रिपोर्ट / सांप के काटने से दुनिया में हर साल 1.38 लाख लोगों की मौत, 4 लाख अपाहिज हो जाते हैं - News Summed Up

रिपोर्ट / सांप के काटने से दुनिया में हर साल 1.38 लाख लोगों की मौत, 4 लाख अपाहिज हो जाते हैं


Dainik Bhaskar May 28, 2019, 02:58 PM ISTसांप के काटने से हर साल विश्व में एक लाख 38 हजार लोग मारे जाते हैंस्नेकबाइट से ज्यादा मौतें अफ्रीका के सहारा क्षेत्र और एशिया में होती हैंदुनिया में अभी भी एंटी-वेनम की कमी, अस्पताल पहुंचने में देरी से होती हैं मौतेंबैंकॉक. सांप के काटने (स्नेकबाइट) से होने वाली मौतों को रोकना अभी भी बड़ी समस्या बना हुआ है। सांप से काटने से दुनियाभर में रोज 200 लोगों की मौत हो जाती है। इतना ही नहीं सांप के काटने से हर साल विश्व में एक लाख 38 हजार लोग मारे जाते हैं। सांप के जहर के असर चलते सालाना 4 लाख लोग अपाहिज हो जाते हैं। ज्यादा मौतें अफ्रीका के सहारा क्षेत्र और एशिया में होती हैं। इसकी वजह दुनिया में एंटी-वेनम (सांप के जहर को खत्म करने वाला) की खासी कमी होना है।सांप काटने के बाद बचना भाग्यशालीथाईलैंड के दमकलकर्मी पिन्यो पूकपिन्यो खुद को भाग्यशाली बताते हैं। उन्हें हाथ के अंगूठे में किंग कोबरा ने काट लिया था, लेकिन वे 15 मिनट के अंदर अस्पताल में पहुंच गए। किंग कोबरा का जहर तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) को खत्म कर देता है। पिन्यो को तुरंत एंटी-वेनम दिया गया। पिन्यो बताते हैं कि डॉक्टर को पहली बार में यकीन ही नहीं हुआ कि मुझे किंग कोबरा ने काटा। मैंने उन्हें बताया कि सांपों को लेकर लोगों को प्रशिक्षित करता हूं। मैं सांपों को अच्छी तरह पहचानता हूं।पिन्यो ने यह भी बताया कि जहर का असर दो महीने रहा। मुझे दो बार सर्जरी (मृत ऊतकों को निकलवाने) के लिए अस्पताल जाना पड़ा। कई लोग पिन्यो जैसे भाग्यशाली नहीं होते। वे जहरीले सांप के काटने के तुरंत बाद या तो अस्पताल नहीं पहुंच पाते या फिर अस्पताल में एंटी-वेनम नहीं होता। यूके के वेलकम ट्रस्ट के मुताबिक- उष्णकटिबंधीय इलाकों में किसी भी बीमारी से ज्यादा मौतें सांप के काटने से होती हैं। वेलकम के डायरेक्टर प्रो.माइक टर्नर के मुताबिक- सांप के काटने से जिंदा बचने की संभावना काफी ज्यादा होती है लेकिन मरीज को सही वक्त पर एंटी-वेनम मिलना चाहिए।ये है नया प्लानसांप के काटने से होने वाली मौतों कम करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी योजना तैयार की है। इसके लिए 2030 तक 136 मिलियन डॉलर (943 करोड़ रुपए) खर्च करने का प्लान है ताकि ज्यादा से ज्यादा जगहों पर लोगों को एंटी-वेनम समय पर मिल सके। वहीं वेलकम ट्रस्ट भी स्नेकबाइट के इलाज के लिए 7 साल में 101 मिलियन डॉलर (करीब 700 करोड़ रु.) खर्च करेगा।तकनीक में आया बदलाव19वीं सदी के बाद से मौजूदा पद्धति में थोड़ा बदलाव आया है। जहर को एक सांप से निकाला जाता है और प्रतिरक्षा (इम्यून) प्रतिक्रिया जांचने के लिए कम खुराक में घोड़े या अन्य जानवर को दिया जाता है। जहर के खिलाफ काम करने वाले एंटीबॉडी हासिल करने के लिए पशु के रक्त को निकालकर शुद्ध किया जाता है। वेलकम के स्नेकबाइट साइंटिस्ट फिल प्राइस कहते हैं- एंटी-वेनम अभी भी परफेक्ट से बहुत दूर हैं। इसका उस तरह से चिकित्सकीय परीक्षण नहीं किया जाता, जिस तरह से अन्य दवाओं का होता है।जहरीले सांपों का कहां खतराप्राइस के मुताबिक- स्नेकबाइट अभी भी दुनिया में सबसे खतरनाक है। अफ्रीका में वाइपर पाया जाता है तो मिडल-ईस्ट (पश्चिम एशिया), पाकिस्तान और दक्षिण-पूर्व एशिया में रसेल वाइपर की बहुतायत है। भारत के कई इलाकों में रसेल वाइपर और केरल में किंग कोबरा पाया जाता है।


Source: Dainik Bhaskar May 28, 2019 02:15 UTC



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