आईआईटी कानपुर के शिक्षक ने छात्रों द्वारा यह नज्म गाए जाने के बाद शिकायत दर्ज कराईनज्म की आखिरी पंक्ति को लेकर विवाद, जिसमें सत्ता को उखाड़ फेकने की बात कही गई हैDainik Bhaskar Jan 01, 2020, 07:24 PM ISTकानपुर. आईआईटी कानपुर पाकिस्तान के शायर फैज अहमद 'फैज' की नज्म में हिंदू विरोध जांच करेगी। मंगलवार को संस्थान ने इसके लिए एक पैनल गठित किया। 17 दिसंबर को जामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों पर पुलिस ने कार्रवाई के विरोध में आईआईटी कानपुर के छात्रों ने फैज की नज्म गाई थी। फैज की नज्म, ‘लाजिम है कि हम भी देखेंगे’ की आखिरी पंक्ति में हिंदू विरोधी भावनाओं के खिलाफ एक फैकल्टी ने इसकी शिकायत की थी।आईआईटी का पैनल फैज की नज्म में हिंदू विरोध के अलावा छात्रों द्वारा धारा 144 तोड़कर जुलूस निकालने और छात्रों की सोशल मीडिया पोस्ट की भी जांच करेगा। फैज की जिस नज्म के खिलाफ शिकायत हुई, उसमें आखिरी पंक्ति में 'बस नाम रहेगा अल्लाह का' कहा गया है। आईआईटी के उपनिदेशक मनिंद्र अग्रवाल ने कहा, “वीडियो में छात्र फैज की कविता गाते हुए दिख रहे हैं, जिसे हिंदू विरोधी भी माना जा सकता है। इसके अलावा छात्रों ने प्रदर्शन के दौरान देशविरोधी नारेबाजी की और सांप्रदायिक बयान दिए।”फैज की नज्म, जिस पर विवाद हैलाजिम है कि हम भी देखेंगे, जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से।सब भूत उठाए जाएंगे, हम अहल-ए-वफा मरदूद-ए-हरम, मसनद पे बिठाए जाएंगे।सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे।बस नाम रहेगा अल्लाह का। हम देखेंगे।जिया उल हक के खिलाफ लिखी नज्मफैज ने 1979 में पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक उसके सैनिक शासन के विरोध में यह नज्म लिखी थी। सत्ता से विरोध के चलते फैज कई साल जेल में भी रहे।छात्रों पर देशविरोधी नारेबाजी का आरोपआईआईटी कानपुर के छात्रों ने जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के समर्थन में 17 दिसंबर को परिसर में मार्च निकाला था। इसी दौरान उन्होंने फैज की यह कविता गाई थी। इसमें नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले जामिया के छात्रों पर पुलिस कार्रवाई का विरोध किया गया था।
Source: Dainik Bhaskar January 01, 2020 12:27 UTC