फिजूल खर्च, निवेश के प्रति गलत नजरिया या आलस्य के चलते नजरंदाज करने के कारण सेविंग्स करना मुश्किल होता है, लेकिन कई ऐसे तरीके हैं जो दिखते बड़े मामूली हैं लेकिन आपकी बड़ी बचत करा सकते हैं। आइए जानें कुछ ऐसे ही तरीकों के बारे में, लेकिन उससे पहले जानें कि आपका कौन-सा खर्च आपके लिए जरूरी हो सकती है लेकिन उसपर खर्च कर आपका पैसा निवेश नहीं हो रहा।डेप्रिशिएटिंग ऐसेट उन्हें कहते हैं, जिनकी कीमत समय के साथ घटती जाती है। आप इसे बेचने की कोशिश करते हैं, तो आपको परचेज प्राइस से कम दाम मिलता है। अगर आप ऐसी संपत्ति जुटा रहे हैं तो आप निवेश नहीं, खर्च कर रहें। कार, बाइक, लैपटॉप, फर्नीचर या महंगा फोन खरीदना पैसे का सही इस्तेमाल नहीं होता, बशर्ते वह आपके कामकाज के लिहाज से जरूरी हो।ऐसी चीजें खरीदिए जिनकी कीमत समय के साथ बढ़ती है, जैसे कि घर, सोना या स्टॉक। इनसे आप बचत कर सकेंगे। वीइकल या फोन के बिना काम नहीं चलता है, लेकिन कोशिश करें कि इनके लिए आपको कर्ज नहीं लेना पड़े। ऐसा करने से परचेज प्राइस बढ़ जाती है।अगर आपको लगता है कि पैसे बैंक अकाउंट या रेकरिंग डिपॉजिट में डालने या परंपरागत इंश्योरेंस प्लान खरीदने से आप बचत कर रहे हैं तो आप गलत हैं। पैसा अगर महंगाई से अधिक दर पर नहीं बढ़ रहा है तो आप उसकी कीमत समय के साथ घटा रहे हैं। साथ ही बैंक अकाउंट या घर में पैसे रखने से खर्च करने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।बैंक अकाउंट या घर में कैश रखकर उसकी कीमत नहीं घटानी चाहिए। आपको इस तरह निवेश करना चाहिए ताकि महंगाई से 6-7 पर्सेंट तेजी से आपके पैसे में ग्रोथ हो सके। आप इसके लिए इक्विटी, डेट और रियल एस्टेट निवेश का सहारा ले सकते हैं, जिनसे ऊंचा रिटर्न मिलता है।अगर आप बिना बजट बनाए घर का खर्च चला रहे हैं या मन को खुश करने के लिए खुलकर शॉपिंग करते हैं, तो आप फिजूलखर्ची के शिकार हो रहे हैं। शॉपिंग मॉल या ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर बिना सोचे-समझे खरीदारी करने से आप फिजूल खर्च को बढ़ावा देते हैं।आपको फाइनैंशल गोल तय करने चाहिए। लक्ष्य के तहत राशि और उसे हासिल करने की समय-सीमा तय होनी चाहिए। उसके मुताबिक ही निवेश करना चाहिए। जब आपको पता होगा कि हर महीने तय रकम निवेश करनी है और बचे हुए पैसों से घर चलाना है, तो फिजूलखर्ची पर खुद-ब-खुद लगाम कसेगी।बजट बनाने का एक अहम पहलू इच्छा और जरूरत का अंतर समझना है। जरूरतों में घर, खाना, स्वास्थ्य, ट्रांसपोर्टेशन और यूटिलिटी से जुड़े खर्च शामिल होते हैं। वहीं घूमना-फिरना, बाहर खाने जाना, एंटरटेनमेंट या ब्रांड पर खर्च करना आदि इच्छा के तहत आते हैं। कई लोगों का मानना है कि किसी की इच्छा किसी दूसरे व्यक्ति की जरूरत भी हो सकती है। हालांकि, अपनी आय के आधार पर इनका अंतर समझना मुश्किल नहीं है।इसे समझने का एक आसान तरीका यह है कि बजट में 50-30-20 का नियम अपनाया जाए। सबसे पहले आमदनी का 20 प्रतिशत हिस्सा बचत के लिए अलग कर दें। अब आय का 50 पर्सेंट हिस्सा जरूरतों और 30 पर्सेंट इच्छाओं पर खर्च करना चाहिए। इस आदत को पहली सैलरी के समय से ही अपनाने पर आपको बचत करने में कभी मुश्किल नहीं होगी।बचत नहीं कर पाने का एक सीधा-सा कारण यह होता है कि आप बेहिसाब खर्च करते हैं। इससे यह पता चलता है कि आप भविष्य की चिंता किए बिना पैसे उड़ा रहे हैं। ऐसे में कल को हर छोटे-बड़े मौके पर आपके लिए खर्च संभालना मुश्किल हो सकता है। बच्चे के लिए छोटा फंक्शन हो, उनकी शादी या आपका रिटायरमेंट, यह समस्या कभी भी खड़ी हो सकती है। फिर आपको महंगा कर्ज, परिवार-दोस्तों से बड़ा उधार लेना या संपत्ति बेचकर पैसा जुटाना पड़ेगा।आपको शॉर्ट और लॉन्ग टर्म के हिसाब से फाइनैंशल गोल तय करने होंगे। चाहे आपको घूमने जाना हो या बच्चे के लिए बाइक खरीदनी हो, हर खर्च के लिए प्लैनिंग करें और पहले से बचत शुरू कर दें। कितने पैसे चाहिए होंगे और उन्हें कब तक खर्च करना होगा, इसका हिसाब लगाकर निवेश करना सही होगा।बेबी बूमर (1946-1964 के बीच पैदा हुए लोग) और जेन एक्स (1961-1981) वाले लोग जहां संपत्ति तैयार करने और जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज लेते थे, वहीं मिलेनियल अपनी लाइफस्टाइल आरामदेह बनाने के लिए कर्ज का सहारा ले रहे हैं। दूसरों से पीछे छूट जाने के डर से वे क्रेडिट कार्ड और पर्सनल, वीइकल या होम लोन लेने से नहीं हिचकिचाते हैं। जरूरतों के अलावा वे इच्छाओं पर भी खुलकर खर्च करते हैं।
Source: Navbharat Times January 27, 2020 09:45 UTC