मुजफ्फरपुर। एसकेएमसीएच का वार्ड छह बुधवार को चहक रहा था। कोई पीड़ा नहीं थी। दर्द का कोई भाव नहीं था। आज यहां एक 'मां' जीवन से लाचार 'बेटे' पर ममता लुटा रही थी। भावनाएं नि:शब्द थीं, कंठ अवरूद्ध थे, आंखों से बहते नीर खामोश पलों को बयां कर रहे थे। आज एक अनाथ को फिर ममता की छांव मिल गई। पूरा आसमां उसका हो गया।छह माह पूर्व एक ट्रेन हादसे में अपने दोनों पांव गंवाने के बाद मोतीपुर के नरियार के बैद्यनाथ सहनी के 18 वर्षीय पुत्र मिठू कुमार को एसएकेएमसीएच में भर्ती कराया गया। 25 सितंबर को 'बचपन में छिनी ममता की छांव, संभलने से पहले नहीं रहे पांव' शीर्षक से छपी खबर में उसकी पीड़ा दर्शाई गई। इसे देख उसकी मदद में कई लोग आए। बुधवार को उसकी मौसी शर्मिला देवी दैनिक जागरण लिए हुए उसकी तलाश करते वार्ड में पहुंचीं। मिठू को देखते ही दोनों फूट-फूटकर रोने लगे। शर्मिला देवी ने बताया कि दैनिक जागरण में छपी खबर को देखकर पूछते-पूछते यहां पहुंची हूं।सिसकियां रह गई थीं शेषथोड़ी देर बाद शर्मिला देवी ने मिठू को स्नान कराया। स्नान के बाद शर्मिला ने उसे अपने हाथों से खाना खिलाया। उसने कहा आज मेरी मां मिल गई। बता दें कि बचपन में मां-बाप को खो देनेवाले मिठू एकदम असहाय हो गया। जीवन के सारे सपने ध्वस्त हो गए। भाइयों ने भी दूरी बना ली। अपने दूर होते गए, बस अस्पताल के बिस्तर पर सिसकियां शेष रह गई।पैसे लेने से कर दिया इन्कारमौके पर मौजूद मरीजों के परिजन मिठू को कुछ रुपये देने लगे। लेकिन, उसने इन्कार कर दिया। उसने बड़ी दृढ़ता से कहा, पांव नहीं रहे तो क्या हुआ, ममता की छांव मिल गई। लोगों के आसरे जीवन काटने की इच्छा नहीं। स्वस्थ होकर जीवन में एक बार फिर उठने की कोशिश करूंगा।Posted By: Jagran
Source: Dainik Jagran September 27, 2018 01:30 UTC