पांच साल बाद होने वाले पंच-सरपंच, पालिका-निगम, लोकसभा व विधानसभा चुनाव में 1-1 वोट के बड़े मायने हैं। इसका अंदाजा 1982 के साढौरा विधानसभा चुनावों से लगाया जा सकता है, जिसमें पहले 20981 वोट पाकर भाजपा से भागमल की जीत बताई गई। बाद में कांग्रेस के प्रभुमल की हाईकोर्ट में दर्ज कराई याचिका पर मतगणना में रद 250 में 15 वोट प्रभुमल के पक्ष में आए और प्रभुमल की 10 वोटों की हार 5 वोटों की जीत में बदल गई। ऐसे ही कई चुनावों में कम वोट के अंतर से जीत के उदाहरण हुए। बावजूद इसके हजारों लोग मतदान करने नहीं पहुंच रहे। जबकि कुछ ऐसे भी हैं, जो शरीर से मोहताज या उम्रदराज होकर भी हर चुनाव में वोट देने पहुंच रहे हैं। 98 वर्ष की उम्र में पंच-सरपंच, पालिका, लोस व विस चुनावों में 56 बार वोट कर चुके घेसपुर के रामधन अब 57वीं बार वोट का इस्तेमाल करेंगे। चलने-फिरने से मोहताज होने पर भी वोट देने से नहीं चूके| जन्म 1921 में पाकिस्तान के मुन्नाआला गांव में हुआ। भारत-पाक बंटवारे में परिवार सहित भारत आ गए। 1949 तक 3 वर्ष मुलाना के पास गांव हुड्डियों में रहे। उसके बाद घेसपुर में बस गए। गांव के सबसे उम्रदराज हैं। चल-फिर नहीं सकते हैं, लेकिन हर बार अपने बेटे के साथ वोट डालने जाते हैं। आज तक अब तक 56 बार वोट कर चुका हूं। इस उम्र में भी मतदान केंद्र पहुंच वोट जरूर करूंगा। लोगों को वोट जरूर देनो चाहिए। जैसा रामधन ने बतायाजठलाना | रामधन।यमुनानगर | राजेश कुमार।जगाधरी के गोमती मोहल्ला के 25 वर्षीय मोनू जन्म से नेत्रहीन हैं। बावजूद इसके हाल ही में ग्रुप-डी की परीक्षा पास कर पीडब्ल्यूडी में सेवा दे रहे हैं। नेत्रहीन होने के बावजूद पिता नरेश कुमार के साथ तीन बार वोट दे चुके हैं। मोनू ने कहा कि नेत्रहीन है तो क्या हुआ? भले विकास दिखता नहीं, लेकिन महसूस तो किया जा सकता है। इसी आधार पर वोट के लिए अपना मन बनाता हूं और फार्म पर अंगूठा लगाने के बाद पिता को कहकर अपने प्रत्याशी को वोट देता हूं। इसी तरह कैंप के 50 वर्षीय कुलदीप शर्मा कुछ वर्ष पहले हादसे में टांग गंवा चुके हैं। पूरी तरह स्वस्थ थे, तब भी और हादसे के बाद भी मतदान करने जरूर देने जाते हैं। इसी तरह बचपन से दिव्यांग 52 वर्षीय राजेश कुमार कपड़ा सिलाई का काम करते हैं, वे भी हर चुनाव में वोट जरूर डालते हैं।यमुनानगर | कुलदीप।
Source: Dainik Bhaskar October 21, 2019 02:51 UTC