Om Prakash Rajbhar: BSP हो या बीजेपी, राजभर के बेबाक बोल ही बने विवाद का कारण - bsp or bjp the reason for op rajbhar conflicts are his absurd language - News Summed Up

Om Prakash Rajbhar: BSP हो या बीजेपी, राजभर के बेबाक बोल ही बने विवाद का कारण - bsp or bjp the reason for op rajbhar conflicts are his absurd language


टेंपो चालक से लेकर यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री तक का सफर तय करने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर अपने बेबाक बोल के कारण विवादों में रहे हैं। इसी वजह से उन्हें 2001 में बसपा छोड़नी पड़ी और अब मंत्री पद खोना पड़ा। 35 सालों के संघर्ष के बूते अति पिछड़ों के नेता के रूप में उभरे राजभर पूर्वांचल की दो दर्जन सीटों पर प्रभाव रखते हैं।बसपा संस्थापक काशीराम से प्रभावित होकर ओम प्रकाश राजभर 1981 में सक्रिय राजनीति में आए। बसपा में बनारस के जिलाध्यक्ष भी रहे। मायावती ने भदोही का नाम संतकबीर नगर किया तो राजभर ने विरोध किया। बसपा से अलग होकर 27 अक्टूबर 2002 में सुभासपा का गठन किया। 2004 के लोकसभा चुनाव में राजभर ने यूपी और बिहार में प्रत्याशी उतारे, लेकिन एक भी सीट जीत नहीं पाए। हालांकि वोट ठीक मिला।2007 के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारे, लेकिन जीत नहीं मिली। 2012 में कौमी एकता दल से गठबंधन किया, लेकिन उनके प्रत्याशी नहीं जीते। हालांकि अंसारी बंधुओं को मोहम्मदाबाद और मऊ सीटों पर जीत मिली। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से गठबंधन हुआ और राजभर सहित 4 विधायक जीते।पढ़ाई के दौरान ओम प्रकाश रात में टैंपो चलाते थे। बाद में उन्होंने एक जीप खरीदी, जिसमें सवारी लाने ले जाने का काम किया। उन्होंने राजनीति की शुरुआत ही अति पिछड़ा वर्ग के अधिकारों को लेकर की। बकौल, राजभर वह शुरू से ही पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने की मांग कर रहे हैं। उनका मानना है कि जब तक आरक्षण का वर्गीकरण नहीं होता, तब तक 150 से अधिक अति पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता।राजभर का कहना है कि भाजपा से समझौता भी उन्होंने इसी शर्त पर किया था कि सरकार बनी तो पिछड़ों के आरक्षण में बंटवारा कर दिया जाएगा। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने खुद कहा था कि लोकसभा चुनाव से छह महीने पहले आरक्षण में वर्गीकरण कर दिया जाएगा। योगी सरकार ने सामाजिक न्याय समिति बनाई थी। उसकी रिपोर्ट प्रदेश सरकार के पास है, जिसमें आरक्षण को बांटने की सिफारिश की गई है। लेकिन, उसे लागू नहीं किया गया।- 1981 में बसपा में जुड़े थे- 1995 में पत्नी राजमति राजभर ने वाराणसी जिला पंचायत के सदस्य का चुनाव जीता- 1996 में बसपा के टिकट पर कोलअसला (अब पिंडरा) से प्रत्याशी रहे, हारे- 2002 में मायावती द्वारा जिलों के नाम बदलने के विरोध में बसपा छोड़ी- बसपा छोड़ने के बाद कुछ दिनों तक सोनेलाल पटेल की पार्टी अपना दल युवा मंच के प्रदेश अध्यक्ष रहे- 2002 में 27 अक्तूबर को सुभासपा का गठन किया- 2017 के विधानसभा चुनाव में इनकी पार्टी से चार विधायक चुने गए, इनमें राजभर भी शामिल हैं


Source: Navbharat Times May 20, 2019 21:11 UTC



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