Chandrayaan2 : लॉन्चिंग कल, इसरो तैयार, इसलिए बेहद खास है यह मिशन - News Summed Up

Chandrayaan2 : लॉन्चिंग कल, इसरो तैयार, इसलिए बेहद खास है यह मिशन


नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। Chandrayaan2 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation, ISRO) ने चंद्रयान-2 को ले जाने वाले रॉकेट जीएसएलवी मार्क-III (GSLV MK-III) का रिहर्सल पूरा कर लिया है।‘बाहुबली’ नाम के इस रॉकेट से चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को दोपहर 2:43 बजे लॉन्‍च किया जाएगा। पहले 15 जुलाई को चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग होनी थी लेकिन वक्‍त रहते ही तकनीखी खामी के पता चलने के कारण इसे टाल दिया गया था। इसरो के पूर्व प्रमुख ए.एस. किरण कुमार (Former ISRO Chief AS Kiran Kumar) ने बताया कि परीक्षण के दौरान हमने एक खामी पकड़ी थी जिसे अब दूर कर लिया गया है। अब हम चांद पर जाने के लिए तैयार हैं।मिशन का काउंट डाउन शुरूचंद्रयान-2 की शाम 6 बजकर 43 मिनट से उल्‍टी गिनती शुरू हो गई है। यह आने वाले दिनों में कई कड़ी चुनौतियों का सामना करेगा। चंद्रयान-2 प्रौद्योगिकी में अगली छलांग है क्योंकि इसरो इसे चांद के दक्षिणी ध्रुव के समीप सॉफ्ट लैंडिंग कराने का प्रयास कर रहा है। सॉफ्ट लैंडिंग बेहद जटिल होती है। लैंडिंग के दौरान यह लगभग 15 मिनट तक खतरे का सामना करेगा। स्वदेशी तकनीक से निर्मित चंद्रयान-2 में कुल 13 पेलोड हैं। इनमें पांच भारत के, तीन यूरोप, दो अमेरिका और एक बुल्गारिया के हैं। आठ पेलोड ऑर्बिटर में, तीन लैंडर विक्रम में जबकि दो रोवर प्रज्ञान में मौजूद रहेंगे।कड़ी चुनौतियों से गुजरेगी इसरोधरती से चांद करीब 3,844 लाख किमी दूर है इसलिए कोई भी संदेश पृथ्‍वी से चांद पर पहुंचने में कुछ मिनट लगेंगे। यही नहीं सोलर रेडिएशन का भी असर चंद्रयान-2 पर पड़ सकता है। वहां सिग्नल कमजोर हो सकते हैं। करीब 10 साल पहले अक्टूबर 2008 में चंद्रयान-1 लॉन्च हुआ था। इसमें एक ऑर्बिटर और इम्पैक्टर था लेकिन रोवर नहीं था। चंद्रयान-1 चंद्रमा की कक्षा में गया जरूर था लेकिन वह चंद्रमा पर उतरा नहीं था। यह चंद्रमा की कक्षा में 312 दिन रहा। इसने चंद्रमा के कुछ आंकड़े भेजे थे। बता दें कि चंद्रयान-1 के डेटा में ही चंद्रमा पर बर्फ होने के सबूत पाए गए थे।इसलिए बेहद खास है यह मिशनवैज्ञानिकों का तर्क है कि चंद्रमा सुदूर अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण अड्डा बन सकता है। चांद पर यूरेनियम, टाइटेनियम आदि बहुमूल्य धातुओं के भंडार हैं। वहां सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए भी पर्याप्त अवसर मौजूद हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि चंद्रमा पर मौजूद बहुमूल्य खनिज किसी दिन पृथ्वी के काम भी आ सकते हैं। यही नहीं चंद्रमा के विकास को समझ कर हम पृथ्वी की उत्पत्ति की गुत्थियों को भी सुलझा सकते हैं। समझा जाता है कि करीब 4.51 अरब वर्ष पहले मंगल के आकार के एक पिंड के पृथ्वी से टकराने से उत्पन्न मलबे से चंद्रमा की उत्पत्ति हुई थी। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि ईंधन का स्रोत चांद पर ही उपलब्ध होने से भविष्य में सुदूर अंतरिक्ष अभियानों का संचालन करना भी आसान हो जाएगा।3.8 टन वजनी चंद्रयान-2 को लेकर भरेगा उड़ान640 टन वजनी जीएसएलवी मार्क-III (GSLV MK-III) रॉकेट को तेलुगु मीडिया ने ‘बाहुबली’ तो इसरो ने ‘फैट बॉय’ (मोटा लड़का) नाम दिया है। इसे जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) में चार टन वजनी उपग्रहों को ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है। 375 करोड़ की लागत से बना यह रॉकेट 3.8 टन वजनी चंद्रयान-2 को लेकर उड़ेगा। चंद्रयान-2 की लागत 603 करोड़ है। इसकी ऊंचाई 44 मीटर है जो कि लगभग 15 मंजिली इमारत के बराबर है। अब तक इसरो इस श्रेणी के तीन रॉकेट लांच कर चुका है। 2022 में भारत के पहले मानव मिशन में भी इसी रॉकेट का इस्तेमाल किया जाएगा। 16 मिनट की उड़ान के बाद यह रॉकेट यान को पृथ्वी की बाहरी कक्षा में पहुंचा देगा।इस तरह तय करेगा चांद तक का सफरचंद्रयान-2 के चांद तक पहुंचने में 54 दिन लगेंगे। धरती की बाहरी कक्षा में पहुंचने के बाद चंद्रयान 16 दिनों तक पृथ्‍वी की परिक्रमा करते हुए चांद की ओर बढ़ेगा। इस दौरान इसकी रफ्तार 10 किलोमीटर/प्रति सेकंड होगी। 16 दिन बाद चंद्रयान-2 से रॉकेट अलग हो जाएगा। फिर इसे चांद की कक्षा तक पहुंचाया जाएगा। चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद यह चंद्रमा का चक्‍कर लगाने लगेगा। यह चांद का चक्‍कर लगाते हुए उसकी सतह की ओर बढ़ेगा। चांद की सतह पर पहुंचने के बाद लैंडर और रोवर 14 दिनों तक जानकारियां जुटाते रहेंगे। यह यान चांद के जिस दक्षिणी ध्रुव वाले क्षेत्र में उतरेगा, वहां अब तक किसी देश ने अभियान को अंजाम नहीं दिया है।यह भी पढ़ें: चंद्रयान-2 की उड़ान का गवाह बनेगा मुरादाबादPosted By: Krishna Bihari Singh


Source: Dainik Jagran July 21, 2019 08:47 UTC



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