लद्दाख में पिघलते ग्लेशियर ला सकते हैं तबाही: पैंगोंग में झीलें फटने से अचानक बाढ़ का खतरा, इलाके में पानी के स्रोत भी खत्म हो सकते हैं - News Summed Up

लद्दाख में पिघलते ग्लेशियर ला सकते हैं तबाही: पैंगोंग में झीलें फटने से अचानक बाढ़ का खतरा, इलाके में पानी के स्रोत भी खत्म हो सकते हैं


Hindi NewsNationalGlaciers Are Constantly Melting In Ladakh, Threat Imminentलद्दाख में पिघलते ग्लेशियर ला सकते हैं तबाही: पैंगोंग में झीलें फटने से अचानक बाढ़ का खतरा, इलाके में पानी के स्रोत भी खत्म हो सकते हैंलेह 3 घंटे पहले लेखक: हीरा अजमतकॉपी लिंकवीडियोलद्दाख के पैंगोंग इलाके में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। 1990 के बाद से अब तक ग्लेशियर कवर का 6.7% हिस्सा पिघल चुका है। कश्मीर यूनिवर्सिटी की नई रिसर्च में यह बात सामने आई है। ग्लेशियरों का इस तरह सिकुड़ना अच्छा संकेत नहीं है। इससे स्थानीय लोग भी परेशान हैं।कश्मीर विवि के जियोइनफॉर्मेटिक्स विभाग ने यह स्टडी की है। रिसर्च में अहम भूमिका निभाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. इरफान रशीद ने बताया कि हमने 87 ग्लेशियरों के साल 1990 से 2020 तक उपलब्ध सैटेलाइट डेटा का अध्ययन किया है। इसमें पता चला है कि ग्लेशियरों के पिघलने से पैंगोंग समेत कई झीलों का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। इससे झीलें फैल रही हैं और उनके फटने का खतरा बढ़ता जा रहा है।खत्म हो जाएगी पैंगोंग लेकस्टडी के मुताबिक ग्लेशियर में हर साल 0.23% की कमी आ रही है। प्रोफेसर ने बताया कि जरूरी बात यह है कि पैंगोंग झील इन ग्लेशियरों से भरती है। यदि वे गायब हो जाते हैं, तो इससे झील में भी पानी खत्म हो जाएगा और ये भी गायब हो जाएगी। इस साल के अंत तक इन ग्लेशियरों का पिघलना ऐसे ही जारी रहेगा।किसानों का जीवन बर्फ से जुड़ास्थानीय निवासी दोर्जे अंगचुक ने बताया कि कई किसान पहाड़ों में बर्फ और ग्लेशियरों से निकलने वाले पानी का उपयोग सिंचाई के लिए करते हैं। इससे वह खेती कर पाते हैं। लद्दाख में पहले से ही पानी की कमी है। अगर, ग्लेशियर भी कम हो गए तो डर है कि पानी की किल्लत कई गुना बढ़ जाएगी।ग्लेशियरों का पिघलना दिखा रही, स्टडी में इस्तेमाल की गई यह तस्वीर।लद्दाख की अर्थव्यवस्था को खतरादोर्जे ने बताया कि ग्लेशियरों के पिघलने से पर्यावरण और लद्दाख की अर्थव्यवस्था को भी खतरा है, जो पिछले कई दशकों से पर्यटकों पर निर्भर रही है। पैंगोंग झील 4,350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह दुनिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। जिसकी सुंदरता लोगों को आकर्षित करती है। लगभग 160 किमी तक फैली, पैंगोंग झील का एक तिहाई हिस्सा भारत में और अन्य दो-तिहाई चीन में स्थित है। हर साल कई सैलानी सिर्फ इसे ही देखने लद्दाख आते हैं।पैंगोंग को बचाने करने होंगे ये उपायस्टडी में सहयोगी रहे प्रोफेसर इरफान ने बताया कि हमें इस मुसीबत से बचने के लिए कुछ उपाय करने होंगे। सबसे पहले पूरे क्षेत्र में जारी गतिविधियों, लोगों की भीड़, मशीनों के इस्तेमाल, बढ़ते कार्बन उत्सर्जन को रोकना होगा। पेट्रोल-डीजल के बजाय सौर ऊर्जा और CNG का इस्तेमाल करना होगा। हमें पर्यावरण के हिसाब से काम करना होगा।प्रशासन भी कर रहा कामलद्दाख के प्रशासनिक सचिव रविंदर कुमार ने कहा कि सरकार अगले पांच साल में क्षेत्र के ईकोलोजिकल कंजर्वेशन को प्राप्त करने की योजना बना रही है। इसके तहत, हम नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (NTPC) की मदद से ग्रीन हाइड्रोजन स्थापित करेंगे। यदि यह सफल रहा, तो पायलट परियोजना को बढ़ाया जाएगा और परिवहन क्षेत्र को हरा-भरा बनाने में इसका मजबूत प्रभाव पड़ेगा।


Source: Dainik Bhaskar February 14, 2022 01:55 UTC



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