बेटी मिला के साथ जूलिया (Photo: NYT)सिर्फ एक मरीज के इलाज के लिए खासतौर पर तैयार की गई नई दवा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या दवाओं को भी पर्सनलाइज्ड रूप देना चाहिए? टिमोथी यू और उनके सहयोगियों ने बॉस्टन चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल में जांच की कि मौजूदा जीन के साथ समस्या DNA के एक बाहरी हिस्से में है जिससे एक महत्वपूर्ण प्रोटीन के प्रॉडक्शन में रुकावट आ रही है और यही मिला की बीमारी की मुख्य वजह है।इस जांच के बाद डॉ. यू को यह आइडिया आया कि बाहरी DNA के प्रभाव को रोकने के लिए कस्टम तरीके से RNA बनाया जाए तो बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। डॉ. यू की टीम में देखरेख में इस दवा का निर्माण हुआ और इसका टेस्ट चूहों पर किया गया। फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के पास अप्रूवल के लिए दवा को भेजा गया और जनवरी 2018 में एजेंसी ने मिला को दवा देने की मंजूरी दी और 31 जनवरी को मिला को इस दवा की पहली डोज दी गई।दवा स्पाइनल टैप के जरिए दी जाती है ताकि सीधे ब्रेन तक पहुंच सके। दवा देने के लिए एक महीने के भीतर मिला की हालत में सुधार देखा गया। इस ट्रीटमेंट के बाद मिला को आने वाले दौरे कम हो गए। यहां तक कि मिला को अब ट्यूब के जरिए भी खाना देने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि उसे लिक्विड फूड या खाने को प्यूरी फॉर्म में दिया जा सकता है। एक बार सहारे से खड़े होने के बाद अब वह अपना सिर स्थिर रख पाती है और उतना हिलती भी नहीं है जिससे बॉडी अनबैलेंस हो जाए।गौरतलब है कि मिलासन ऐसी पहली दवा है जिसे सिर्फ एक पैशंट के इस्तेमाल के लिए बनाया गया लेकिन डॉ. यू और उनके सहयोगी भी इस बात को मानते हैं कि इस तरह किसी दवा के ईजाद किए जाने और उसके उपयोग को लेकर अभी भविष्य की रास्ता स्पष्ट नहीं है।
Source: Navbharat Times October 11, 2019 12:33 UTC