जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। वाहन प्रदूषण के खिलाफ सरकार के अचानक कठोर रुख अख्तियार करने से विशेषज्ञ हैरान हैं। उनका मानना है कि आटोमोबाइल उद्योग को मंदी से उबारने की कोशिश में सरकार अच्छे कदमों के साथ कुछ अस्वाभाविक व अव्यवहारिक कदम उठा रही है जिनसे ट्रांसपोर्ट व्यवसाय के साथ अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए इन पर निर्णय लेने से पहले व्यापक विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।विशेषज्ञ एसपी सिंह के मुताबिक इलेक्ट्रिक वाहनों पर तो जीएसटी दर को 5 फीसद किया जाना सरकार का अच्छा कदम है। मगर सीएनजी और एलएनजी वाहनों को पेट्रोल और डीजल वाहनो की भांति 12 फीसद वर्ग में बनाए रखना समझ से परे है। जबकि ये ईधन भी हरित ईधन की श्रेणी में आते हैं। इसी प्रकार पेट्रोल-डीजल वाहनों के रजिस्ट्रेशन शुल्क में अनापशनाप बढ़ोतरी के प्रस्ताव को भी विशेषज्ञों ने बेतुका बताया है।अभी तक ऊंचे टैक्स रेट के कारण दुपहियों को छोड़ इक्का-दुक्का चौपहिया इलेक्ट्रिक वाहन ही बाजार में आए हैं। लेकिन इनके दाम इतने ज्यादा हैं कि आम मोटर चालक इन्हें खरीदने के बारे में सोच भी नहीं सकता। विशेषज्ञों का कहना है कि जीएसटी छूट के बावजूद नए इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन बढ़ने और बाजार में आने में वक्त लगेगा। फिर भी इनके दाम इतने कम नहीं होंगे कि मौजूदा पेट्रोल डीजल वाहनों की जगह ले सकें। ऐसे में लोग अप्रैल, 2020 से बनने वाले नए बीएस-6 मानक पेट्रोल-डीजल वाहनों पर निर्भर रहेंगे। लिहाजा सरकार को इनके पंजीयन शुल्क मे बड़ी वृद्धि से बचना चाहिए।गौरतलब है कि सरकार ने पेट्रोल एवं डीजल से चलने वाले वाहनों को हतोत्साहित करने के लिए इनके पंजीयन शुल्क में 10-27 गुना तक की बढ़ोतरी का प्रस्ताव किया है। इसमें सबसे ज्यादा बढ़ोतरी पुराने वाहनों के रजिस्ट्रेशन (नवीकरण) शुल्क में होगी, क्योंकि ये सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं।इस संबंध में सड़क परिवहन मंत्रालय की ओर से जारी मसौदा अधिसूचना के मुताबिक पेट्रोल और डीजल चालित नए दुपहिया वाहन का पंजीयन शुल्क 50 रुपये से बढ़ाकर 1000 रुपये, तिपहिया वाहन का 300 रुपये से बढ़ाकर 5000 रुपये, व्यक्तिगत कार या हल्के मोटर वाहन (पर्सनल एलएमवी) का 600 रुपये से बढ़ाकर 5000 रुपये, टैक्सी या अन्य व्यापारिक हल्के मोटर वाहन (कमर्शियल एलएमवी) का 1000 रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये तथा मीडियम और हैवी गुड्स वाहन (ट्रक) एवं पैसेंजर वाहन (बस) का पंजीयन शुल्क 1500 रुपये से बढ़ाकर 20 हजार रुपये करने का प्रस्ताव है।जबकि पुराने वाहनों का पंजीयन नवीनीकरण शुल्क 50 रुपये की जगह 2000 रुपये, थ्री ह्वीलर का 300 रुपये के बजाय 10 हजार रुपये, कार या एलएमवी (पर्सनल) का 600 रुपये के बजाय 15 हजार रुपये, टैक्सी या एलएमवी (कमर्शियल) का 1000 रुपये के बजाय 20 हजार रुपये तथा मीडियम एवं हैवी गुड्स वाहन (ट्रक) व पैसेंजर वाहन (बस) का पंजीयन नवीकरण शुल्क 1500 रुपये से बढ़ाकर 40 हजार रुपये करने का प्रस्ताव है।बैट्री चालित इलेक्टि्रक वाहन तथा ह्वीकल स्क्रैपेज योजना के तहत पुराने के बदले नया वाहन खरीदने वालों को ये शुल्क नहीं देने पड़ेंेगे। 15 वर्ष से अधिक पुराने वाहन की रजिस्ट्रेशन रिन्यूवल फीस को 27 गुना करने के साथ साल में दो बार इनकी फिटनेस जांच व सर्टिफिकेट अनिवार्य करने का प्रस्ताव है। इनका फिटनेस सर्टिफिकेट शुल्क भी बढ़ाया जाएगा। वक्त पर फिटनेस जांच न कराने पर रोजाना 50 रुपये के हिसाब से हर्जाना देना होगा।इंडियन फाउंडेशन आफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग के संयोजक एसपी सिंह ने कहा कि ऐसा लगता है कि आर्थिक सुस्ती के संकेतों से घबराकर सरकार ऑटोमोबाइल उद्योग के दबाव में आ गई है। अपनी हालत सुधारने के लिए ऑटोमोबाइल उद्योग अरसे से सरकार पर पुराने वाहनों को खत्म करने का दबाव डाल रहा है। जबकि खराब हालत के लिए उद्योग का कुप्रबंध जिम्मेदार है।यदि देश का फिटनेस जांच तंत्र सही हो तो पुराने वाहनों को हटाने के बजाय फिटनेस सर्टिफिकेट के साथ छोटे शहरों, कस्बों व गांवों में बखूबी चलाया जा सकता है। इन्हें बंद करने से हजारों ट्रांसपोर्टरों का धंधा बंद हो सकता है।अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एपPosted By: Bhupendra Singh
Source: Dainik Jagran July 28, 2019 17:03 UTC