जिसने पत्नी के लिए घर को हॉस्पिटल में तब्दील किया; कमरे को आईसीयू बनाया, वेंटीलेटर लगाया, कार को एंबुलेंस बना दिया - Dainik Bhaskar - News Summed Up

जिसने पत्नी के लिए घर को हॉस्पिटल में तब्दील किया; कमरे को आईसीयू बनाया, वेंटीलेटर लगाया, कार को एंबुलेंस बना दिया - Dainik Bhaskar


Hindi NewsDb originalGyan Prakash: Jabalpur Ordnance Factory Retired Mechanical Engineer Converts His House Into Hospitalकहानी 74 साल के बुजुर्ग की: जिसने पत्नी के लिए घर को हॉस्पिटल में तब्दील किया; कमरे को आईसीयू बनाया, वेंटीलेटर लगाया, कार को एंबुलेंस बना दियानई दिल्ली 6 घंटे पहले लेखक: विकास वर्माकॉपी लिंकवीडियोबुजुर्ग कहते हैं, ‘वाइफ को हर मिनट चार लीटर ऑक्सीजन की जरूरत होती है, हर हफ्ते 2 सिलेंडर मंगाते हैं, अभी कोरोना के वक्त थोड़ी दिक्कत हुई थी तो कलेक्टर, एसपी को आवेदन देना पड़ाबोले- इंजीनियर हूं और इंजीनियर वो होता है, जो हर काम कर लेता है, मैं लगातार पल्स ऑक्सी मीटर से ऑक्सीजन मॉनीटर करता हूं और उसके मुताबिक ऑक्सीजन सप्लाई रेग्यूलेट करता हूंटि्वटर पर एक 74 बरस के बुजुर्ग शख्स ने एक फोटो शेयर किया, इस फोटो में वो अपनी 72 साल की वाइफ की सेवा करते नजर आ रहे थे। उन्होंने अपनी वाइफ के लिए घर को हॉस्पिटल में तब्दील कर दिया। जहां ऑक्सीजन सिलेंडर से लेकर वेंटीलेटर तक सब कुछ मौजूद था, दिलचस्प यह है कि यह सब उसी शख्स ने किया और उसका मैनेजमेंट भी वही कर रहे हैं। यह शख्स कोई क्वालीफाइड डॉक्टर नहीं, बल्कि एक रिटायर्ड इंजीनियर हैं। नाम है ज्ञान प्रकाश, मध्य प्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। हमने उनसे बात की तो उन्होंने इस फोटो के पीछे की पूरी कहानी शेयर की।अपनी वाइफ कुमुदिनी श्रीवास्तव के साथ ज्ञान प्रकाश।बार-बार हॉस्पिटल जाना पड़ता था तो घर को ही हाॅस्पिटल में तब्दील कर लियाज्ञान की वाइफ कुमुदिनी श्रीवास्तव की उम्र 72 साल है। ज्ञान बताते हैं कि ‘मेरी वाइफ को पिछले चार सालों से अस्थमा की बीमारी है। कई बार उन्हें हॉस्पिटल में भी एडमिट कराना पड़ता था और कुछ दिनों बाद उनको डिस्चार्ज किया जाता था। यह प्रक्रिया पिछले चार सालों से लगातार चल रही थी। पिछले साल सितंबर में जब मेरी वाइफ हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने वाली थीं तो मैंने उससे पहले ही अपने घर में हॉस्पिटल का पूरा सेटअप तैयार कराया। सबसे पहले ऑक्सीजन पाइपलाइन की फिटिंग कराई। फिर एक कमरे को आईसीयू में तब्दील किया। यहां सक्शन मशीन, नेबुलाइजर, एयर प्यूरीफायर और वेंटिलेटर भी है। कुछ दिनों बाद वाइफ को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कराकर घर ले आया।’ज्ञान ने अपनी कार में ऑक्सीजन फिटिंग कराकर सिलेंडर लगवाए हैं, कार को पूरी तरह एंबुलेंस में तब्दील कर लिया है। उन्हें जब भी कभी इमरजेंसी में वाइफ को अस्पताल लेकर जाना होता है तो इसी से जाते हैं।ज्ञान कहते हैं कि हॉस्पिटल में मरीज को वहां से इंफेक्शन मिलता है, लेकिन घर पर ऐसा नहीं है। हां, कभी-कभी इमरजेंसी में अस्पताल जाना पड़ता है, लेकिन अभी हॉस्पिटल से ज्यादा अच्छे तरीके से वो घर पर अपनी वाइफ की देखभाल कर पा रहे हैं। वाइफ को प्रति मिनट चार लीटर ऑक्सीजन की जरूरत होती है। हर हफ्ते 2 सिलेंडर मंगाते हैं, एक साल से सप्लाई चल रही तो सिलेंडर समय पर आ जाता है । अभी कोरोना काल में थोड़ी दिक्कत हुई थी तो कलेक्टर, एसपी को आवेदन दिया, फिर उन्होंने तत्काल सप्लायर को कॉल करके हमें ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध कराया।यह सब कैसे किया? इस सवाल के जवाब पर वे कहते हैं- ‘मैं इंजीनियर हूं, और इंजीनियर वो होता है, जो हर काम कर लेता है। मैं लगातार पल्स ऑक्सी मीटर से ऑक्सीजन मॉनीटर करता हूं और उसके मुताबिक ही ऑक्सीजन सप्लाई को रेग्यूलेट करता हूं।ज्ञान प्रकाश कहते हैं कि 'मेरे पास हर तरह के टूल्स हैं, मैं हर तरह का काम घर पर कर लेता हूं।'मैकेनिकल प्रोडक्शन के एक्सपीरियंस को मेडिकल ऑपरेशन थिएटर में लेकर आएज्ञान बताते हैं ‘मेरी उम्र 74 बरस है, कानपुर में पैदा हुआ था। 9वीं क्लास में मेरे टीचर थे शिवनारायण दास जायसवाल ‘गांधी जी’ । जब हम लोग कुछ काम नहीं कर पाते थे तो वो खुद को सजा देते थे, क्योंकि उनका मानना था कि अगर शिक्षक होकर वो किसी विद्यार्थी को सही तरीके से समझा नहीं पाए, तभी उस विद्यार्थी ने वो काम नहीं किया होगा। ज्ञान ने अपने टीचर की इसी बात को अपने जीवन की प्रेरणा बना लिया। ज्ञान ने बतौर फॉरेस्ट रेंजर वन ज्वाइन किया, लेकिन कुछ साल बाद वो जबलपुर ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में बतौर इंजीनियरिंग अप्रेंटिस आए। यहां चार साल तक मैकेनिकल इंजीनियरिंग में भी रहे। ज्ञान कहते हैं ‘यहां मैंने बहुत कुछ सीखा, वो अनुभव मेरे जीवन में अब तक काम आ रहा है। मैं अपने मैकेनिकल प्रोडक्शन के एक्सपीरियंस को मेडिकल ऑपरेशन थिएटर में लेकर गया और उसी की बदौलत आज मैं घर पर ही अपनी वाइफ काे अस्पताल जैसा माहौल दे पा रहा हूं।ज्ञान कहते हैं कि जब से वाइफ बेड पर आई हैं, तब से अपना रूटीन भी बदल लिया है। अब वो सुबह उठकर सबसे पहले वाइफ को गर्म पानी पिलाते हैं और खुद भी पीते हैं। फिर वाइफ को पॉट पर ही टॉयलेट कराते हैं। फिर दोनों के लिए चाय बनाते हैं, बीच-बीच में ऑक्सीजन सप्लाई को मॉनिटर करते हैं और फिर दवाई भी खिलाते हैं। हालांकि, उन्होंने एक परमानेंट नर्स को भी रखा है, जो इंजेक्शन और ड्रिप लगाने का काम करती है। ज्ञान कहते हैं कि ‘मैं उनके बेड के पास ही अपने टैब पर फेसबुक, टि्वटर यू-ट्यूब भी देखता हूं। इसी की मदद से वो खबरें पढ़ते हैं, सु्प्रीम कोर्ट में चार जनहित याचिकाएं लगाई हैं, उनका अपडेट भी लेते रहते हैं। ज्ञान बड़े फख्र से कहते हैं कि ‘मेरे पास हर तरह के टूल्स हैं, मैं हर तरह का काम घर पर कर लेता हूं। अभी वेटीलेंटर का मास्क टाइट था तो उसके बेल्ट को भी खुद ही मॉडीफाई किया।जब पहली बार वाइफ बीमार हुईं तो डिप्रेशन में चले गए थेज्ञान की वाइफ जब पहली बार साल 2016 में बीमार हुई थीं तो वो भी डिप्रेशन में चले गए थे। तब उन्होंने डिप्रेशन से बाहर आने के लिए योग का सहारा लिया थाा। जब से वाइफ के लंग्स फेलियर हुए तो वो पूरी तरह ऑक्सीजन नहीं ले पाती हैं। इस स्थिति को रेस्पेरेटरी फेलियर सीओटू नॉर्कोसिस कहते हैं। ऐसे स्थिति में मरीज को हमेशा ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखना होता है। ज्ञान कहते हैं कि जवानी में तो सब मैनेज हो जाता था


Source: Dainik Bhaskar October 09, 2020 00:40 UTC



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