40 साल तक पहेली ने उलझाया धरती की तरह ही कई दूसरे ग्रहों के ध्रुवों पर भी ये दिखाई देते हैं। बृहस्पति की मैग्नेटिक फील्ड धरती से 20 हजार गुना ज्यादा शक्तिशाली है। इसलिए यहां बनने वाले Aurora भी ज्यादा एनर्जी वाले होते हैं। बृहस्पति के Aurora से X-Ray भी निकलती हैं। बृहस्पति के चांद Io से निकलने वाले इलेक्ट्रिकली चार्ज्ड सल्फर और ऑक्सिजन आयन से बनती हैं। स्टडी के सह-रिसर्चर झॉन्गहुआ याओ ने Space.com को बताया कि यह पूरी प्रक्रिया क्या होती है, इसे करीब 40 साल से वैज्ञानिक समझने की कोशिश कर रहे थे। इसके लिए रिसर्चर्स ने बृहस्पति का चक्कर काट रहे NASA के Juno प्रोब की मदद ली और इसके चुंबकीय क्षेत्र को स्टडी किया।क्यों बनती हैं एक्स-रे? इसके साथ ही, धरती का चक्कर काट रहे यूरोपियन स्पेस एजेंसी के XMM-Newton टेलिस्कोप की मदद से बृहस्पति की एक्स-रेज का अनैलेसिस किया। Space.com के मुताबिक बृहस्पति के हर Aurora से इतनी ऊर्जा निकलती है जो धरती पर कोई एक पावर स्टेशन कई दिन में बनाएगा। ये एक्स-रे Aurora घड़ी की तरह लगातार बीट्स पर चलती हैं। ये बीट्स कुछ मिनट की होती हैं और कई घंटों तक रहती हैं। वैज्ञानिकों ने पाया है कि ये एक्स-रेज बृहस्पति की मैग्नेटिक फील्ड लाइन्स में होने वाले vibration (कंपन) की वजह से बनती हैं।धरती जैसा ही वाइब्रेशन की वजह से प्लाज्मा जनरेट होता है जो हेवी आयन्स को मैग्नेटिक फील्ड लाइन्स पर पहुंचा देता है। वहां से वायुमंडल से टकराने पर ये एक्स-रे की शक्ल में ऊर्जा रिलीज करती हैं। ऐसे ही प्लाज्मा की तरंगों के कारण धरती पर Aurora बनता है। स्टडी के को-लीड विलियम डन ने Space.com को बताया कि ऐसा लगता है कि बृहस्पति की विशालता के बावजूद Aurora बनने की प्रक्रिया एक सी ही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंतरिक्ष के पर्यावरण की प्रक्रियाएं एक सी ही होती हैं। ये स्टडी साइंस अडवांसेज जर्नल में छपी है।
Source: Navbharat Times July 10, 2021 12:56 UTC