Dainik Bhaskar Jul 25, 2019, 08:11 AM ISTन्यायशास्त्र के दो प्रचलित सिद्धांत हैं पहला, कोई कानून सही है या गलत यह पता लगाने के लिए यह देखना चाहिए कि उसके न होने पर क्या-क्या खतरे हो सकते हैं; और दूसरा, ऐसा कानून, जिसे तोड़कर बचना आसान हो, समाज को लाभ की जगह नुकसान पहुंचाता है।कर्नाटक में सरकार तो बहुमत के अभाव में गिर गई, लेकिन जिस दिन दलबदल कानून को ठेंगा दिखाते हुए 12-15 बागी विधायक मंत्री या अन्य समकक्ष पद की शपथ लेंगे, वह दिन भारत के संविधान की गरिमा के लिए शायद सबसे बुरा दिन होगा। सुप्रीम कोर्ट ने बागी विधायकों को सदन में आने न अाने की छूट देकर और स्पीकर को व्हिप का उल्लंघन करने वाले विधायक के भाग्य का फैसला करने की छूट देकर फैसले में संतुलन बनाने की कोशिश की थी।सरकार तो गिर गई और नियमानुसार नया स्पीकर 14 दिन बाद चुना जाएगा, लेकिन वर्तमान में यही स्पीकर कांग्रेस और जद (एस) की शिकायत पर कानूनन 15 दिन के भीतर फैसला लेंगे। उधर बागी विधायकों ने सारी पैंतरेबाजी शुरू कर दी है- पहले कहा कि उन्हें स्पीकर का नोटिस मिला ही नहीं और अब जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय मांग रहे हैं ताकि उस समय तक भाजपा का स्पीकर आ जाए और वे शपथ ले सकें।जाहिर है अगले दो-चार दिन में ही स्पीकर यह फैसला करने जा रहे हैं और फैसला क्या होगा यह भी स्पष्ट है। स्पीकर के फैसले को नया स्पीकर नहीं बदल सकता और केवल अदालत ही उसका संज्ञान ले सकती है। यानी मामला फिर एक बार सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर। अब इसका दूसरा पहलू देखें। अगर स्पीकर यह फैसला न लें तो ये सब मंत्री सहित तमाम सरकारी पदों पर बैठकर पूरे भारत के जनप्रतिनिधियों को संदेश देंगे कि व्हिप जारी होने से पहले इस्तीफा दो और संविधान की अनुसूची 10 (4) (2) के- ‘केवल दो-तिहाई बहुमत और साथ में किसी अन्य दल में विलय- की शर्त को अंगूठा दिखाते हुए नई सरकार में मंत्री बन उसी संविधान में निष्ठा की शपथ लो।अगर मैकॉले की दंड संहिता 259 साल तक भारत-पाकिस्तान में बदस्तूर कायम रह सकती है तो क्यों दलबदल कानून को 2003 में और सख्त बनाया गया और फिर भी हर बार कुछ समय बाद इसे चुनौती देकर मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर डाल दिया जाता है। शायद ‘माननीयों’ को भी अभी अपने ही बनाए कानून के पालन में ज्यादा भरोसा नहीं हो पा रहा है।
Source: Dainik Bhaskar July 24, 2019 19:18 UTC