Chandrayaan-2: चंद्रयान के लिए 'धरती पर उतरा चांद', ये है वैज्ञानिकों की खास तैयारी - News Summed Up

Chandrayaan-2: चंद्रयान के लिए 'धरती पर उतरा चांद', ये है वैज्ञानिकों की खास तैयारी


नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल] इसरो की साख और देश के गर्व और अभिमान से जुड़े महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियान चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) को सफल बनाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को सफलतापूर्वक चांद पर उतारने के लिए चंद्रमा का कृत्रिम माहौल धरती पर तैयार किया। वहां की जमीन का निर्माण किया गया। चांद की सतह पर रहने वाले प्रकाश की तरह की धरती पर व्यवस्था की गई।इसलिए बनानी पड़ी चांद की जमीनधरती की सतह से चांद की सतह एकदम अलग है। इसलिए चांद की सतह पर लैंडर और रोवर उतारने के लिए धरती पर कृत्रिम चांद की सतह का निर्माण जरूरी था। यूआर राव सेटेलाइट सेंटर (इसरो सेटेलाइट सेंटर) के निदेशक रहे एम अन्नादुरई बताते हैं कि चांद की सतह क्रेटर (बड़े-बड़े गढ्डे), चट्टानों और धूल से ढकी हुई है। इसकी मिट्टी की बनावट पृथ्वी से बिल्कुल अलग है। चूंकि उड़ान से पहले लैंडर के पैर और रोवर के पहियों का उस जमीन पर परीक्षण जरूरी था।अमेरिका की बजाय घरेलू मिट्टी का इस्तेमालअमेरिका से चांद सरीखी मिट्टी आयात करना काफी महंगा सौदा था, क्योंकि कृत्रिम सतह बनाने के लिए 60 से 70 टन मिट्टी की जरूरत थी। इसरो ने एक स्थानीय समाधान की तलाश की। कई भूवैज्ञानिकों ने इसरो को बताया कि तमिलनाडु में सलेम के पास एनॉर्थोसाइट चट्टानें हैं, जो चंद्रमा की मिट्टी के सामान हैं। इसरो ने चांद की मिट्टी के लिए तमिलनाडु के सीतमपोंडी और कुन्नामलाई गांवों से एनॉर्थोसाइट चट्टानों को लेने का निर्णय लिया। चट्टानों को आवश्यक आकार में तब्दील किया गया। इसके बाद बेंगलुरु स्थित परीक्षण केंद्र भेज दिया गया। अन्नादुरई बताते हैं कि इस काम के लिए शुरुआती बजट 25 करोड़ रुपये था, लेकिन सेवा प्रदाता द्वारा कुछ न लेने के लिए यह सौदा काफी सस्ता पड़ गया।तैयार की गई कृत्रिम रौशनीचंद्रमा पर सूर्य का प्रकाश जिस वेग से पड़ता है और उसकी प्रदीप्ति जितनी होती है, उसी अनुपात में परीक्षण स्थल पर रौशनी की व्यवस्था की गई।ऐसे हुआ रोवर का परीक्षणशुरुआत में रोवर प्रज्ञान में चार पहिये लगे थे। लेकिन परीक्षण के बाद इसरो के वैज्ञानिकों ने इसे और अधिक स्थिरता देने के लिए इसमें छह पहिये लगाए। कुछ बदलाव पहियों के आकार के साथ भी किए गए। रोवर के भार को कम करने और धरती से कम होने वाले चांद के गुरुत्व बल से तारतम्य बैठाने के लिए उसके साथ हीलियम के गुब्बारे लगाए गए। रोवर और लैंडर के बीच संचार क्षमताओं का परीक्षण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में किया गया।ऐसे हुआ लैंडर का परीक्षणलैंडर विक्रम का परीक्षण करने के लिए, कर्नाटक में चित्रदुर्ग जिले के चल्लाकेरे में चांद के कृत्रिम क्रेटर बनाए गए। सॉफ्ट-लैंडिंग से पहले लैंडर विक्रम के सेंसर यह जांचेंगे कि क्या उतरने वाला भूभाग सुरक्षित है या नहीं। लैंडिंग के बाद भी अगर इलाक़ा उपयुक्त नहीं है तो लैंडर ऊपर जाकर एक स्थान पर स्थिर हो जाएगा।टीम ने एनआरएससी (नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर) से संबंधित छोटे प्लेन में सेंसर लगा दिए और सेंसर की जांच करने के लिए इसे दो बार कृत्रिम सतह के ऊपर उड़ाया। अन्य अंतरिक्ष एजेंसियां भी अपने उपकरणों की जांच के लिए ऐसे परीक्षण स्थलों का निर्माण करती हैं जिससे वास्तविक रूप से उतरने में लैंडर को कोई दिक्कत न आए। लैंडर के एक्युटेटर्स महेंद्रगिरि के इसरो सेंटर में जांचे गए। यहीं इसके थ्रस्टर्स की भी जांच की गई। लैंडर के पैर की दो परिस्थितियों में जांच की गई। एक उतरते समय इंजन बंद करके और दूसरा इंजन चालू रहते।Chandrayaan 2: चांद का हाल जानने के लिए कल रवाना होगा यान, Countdown शुरूPosted By: Tanisk


Source: Dainik Jagran July 21, 2019 15:45 UTC



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