2019 lok sabha chunav: लोकसभा चुनाव: जानें, समर में उतरने के लिए अखिलेश ने क्यों चुनी आजमगढ़ की सीट - 2019 lok sabha chunav know why gathbandhan spells magic in azamgarh akhilesh yadav has a headstart - News Summed Up

2019 lok sabha chunav: लोकसभा चुनाव: जानें, समर में उतरने के लिए अखिलेश ने क्यों चुनी आजमगढ़ की सीट - 2019 lok sabha chunav know why gathbandhan spells magic in azamgarh akhilesh yadav has a headstart


आजमगढ़ का गणितयूपी में किसकी हवा, दिल्ली आए लोगों ने बतायाXलोकसभा चुनाव यूपी की हॉट सीट कही जा रही आजमगढ़ की खूब चर्चा है। 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद एसपी संरक्षक मुलायम सिंह यादव यहां से विजय हासिल करने में सफल रहे थे। समाजवादियों का गढ़ माने जाने वाले आजमगढ़ में इस बार मुलायम के बेटे और सूबे के पूर्व सीएम अखिलेश यादव खुद मैदान में है। दूसरी तरफ अभी बीजेपी ने यहां कोई उम्मीदवार घोषित नहीं किया है।उधर, बीजेपी की तरफ से भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' के मैदान में उतरने की चर्चा जरूर है। आजमगढ़ में अभी राजनीतिक पार्टियों की तरफ से कोई खास हलचल चुनाव को लेकर नहीं दिख रही है। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया की टीम जब यहां पहुंची तो पार्टियों की राजनीतिक हलचल जरूर कम दिखी लेकिन चुनाव को लेकर स्थानीय लोगों का मूड खूब समझ आया।12 मई को आजमगढ़ में चुनाव है। हालांकि यहां राजनीतिक हलचल काफी कम है। राजनीतिक पार्टियों और प्रत्याशियों के पोस्टर्स ना के बराबर हैं। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि बीजेपी ने अभी तक अपना प्रत्याशी उतारा नहीं है। गठबंधन की तरफ से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का नाम जरूर यहां से फाइनल है। यहां के करीब 136 साल पुराने शिबली नैशनल कॉलेज के शिक्षकों के एक ग्रुप का मानना है कि अखिलेश की जीत यहां से तय है।2011 की जनगणना के मुताबिक आजमगढ़ में करीब 16 फीसदी मुसलमान हैं। वहीं करीब 25 फीसदी दलित हैं। अगर चुनावों में जातिगत आंकड़े हावी होते हैं तो गठबंधन में बीएसपी के साथ आने का फायदा एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव को यहां मिलना तय है। चुनावी इतिहास को भी देखें तो भी इस क्षेत्र में 70 के दशक के बाद एसपी-बीएसपी का बोलबाला रहा है। 2014 के मोदी लहर में भी मुलायम सिंह भी जीत दर्ज कर एसपी के गढ़ को बचाए रखने में कामयाब हुए थे।हालांकि कुछ जानकार इस बात को लेकर अभी संशय में हैं कि क्या चुनाव बाद भी एसपी-बीएसपी का गठबंधन बरकरार रहेगा या फिर मौका मिलने पर दोनों अलग हो जाएंगे। शिबली कॉलेज में लॉ के एक टीचर कहते हैं, 'ऐसे समय में जबकि सांप्रदायिक तापमान बढ़ रहा है, हम दोहरे संशय में हैं। हमें इस बात का भी डर है कि कहीं हम जिन पार्टियों को वोट दे रहे हैं, वही बाद में हमें धोखा ना दे दें।'एक अन्य टीचर एसजेड अली कहते हैं, 'राष्ट्रीय स्तर के चुनावों (आम चुनाव) में मुस्लिम अक्सर कांग्रेस के साथ जाते हैं। लेकिन सवाल हमेशा हमारे सामने यही होता है कि क्या कांग्रेस इतनी मजबूत है कि वह जीत सके। हम कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं। पर, कई बार हमें लगता है कि कांग्रेस को हमारे वोट से बीजेपी की राह आसान हो जाएगी।'उधर, दोनों ही अध्यापक इस बात से निराश दिखे कि वाराणसी सीट से नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस ने प्रियंका गांधी वाड्रा को मैदान में क्यों नहीं उतारा है। उधर, शाह मजिद इसे दूसरे रूप में देखते हैं। वह कहते हैं, 2004 में भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी। मीडिया और सभी सर्वे बता रहे थे कि बीजेपी बड़ी जीत दर्ज करने वाली है। पर, हुआ क्या कांग्रेस की सरकार बनी। इस बार भी वैसा ही कुछ हो रहा है। मुझे बीजेपी के खिलाफ एक लहर दिख रही है।उधर, पूर्व सरकारी कर्मचारी रविशंकर सिंह चुनावों की बात छेड़ने पर कहते हैं, इस बास इस सीट पर कड़ा मुकाबला तय है। मुझे शक है कि दलित यादवों के लिए वोट करेंगे। वह खुद ठाकुर हैं और वह साफ कहते हैं कि उनका वोट बीजेपी के लिए तय है। आजमगढ़ में यह अभी तक साफ नहीं है कि यहां अखिलेश के सामने मैदान में कौन होगा। बीजेपी की तरफ से उम्मीदवारों में रमाकांत यादव का भी नाम चल रहा है जो कि 2009 में बीजेपी से सांसद रह चुके हैं। पर, रमाकांत यादव इससे पहले एसपी और बीएसपी से भी सांसद रहे हैं। ऐसे में उन पर बीजेपी कितना भरोसा करती है, यह तो आने वाला वक्त बताएगा।उधर, भोजपुरी स्टार दिनेश लाल को लेकर भी लोग बंटे हुए हैं। सब्जी व्यापारी राकेश यादव निरहुआ को मदारी कहते हैं। राकेश कहते हैं, कई बार सड़क पर कुछ लोग करतब दिखाते मिलते हैं। आप रूककर उसे देखते भी हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें पैसा भी दें। दूसरे शब्दों में वह कहते हैं, इसका यह मतलब है कि दिनेश लाल को देखने के लिए भीड़ तो उमड़ सकती है लेकिन वह वोटों में तब्दील नहीं होगी।उधर, एक स्थानीय पत्रकार कहते हैं, एसपी और बीएसपी कार्यकर्ताओं के बीच संबंध पहले से बेहतर हुए हैं और यह स्थिति अखिलेश के पक्ष में है। हालांकि बीजेपी कैडर भी यहां काफी मेहनत से जुटा है। उधर, शमीम मानते हैं कि अखिलेश की जीत तय है।


Source: Navbharat Times April 02, 2019 03:02 UTC



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