Loksabha Election 2019 Mayawati and Mulayam Singh Yadav has changed due to political compulsion - News Summed Up

Loksabha Election 2019 Mayawati and Mulayam Singh Yadav has changed due to political compulsion


लखनऊ [अजय जायसवाल]। वक्त ने किया, क्या हसीं सितम। हम रहे न हम, तुम रहे न तुम। मैनपुरी में कल मंच पर मुलायम सिंह यादव, बगल में मायावती और साथ में अखिलेश।अब न वो मुलायम थे और न ही वो सख्त मायावती। अखिलेश यादव व मायावती को तो मंच पर एक साथ लोग पहले भी देख चुके थे। मुलायम सिंह यादव के साथ मायावती का होना उन सियासी मजबूरियों को बयां कर रहा था, जो कट्टर दुश्मनों को भी हाथ मिलाने के लिए विवश कर देता है।याद कीजिए, तीन जून 1995 की तारीख को जब पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा था। शब्दश: उनके ही शब्दों में- 'निवर्तमान मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और उनके गुंडों को बख्शा नहीं जाएगा। राज्य अतिथि गृह में जो गुंडागर्दी हुई है उसके लिए श्री यादव पूरी तरह जिम्मेदार हैैं और उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी।'मायावती इतने पर ही नहीं रुकी थीं। पूरी भूमिका बताई थी-'सच बात तो यह है कि श्री यादव को जब यह जानकारी मिली कि बसपा विधायक मुझे मुख्यमंत्री बनना चाहते हैैं और उन्होंने मुझे विधानमंडल दल का नेता चुन लिया है तो श्री यादव आगबबूला हो गए और फिर गुंडागर्दी शुरू हो गई।' अब यह प्रेस कांफ्रेस अतीत की बात है। 24 वर्ष बाद परिस्थितियों ने मायावती को अपना रुख बदलने पर मजबूर किया है।मैनपुरी में कल मंच पर बैठी मायावती अपने 'राजनीतिक दुश्मन' के सारे गुनाह बख्शने के मूड में थीं। इसी लिए न सिर्फ उनके चेहरे पर मुस्कराहट थी बल्कि उन्होंने मुलायम सिंह यादव के कसीदे भी पढ़े। मुलायम को पिछड़ों का असली नेता बताकर रिकार्ड मतों से ऐतिहासिक जीत दिलाने की भी अपील की।दरअसल, दो जून 1995 के राज्य अतिथि गृह (स्टेट गेस्ट हाउस) कांड के बाद ही समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की राहेें जुदा हो गईं थीं लेकिन हाल के वर्षों में मोदी लहर के चलते चाहे बसपा रही हो या फिर सपा, दोनों को ही अपने अस्तित्व पर संकट दिखने लगा। सूबे की सत्ता गंवाने के बाद जहां बसपा पिछले लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमट गई थी वहीं मात्र पांच लोकसभा सीटें जीतने वाली सपा भी 2017 में राज्य की सत्ता से बाहर हो चुकी है। ऐसे में अपने-अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए 24 वर्ष बाद इसी साल 12 जनवरी को मायावती और अखिलेश यादव एक साथ आए थे। फिर भी लोगों के मन में शंका थी कि क्या वह मुलायम के साथ मंच पर आएंगी? अब इसे सियासत की मजबूरियां कहा जा सकता है कि अंतत: मायावती मंच पर आईं और मुलायम के बगल में भी बैठीं।यह था स्टेट गेस्ट हाउस कांडवर्ष 1993 का विधानसभा चुनाव सपा और बसपा ने गठबंधन कर लड़ा था। सपा ने 109 और बसपा ने 67 सीटें जीती थी। गठबंधन सरकार में सपा के तत्कालीन अध्यक्ष और अब संरक्षक मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। दोनों दलों के बीच वर्ष 1995 में रिश्ते खराब हुए। मुलायम को अंदेशा था कि बसपा को भाजपा समर्थन दे सकती है और कभी भी उनकी सरकार गिर सकती है। मुलायम, कांशीराम से मिले और इसी बीच मायावती ने बसपा विधायकों की बैठक दो जून 1995 को राज्य अतिथि गृह (स्टेट गेस्ट हाउस) में बुलाई। बैठक के बाद मायावती चुनिंदा बसपा विधायकों को साथ लेकर अपने कमरे में चली गईं। बाकी विधायक कॉमन हाल में ही बैठे रहे। शाम करीब चार बजे सपा के विधायक व बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस में धावा बोल दिया। बसपा विधायकों की पिटाई की गई और उनके परिवार के लोगों को खत्म करने की धमकी दी गई।गेस्ट हाउस का मेन गेट तोड़ दिया गया। कई बसपा विधायकों को गाड़ी में जबरन बैठाकर सीएम आवास भेजा गया। कई से समर्थन वाले शपथ पत्र पर साइन करवाए गए। डीएम-एसएसपी बड़ी संख्या में पुलिस बल के साथ पहुंचे लेकिन मारपीट व तोडफ़ोड़ कर रहे सपा विधायक और कार्यकर्ता वहां गलियारे में लाइन बनाकर दीवार की तरह खड़े रहे। तब मायावती ने आरोप लगाया था कि गेस्ट हाउस में ही उनकी हत्या की साजिश की गई थी। मारने की कोशिश की गई लेकिन किसी तरह वह बच गईं। अगले ही दिन तीन जून 1995 को भाजपा के साथ मिलकर बसपा ने सरकार बनाई और मायावती प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनी थी।Posted By: Dharmendra Pandey


Source: Dainik Jagran April 20, 2019 04:23 UTC



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