न्याय स्थापित करने की नौ दिवसीय वर्कशॉप है नवरात्र - News Summed Up

न्याय स्थापित करने की नौ दिवसीय वर्कशॉप है नवरात्र


हफीज किदवईत्याग से शक्ति तक और धन से विद्या तक चलने वाले दिन शुरू हो गए। यानी नवरात्र की भीनी-भीनी सुगंध में यह धरती नहाने लगी है। शक्ति के सभी स्वरूपों एकीकृत करने वाला यह त्योहार हमारे घरों की चौखट तक पहुंच चुका है। अब हमें तय करना है कि इसकी आहट को अपने हृदय में स्थान देकर उसे और विशाल बनाना है या फिर उसे बिना सुने निकल जाने देना है। नवरात्र के ये दिन हर आत्मा के लिए ऐसी नौ दिवसीय वर्कशॉप है, जिससे उसमें पवित्रता आती है, सत्य अपना उचित स्थान पाता है, न्याय सम्मान पाता है, धर्म विशाल होकर शुद्धता की ओर बढ़ता है। नवरात्र केवल गुजर जाने वाले दिनों का नाम नहीं है, बल्कि खुद को निखारने वाले वक्त का नाम नवरात्र है।हर धर्म में त्याग और समर्पण के मूल्यों को व्रत से जोड़ा गया है। वैसे ही नवरात्र भी आत्मा में त्याग, सहिष्णुता और समर्पण के मूल्यों को बढ़ाने के लिए आते हैं। व्रत वैसे भी आत्मा को शुद्ध करने वाली प्रैक्टिस है, जिससे शरीर तो पवित्रता पाता ही है, मन भी आत्मिक मूल्यों की ओर बढ़ने का मार्ग पा जाता है। शक्ति स्वरूप में विभिन्न देवियों की पहचान में बंटे हुए ये नौ दिन हमें एक करने के लिए ही तो हैं। हर शक्ति हमें न्याय की ओर ही तो खड़ा देखना चाहती है। नवरात्र का प्रत्येक दिवस त्याग और प्रेम का ही तो पर्याय है। सबसे बढ़कर नवरात्र के दिन हमें मानवसेवा की ओर ले जाने के लिए है। आप शक्ति की पर्याय हर देवी को देखिए, वह मानव को कुछ न कुछ देने की कोशिश कर रही हैं, ताकि आप और हम पूर्णता की ओर बढ़ सकें।नवरात्र के अध्यात्म में गुंथी दो बातें जरूर हमें गांठ बांध लेनी चाहिए। इनके बिना आध्यात्मिक सीढ़ी नहीं चढ़ी जा सकती। नवरात्र हमें जो पहली बात सिखाता है, वह है न्याय। न्याय धर्म की पहचान है। शक्ति का मूलकर्म न्याय की ही स्थापना करना है। जो भी इस मार्ग से डिगेगा, वह नवरात्र के वास्तविक अर्थों से ही नहीं, बल्कि इसके आध्यात्मिक स्वाद से भी चूक जाएगा। दूसरी बात है, अहंकार से दूरी। नवरात्र जाते-जाते जो सबसे बड़ा मंत्र दे जाते हैं, वह है अहंकार का विनाश। जिस शरीर में अहंकार जन्म लेगा, उसका विनाश तय है। यह विनाश ऐसा होगा, जिसमें निर्माण का कोई बीज रह ही नहीं जाएगा।नवरात्र को यूं ही मत गुजर जाने दो। नवरात्र के प्रत्येक दिन को अपनी एक बुराई को मिटाने और अपने अंदर अच्छाई का एक बीज बोने का दिन बनाओ। बुराई का अंत और अच्छाई की जीत ही नवरात्र का मूलमंत्र है। एक दूसरे से नफरत मिटा दो, प्रेम को प्रमुख स्थान दो, त्याग को अपना लो और अहंकार को दूर रखो। शक्ति स्वरूपा सभी मां अपने बच्चों को एक साथ बैठकर मुस्कराते हुए देखना चाहती हैं। किसी भी मां के लिए उसके बच्चों का आपस में झगड़ना, नफरत करना, एक दूसरे को बर्दाश्त न करना दुखी बना देता है।इस शारदीय नवरात्र में हम एक व्रत यह भी लें कि मां शैलपुत्री, मां सरस्वती, मां लक्ष्मी, मां दुर्गा, मां काली जैसी विभिन्न शक्तियों वाली देवियों में मां का जो एक सूत्र है, उसे संसार की हर स्त्री जाति में देखें। और उनके पुत्र के रूप में कृतज्ञ होने का मूलमंत्र अपना लें। ऐसा विचार विकसित होने पर ही सभी देवियों में गुंथे मां के आशीष को हम प्राप्त कर सकेंगे।


Source: Navbharat Times October 19, 2020 05:44 UTC



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