IMF Quota: IMF कोटे को लेकर भारत परेशान क्यों, क्या हो रहे नुकसान? - imf quota, why india should be worried - News Summed Up

IMF Quota: IMF कोटे को लेकर भारत परेशान क्यों, क्या हो रहे नुकसान? - imf quota, why india should be worried


हाइलाइट्स IMF में भारत का कोटा 2.76 फीसदी है और यह 8वां सबसे बड़ा कोटा धारक हैकोटे का निर्धारण सदस्य देश की GDP (50%), आर्थिक खुलापन (30%), आर्थिक विविधता (15%) और इंटरनैशनल रिजर्व (5%) के आधार पर किया जाता है17.46 फीसदी कोटे के साथ अमेरिका पहले नंबर पर और चीन का कोटा 6.41 फीसदी हैभारत के 2.76 फीसदी कोटे के आधार पर वोट शेयर 2.64 फीसदी हैइंटरनैशनल मॉनिटरी फंड ( IMF ) ने भारत का कोटा नहीं बढ़ाया, जिस पर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने निराशा जताई। हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि जनरल रीव्यू ऑफ कोटा (GRQ) की होने वाली बैठक में दोबारा इस पर विचार किया जाएगा। कोटा को लेकर बहस हो रही है। ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि इसके क्या फायदे हैं और किस आधार पर कोटा तय किया जाता है।भारत 1945 में IMF का सदस्य बना। कोटे का निर्धारण सदस्य देश की GDP (50%), आर्थिक खुलापन (30%), आर्थिक विविधता (15%) और इंटरनैशनल रिजर्व (5%) के आधार पर किया जाता है। 2010 में कोटे को रिवाइज किया गया और भारत की हिस्सेदारी 2.44 फीसदी से बढ़ाकर 2.76 फीसदी कर दी गई। भारत IMF का 8वां सबसे बड़ा कोटा धारक है। 17.46 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ अमेरिका पहले नंबर पर और चीन की हिस्सेदारी 6.41 फीसदी है।कोटा हिस्सेदारी को IMF के अकाउंट यूनिट में स्पेशल ड्रॉइंग राइट (SDR) के रूप में जाना जाता है, जिसकी सीधा संबंध वोटिंग से है। अमेरिका का SDR 17.46 फीसदी है, जिस आधार पर वोटिंग शेयर 16.25 फीसदी है। कोटे के आधार पर ही किसी देश की सब्सक्रिप्शन फीस का भी निर्धारण किया जाता है। हर एक देश को सब्सक्रिप्शन फीस का 25 फीसदी SDR या विदेशी मुद्दा के रूप में चुकाना होता है, बाकी 75 फीसदी वह अपने देश की मुद्रा के रूप में चुका सकता है।SDR को आईएमएफ का रिजर्व कहा जाता है। इसमें किसी देश की हिस्सेदारी ही उसका वोट शेयर तय करती है। SDR हिस्सेदारी के आधार पर भारत का वोट शेयर 2.64 फीसदी है। कोटे के आधार पर ही तय किया जाता है कि सदस्य देश IMF से कितना लोन ले सकता है। कोई सदस्य देश कोटे का 145 फीसदी तक एक साल में लोन ले सकता है। हालांकि, कुल लोन 435 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता है। कोटा बढ़ने से सब्सक्रिप्शन फीस भी बढ़ती है और लोन का दायरा भी।आर्थिक उदारीकरण के समय भारत ने 1993 में IMF से आखिरी बार लोन लिया था। हालांकि, साल 2000 तक पूरा लोन चुका दिया गया था। लेकिन, इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि IMF में भारत अपने अलावा बांग्लादेश, भूटना और श्रीलंका का भी प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए, कोटा बढ़ने का फायदा भारत के अलावा इन तीनों देशों को भी होता।IMF के सदस्य देशों के कोटे में बदलाव की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है। जनरल रीव्यू ऑफ कोटा (GRQ) की बैठक हर पांच साल पर होती है। अगर भारत चाहता है कि उसका कोटा बढ़ाया जाए तो उसे इसके लिए 85 फीसदी वोट की जरूरत है और इस मकसद को हासिल करने के लिए हर हाल में अमेरिका को भारत के सपोर्ट में वोट करना होगा। अगर, चीन भी मान जाता है तो संभावनाएं बढ़ जाती हैं।


Source: Navbharat Times October 21, 2019 04:07 UTC



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