Cooking Oil Rates: तेल के सस्ता होने में खली ने डाला खलल, किसान-उपभोक्ता दोनों परेशानमंडियों में सोयाबीन की आवक बढ़ने के बाद भी खाने के तेल के रेट नहीं घट रहे हैं। दीपावली के बाद भी तेल के रेट में कमी नहीं आने से सभी हैरान हैं। कारोबारियों के अनुसार तेल के रेट कम न होने में खली सबसे बड़ा कारण है। तेल मिलें भी घाटे में चल रही हैं।उपभोक्ता को तेल अब भी 140 रुपये लीटर मिल रहा है। प्रतीकात्मक तस्वीरHighLights दीपावली बीतने के बाद भी भाव कम नहीं होना हैरत की बात। 3 दिन में थोक बाजार में घटे दाम, उपभोक्ताओं को राहत नहीं। किसान-उपभोक्ता और उद्योग तीनों परेशान नजर आ रहे हैं।लोकेश सोलंकी, नईदुनिया, इंदौर(Edible Oil Rate)। मध्य प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन की आवक बढ़ रही है, लेकिन खाने का तेल सस्ता नहीं हो रहा। उपभोक्ता के लिए तेल महंगा है जबकि हैरत की बात यह है कि किसानों को सोयाबीन का सही मूल्य नहीं मिल रहा है। तेल मिलें भी घाटे में चल रही हैं।तेल के दामों की राहत, किसानों की उपज का सही मूल्य और तेल उद्योग के लाभ की उम्मीद में सस्ती हो रही खली ने खलल डाल दिया है। सरकार की कोशिशें भी फेल हो गईं। इससे किसान-उपभोक्ता और उद्योग तीनों परेशान नजर आ रहे हैं। दीपावली बीतने के बाद भी तेल का सस्ता नहीं होना हैरान भी कर रहा है।सोयाबीन तेल के रेट 100 रुपये बने हुए हैं 12 सितंबर तक इंदौर के थोक बाजार में सोयाबीन तेल के दाम 100 रुपये और मूंगफली तेल के दाम 110 रुपये के आसपास बने हुए थे। इसके बाद सरकार ने तेल के आयात पर शुल्क 20 प्रतिशत तक बढ़ा दिया। दलील दी गई कि सोयाबीन के सही दाम किसानों को मिल सकेंगे। इसका असर हुआ कि तेल के दाम बढ़ते हुए 150 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गए।किसानों के लिए सोयाबीन की कीमतें नहीं बढ़ी अनोखी बात यह कि किसानों के लिए सोयाबीन की कीमतें नहीं बढ़ सकीं। अब प्रदेशभर की मंडियों में सोयाबीन की आवक बढ़ रही है और दीपावली भी बीत चुकी है लेकिन तेल के दाम नहीं घटे। उपभोक्ता को तेल अब भी 140 रुपये लीटर मिल रहा है। उद्योग वाले और कारोबारी कह रहे हैं कि सोयामील यानी खली ने तेल के सस्ता होने की राह में खलल डाल रखा है। निर्यात रुकने से घाटा सोयाबीन से तेल निकालने के बाद बचा शेष ठोस हिस्सा खली या सोयामील कहलाता है। प्रोटीन से भरपूर होने के कारण सोयामील का उपयोग खाद्य पदार्थों में होता है। भारत से बड़ी मात्रा में सोयामील का निर्यात बीते वर्षों तक होता रहा है। तेल मिलें खली को बेचकर ही अच्छी कमाई भी करती रहीं।
Source: Dainik Jagran November 20, 2024 18:22 UTC