जिस देश में बच्चियों की पूजा, वहीं मासूमों से दुष्कर्म बढ़ना चिंताजनक: हाई कोर्ट - News Summed Up

जिस देश में बच्चियों की पूजा, वहीं मासूमों से दुष्कर्म बढ़ना चिंताजनक: हाई कोर्ट


इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने चार वर्ष की बच्ची के साथ दुष्कर्म के आरोपित की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। साथ ही ट्रायल एक साल में पूरा करने का निर्देश दिया है।विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि जिस देश में बच्चियां पूजी जाती हैं, वहां इनके साथ दुष्कर्म जैसा घृणित अपराध हो रहा है। ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। यह केवल पीड़िता ही नहीं, समाज के विरुद्ध गंभीर अपराध है। अनुच्छेद 21 में मिले जीवन के मूल अधिकारों का हनन है। यदि सही निर्णय नहीं लिया गया तो न्याय व्यवस्था से जनता का विश्वास उठ जाएगा।कोर्ट ने कहा कि जिस बच्ची को अपराध का मतलब नहीं मालूम, उसके साथ दुष्कर्म की कोशिश की गई। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने कटघर, मुरादाबाद निवासी अभियुक्त अहसान की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया है।प्राथमिकी के अनुसार दुष्कर्म की कोशिश की गई थी। याची ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा है कि उसे झूठा फंसाया गया है। 21 अप्रैल की घटना की प्राथमिकी छह दिन बाद 27 अप्रैल को लिखाई गई है। देरी का कारण नहीं बताया है। वह 31 मई से जेल में बंद है। याची का कहना है कि उसने शिकायतकर्ता के चालक वसीम के खिलाफ शिकायत की थी। वह गलत काम के बाद भागकर मेरे घर में घुस गया। पीड़िता के दोनों बयानों में विरोधाभास की बात भी की गई।मुकदमे से जुड़े तथ्यों के अनुसार 21 अप्रैल 2024 को बच्ची घर के बाहर गई थी। लोगों ने परिवार को बताया कि याची उसे जबरन साथ ले गया है। परिवार वालों ने लड़की की तलाश शुरू की। रेलवे गेट क्रासिंग के पास परिवार वालों को देख याची भाग खड़ा हुआ। बच्ची बेहोश व निर्वस्त्र थी। शरीर पर कई चोटें थीं।कहा गया कि मेडिकल रिपोर्ट में अंदरुनी व बाहरी कोई चोट नहीं मिली जबकि प्राथमिकी में शरीर पर चोटों का जिक्र है। याची ने अपने खिलाफ चार आपराधिक केस बताए हैं। सरकारी वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा -अपराध जघन्य है। आरोपित जमानत पर रिहा किए जाने लायक नहीं है।झारखंड: हाई कोर्ट ने कहा-‘मातृदेवो भव:’, मां के मेडिकल बिल का 25 प्रतिशत दे बेटीइलाहाबाद हाई कोर्ट ने रांची (झारखंड) के अस्पताल में भर्ती मां के इलाज खर्च बिल का 25 प्रतिशत भुगतान बेटी को करने का निर्देश दिया है। बेटी ने याचिका दाखिल कर अपनी मां की देखभाल करने संबंधी विवाद निपटाने की मांग की है। अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी। रहीम के दोहा और तैत्तिरीय उपनिषद की शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा- ‘मातृ देवो भवः’... ‘क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात।’ इसे याद रखें।याची (बेटी) संगीता कुमारी ने परिवार अदालत के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उसे अपनी मां की देखभाल के लिए प्रति माह आठ हजार रुपये भुगतान करने का निर्देश दिया गया है। मां ने बेटी से गुजारा भत्ता की मांग करते हुए परिवार अदालत के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत आवेदन दायर किया था। याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि चार अन्य बेटियां भी हैं। उन्हें भी संपत्तियों में हिस्से आवंटित किए गए हैं। जब मां की देखभाल बात आई तो मां ने केवल याची से ही गुजारे की मांग की है न अपनी अन्य बेटियों से, जो अनुचित है।परिवार अदालत ने याची को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। याची ने आदेश वापस लेने की अर्जी दी। परिवार अदालत ने आदेश वापस लेने से इन्कार कर दिया। गुजारा भत्ता देने व अर्जी खारिज करने के आदेशों को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। कोर्ट ने सौहार्दपूर्ण ढंग से मसला सुलझाने की उम्मीद जताई। याची बेटी को निर्देश दिया कि वह मां के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करे और चिकित्सा खर्च की बकाया राशि का कम से कम 25 प्रतिशत भुगतान करे।


Source: Dainik Jagran October 15, 2024 18:49 UTC



Loading...
Loading...
  

Loading...