दैनिक भास्कर Mar 16, 2020, 09:20 AM ISTनई दिल्ली. दुनिया एक तरफ मेडिकल साइंस में तेजी से तरक्की कर रही है। वहीं दूसरी तरफ हर साल कोरोना वायरस जैसी नई तरह की बीमारी महामारी का रूप ले रही हैं, जिसका शुरुआती इलाज भी मुश्किल होता है। इस तरह की महामारी के चलते वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होता है। यूरोपियन पॉर्लियामेंट की रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के चलते वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था को सलाना 500 बिलियन डॉलर यानी करीब 36,97,950 करोड़ रुपए नुकसान उठाना पड़ता है। यह आंकड़ा कुल वैश्विक आमदनी का 0.6 फीसदी है। वहीं वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक महामारी से दुनियाभर में होने वाली मौतों की संख्या करीब 7,20,000 है।अर्थव्यवस्था को भारी नुकसानरिपोर्ट के मुताबिक साल 2013-2016 में इबोला वायरस के चलते लाइबेरिया जैसे देशों की जीडीपी ग्रोथ रेट में 8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इन महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब और लोअल मिडिल इनकम वाले देश होते हैं। महामारी से गरीब और मिडिन इनकम ग्रुप वाले देशों की अर्थव्यवस्था 1.6 फीसदी की दर से प्रभावित होती है, जबकि विकसित देशों पर महामारी से 0.3 फीसदी असर पड़ता है। साल 2019 की वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (WHO) और विश्व बैंक (World Bank) की साझा रिपोर्ट के मुताबिक महामारी से ग्लोबल जीडीपी 2.2 फीसदी से 4.8 फीसदी की दर से कमजोर होती है। एक अनुमान के मुताबिक वैश्किव अर्थव्यवस्था को 3 ट्रिलियन डॉलर तक नुकसान उठाना पड़ता है। सहारा और अफ्रीकन देशों की जीडीपी को महामारी से 1.7 फीसदी की दर से कमजोर हुई है। इससे इन देशों को 28 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा है। इंटरनेशनल मॉनिटरिंग फंड (IMF) का भी मानना है कि इस तरह की महामारी से कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देशों पर ज्यादा असर पड़ता है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक इबोला महामारी से पहले गुआना, लाइबेरिया जैसे देशों की अर्थव्यवस्था की रफ्तार दुनिया में सबसे तेज थी। लेकिन इबोला के चलते इन देशों में एग्रीकल्चर सेक्टर में कमी के चलते खाने का अकाल सा हो गया। साथ ही गुड्स और सर्विस के लिए अन्य देशों पर निर्भरता बढ़ गई।महामारी से कारोबार पर सीधा असरवायरस के चलते सबसे पहले पब्लिक और प्राइवेट हेल्थ सिस्टम प्रभावित होता है। अचानक अस्पतालों में मरीजों के एडमिट होने की संख्या बढ़ जाती है। इससे एडमिनिस्ट्रेटिव और आपरेशनल खर्च बढ़ जाता है। उदाहरण के तौर पर जून 2009 और मार्च 2011 के मबीच एच1एन1 के वक्त ब्रिटेन के 170 अस्पताल में एडमिशन बढ़ गए थे। इसी तरह साल 2017 में जीका वायरस के वक्त लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों का मेडिकल खर्च 7 स 18 बिलियन बढ़ गया था। महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला सेक्टर टूरिज्म है। अमेरिका के सेंट्रल फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की रिपोर्ट के मुताबिक एचआईवी के इलाज पर सालाना तौर पर औसतन 23,000 डॉलर का खर्च आता है। साल 2010 में यह खर्च 38,0000 डॉलर था। महामारी के चलते शॉपिंग मॉल बंद हो जाते हैं। कंपनियां अपना प्रोडक्शन रोक देती हैं, जिससे वर्कफोर्स प्रभावित होती है। इससे ग्राहकों के खर्च पर भी असर पड़ता है। साल 2003 में सार्स वायरस के चलते हांगकांग, सिंगापुर कंज्यूमर खर्च प्रभावित होगा, जबकि इसी तरह कोरोना वायरस के चलते चीन में इसी तरह का असर देखा गया था।ट्रेड का महामारी से सीधा संबंधमहामारी का सीधा संबंध ट्रेड से है, जिस रीजन में महामारी फैलती है, वहां ट्रेड में गिरावट दर्ज की जाती है।ग्लोबल स्तर पर वर्टिब्रेट यानी फिश चिड़िया, पक्षी, जानवर से मनु्ष्य में 60 फीसदी बीमारियां आता हैं। इससे खासकर एग्रीकल्चर और ट्रेड प्रभावित होता है। अमेरिका में एक वक्त जानवरों में इन्फेक्शन फैलने की वजह से कुल मीट प्रोडक्शन 12 फीसदी कम हो गया था। इसी तरह साल 1996 में Creutzfeldt-jocob बीमारी फैलने पर यूके और 3.4 बिलियन पाउंड व्यापार पर असर पड़ा था। इसी तरह 1997 में रिफ्ट वैली फीवर फैलने की वजह से सोमालिया का प्रोडक्शन और ट्रेड दोनों 60 से 65 फीसीद कम हो गया था।
Source: Dainik Bhaskar March 16, 2020 04:07 UTC