इस्लामाबाद, एजेंसी । अमेरिकी चिंताओं को दरकिनार करते हुए इमरान सरकार ने चीन-पाकिस्तान कॉरिडोर को समय पर पूरा करने के मकसद से एक प्राधिकरण का गठन किया है। इस प्राधिकरण के पहले अध्यक्ष के रूप में पाक सेना के लेफ्टिनेंट-जनरल (retd) असीम सलीम बाजवा को नियुक्त किया है। इस प्राधिकरण का मकसद कॉरिडोर को समय से पूरा करना है। बता दें कि प्रधानमंत्री इमरान खान की बीजिंग यात्रा से पहले अक्टूबर में एक अध्यादेश के माध्यम से प्राधिकरण की स्थापना की गई थी। हालांकि, अमेरिका और भारत ने इस कॉरिडोर पर शुरू से ही योजना के खिलाफ है और अपनी आपत्ति दर्ज करा चुका है। इसके बावजूद पाक ने इस पर एक प्राधिकरण का गठन किया है।चार वर्ष के लिए होगा नए अध्यक्ष का कार्यकालमंगलवार को बाजवा को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा प्राधिकरण (CPECA) के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। यह प्राधिकरण पाकिस्तान की योजना और विकास मंत्रालय के अंतर्गत आता है। नए अध्यक्ष का कार्यकाल चार वर्ष के लिए होगा। सेवानिवृत्ति से पहले बाजवा सेना के दक्षिणी कमान के कमांडर के रूप में कार्य कर चुके हैं। वह 2012 से 2016 तक पाकिस्तान सेना की मीडिया विंग, इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस के महानिदेशक भी रहे।डॉन न्यूज ने सरकार के स्थापना प्रभाग द्वारा जारी एक अधिसूचना के हवाले से कहा। हाल में इस कॉरिडोर को लेकर ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान को सख्त चेतावनी दी थी। अमेरिका ने कहा था कि अगर वह चीन के साथ इस कॉरिडोर योजना पर आगे काम करता है तो उसको गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। पाकिस्तान के इस कदम से एक बार फिर अमेरिका और पाकिस्तान संबंध और भी बिगड़ सकते हैं।कॉरिडोर की लागत 46 अरब डॉलरआर्थिक गलियारा पाकिस्तान के ग्वादर से लेकर चीन के शिनजियांग प्रांत के काशगर तक लगभग 2,442 किमी लंबी एक परियोजना है l इसकी लागत 46 अरब डॉलर आंकी जा रही है। चीन इसके लिए पाकिस्तान में इतनी बड़ी मात्रा में पैसा निवेश कर रहा है कि वो साल 2008 से पाकिस्तान में होने वाले सभी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के दोगुने से भी ज़्यादा है। चीन का यह निवेश साल 2002 से अब तक पाकिस्तान को अमेरिका से मिली कुल आर्थिक सहायता से भी ज़्यादा है।आखिर इस परियोजना पर क्या है भारत की आपत्तिभारत द्वारा इसका विरोध इस कारण किया जा रहा है, क्योंकि यह गलियारा पाकिस्तान में गुलाम कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान और पाकिस्तान के विवादित क्षेत्र बलूचिस्तान से होते हुए जाएगा। यातायात और ऊर्जा का मिलाजुला यह प्रोजेक्ट समंदर में बंदरगाह को विकसित करेगा, जो भारतीय हिंद महासागर तक चीन की पहुंच का रास्ता खोल देगा।परियोजना से चीन को क्या होगा लाभ1- चीनियों के लिए यह रिश्ता रणनीतिक महत्व का है। यह गलियारा चीन को मध्यपूर्व और अफ़्रीका तक पहुंचने का सबसे छोटा रास्ता मुहैया कराएगा, जहां हज़ारों चीनी कंपनियां कारोबार कर रही हैं।2- इस परियोजना से शिनजिंयाग को भी कनेक्टिविटी मिलेगी और सरकारी एवं निजी कंपनियों को रास्ते में आने वाले पिछड़े इलाकों में अपनी आर्थिक गतिविधियां चलाने का मौका मिलेगा, जिससे रोज़गार के अवसर पैदा होंगे।3- वर्तमान में मध्यपूर्व, अफ़्रीका और यूरोप तक पहुंचने के लिए चीन के पास एकमात्र व्यावसायिक रास्ता मलक्का जलडमरू है; यह लंबा होने के आलावा युद्ध के समय बंद भी हो सकता है।4- चीन एक पूर्वी गलियारे के बारे में भी कोशिश कर रहा है जो म्यांमार, बांग्लादेश और संभवतः भारत से होते हुए बंगाल की खाड़ी तक जाएगा।- विदेश की खबरों के लिए यहां क्लिक करेंPosted By: Ramesh Mishraअब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप
Source: Dainik Jagran November 27, 2019 09:53 UTC