सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने व्यभिचार-रोधी कानून को रद्द कर दिया है और कहा है कि व्यभिचार अपराध नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि यह तलाक का आधार हो सकता है लेकिन यह कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है. कोर्ट ने कहा कि पति महिला का मालिक नहीं है और जो भी व्यवस्था महिला की गरिमा से विपरीत व्यवहार या भेदभाव करती है, वह संविधान के कोप को आमंत्रित करती है. कोर्ट ने कहा कि यह कानून महिला की चाहत और सेक्सुअल च्वॉयस का असम्मान करता है. इस मामले की शिकायत किसी पुलिस स्टेशन में नहीं की जाती है बल्कि इसकी शिकायत मजिस्ट्रेट से की जाती है और कोर्ट को सबूत पेश किए जाते हैं.- केंद्र सरकार ने IPC की धारा 497 का समर्थन किया था.
Source: NDTV September 27, 2018 06:02 UTC