूसरे लोगों को भी जरूरत होगी, जिसमें मैं अपना सहयोग दे सकता हूं। इसके अलावा भी नियमित रूप से कुछ आश्रमों पर जाकर देखता हूं कि वहां कोई जरूरत तो नहीं है। 22 सालों में हजारों बच्चों और वृद्धजनों की मुकेश पाटीदार किसी न किसी रूप में सहायता कर चुके हैं।गगन लेदर हाउस से करीब 100 कॉरपोरेट हाउस में प्रोडक्ट्स जाते हैं। ऐसे में कोई जॉब के लिए आता है तो उसे भी अलग-अलग पदों पर जरूरत के अनुसार नौकरी दिलाने में मदद करते हैं।शोरूम पर ही आ जाते हैं लोगमुकेश पाटीदार बताते हैं कि जिन लोगों को पता है कि मैं इस तरह की मदद करता हूं तो उनके पास कोई भी जरूरतमंद पहुंचता है तो वे उसे सीधे शोरूम पर भेज देते हैं। कई बार ऐसे बच्चे आते हैं जिनके पास पढ़ने के लिए किताबें भी नहीं हैं तो किसी के पास स्कूल बैग। कई बार बुजुर्ग भी आते हैं। उनकी तत्काल मदद के करने के बाद वे जिस जगह से आए हैं, मैं वहां खुद चला जाता हूं और पता कर लेता हूं कि कोई और गुंजाइश तो नहीं। यदि आश्रम या स्कूल में कोई जरूरत होती है तो उसमें भी क्षमता के अनुसार सहयोग दे देते हैं।हर जन्मदिन पर सेवा कार्यमुकेश पाटीदार बताते हैं कि मैं व्यवसाय से आने वाले प्रॉफिट का एक हिस्सा तो समाज सेवा में लगाता ही हूं, लेकिन मैंने परिवार में भी एक परंपरा बनाई है। जब भी घर में किसी का जन्मदिन होता है तो उस दिन किसी भी स्लम एरिया में जरूरतमंद बच्चों के साथ ही मनाते हैं। यहां घर के बच्चों को भी लेकर जाते हैं, जिससे उन्हें भी ऐसे संस्कार मिलें कि बड़े होकर किसी की मदद करने से पीछे नहीं हटें।22 साल से हर साल ठंड शुरू होने के पहले ही कंबल लेकर आ जाते हैं और ठंड में गरीबों में वितरित कर देते हैं। इसके लिए रात में निकलते हैं और रात में ही बांटते हैं। कई बार अखबारों के जरिए भी पता चल जाता है कि किसी को इलाज के लिए मदद की दरकार है तो वहां भी अपनी क्षमता के अनुरूप सहायता कर देते हैं।By Nandlal Sharma


Source: Dainik Jagran September 27, 2018 00:33 UTC



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