जब टिकट के पैसे न होने की वजह से स्‍वामी विवेकानंद को ट्रेन से बीच में ही उतरना पड़ा - News Summed Up

जब टिकट के पैसे न होने की वजह से स्‍वामी विवेकानंद को ट्रेन से बीच में ही उतरना पड़ा


संकलन : गोपाल अग्रवालहाथरस स्टेशन पर स्वामी बैठे थे। आखिरी गाड़ी जा चुकी थी। प्लेटफॉर्म सुनसान हो गया था। ड्यूटी समाप्त कर घर जा रहे असिस्टेंट स्टेशन मास्टर शरद गुप्त ने स्वामी को देखा तो पूछा, ‘महाराज कहां से आ रहे हैं, कहां जाना है?’ स्वामी ने उत्तर दिया, वृंदावन से आ रहा हूं, हरिद्वार जाना है। ‘तो फिर आप यहां बीच में कैसे उतर गए?’ स्वामी ने उत्तर दिया, ‘पैसे पूरे टिकट के नहीं थे, यहीं तक का टिकट बन पाया था।’ शरद ने पूछा, ‘भोजन किया?’ स्वामी ने कहा, ‘पैसे नहीं हैं, कल से भोजन नहीं कर पाया।’ शरद श्रद्धा से अनुरोध कर स्वामी को अपने घर ले गया और उत्तम भोजन कराया।श्रीकृष्ण ने कहा है निर्वस्त्र रहना पाप, लेकिन इस गांव के लोग नहीं पहनते वस्त्रस्वामी के पास भिक्षा के लिए कमंडल और एक झोला था। शरद ने जिज्ञासा से पूछा, ‘थैले में क्या है स्वामी जी?’ स्वामी ने उत्तर दिया कि इसमें एक प्रति गीता है और एक इमिटेशन ऑफ क्राइस्ट है। गीता और ईसाई धर्म की पुस्तिका एक साथ स्वामी के पास होने पर शरद कुछ चौंका, स्वामी समझ गए कि शरद को गीता और इमिटेशन ऑफ क्राइस्ट दोनों के एक साथ होने पर आश्चर्य है। उसकी जिज्ञासा को शांत करते हुए स्वामी ने कहा, ‘मेरे धर्म में संप्रदाय की कोई सीमा नहीं है, हम ईश्वर लाभ के लिए निकले हैं मार्ग का कोई बंधन नहीं है।’जानिए क्‍यों इस बार बेहद अशुभ माना जा रहा है सूर्यग्रहण, देश-दुनिया में हो सकती हैं ये बड़ी घटनाएंवार्तालाप का दौर चल निकला। धर्म, ज्ञान और सांसारिक जीवन की बातें होने लगीं। शरद गुप्ता ने एक सीधा प्रश्न किया, ‘महाराज, संन्यासी जीवन में किन वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है?’ स्वामी ने कहा, ‘आवश्यकता तो व्यक्ति की होती है, संन्यासी जीवन की नहीं।’ यह स्वामी विश्व प्रसिद्ध संत व सत्य तथा ईश्वर की खोज करने वाले स्वामी विवेकानंद थे। वह सत्य का आचरण करते हुए संन्यासी जीवन को जीने वाले संत थे।


Source: Navbharat Times June 19, 2020 07:07 UTC



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