चुनावी विश्लेषण / कृषि प्रधान देश बाद में घोटाला प्रधान, फिर कुर्सी प्रधान अब चुनाव प्रधान बन गया है - News Summed Up

चुनावी विश्लेषण / कृषि प्रधान देश बाद में घोटाला प्रधान, फिर कुर्सी प्रधान अब चुनाव प्रधान बन गया है


आया राम-गया राम से लेकर पूरी सरकार के दल बदलने वाली सियासत में चुनाव एक त्यौहार हैDainik Bhaskar Sep 30, 2019, 06:33 AM ISTबचपन में पढ़ा था कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। बाद में पता चला कि भ्रष्टाचार और घोटाला प्रधान देश है। फिर हमने और उन्नति की और हम कुर्सी प्रधान देश हो गए। अब मुझे लगता है कि भारत एक चुनाव प्रधान देश है क्योंकि कुर्सी तो एक को ही मिलती है पर चुनाव तो वो भी लड़ते हैं जिन्हें पता होता है कि उनकी ज़मानत जब्त होगी।पिछले चुनाव में तो एक उम्मीदवार को एक भी वोट नहीं मिला। घर जाकर उसने अपनी पत्नी से झगड़ा किया कि तुम्हारा चक्कर किसी दूसरे नेता के साथ है। उसका तर्क भी जायज़ था, उसने पत्नी से कहा- “मुझे तुम पर पहले से ही शक था इसलिए मैंने अपना वोट भी ख़ुद को नहीं दिया, वरना तुम कह देती कि ये मेरा दिया हुआ ही वोट है। मुझे चुनाव में एक भी वोट नहीं मिला, इसका मुझे इतना दुःख नहीं जितनी इस बात की ख़ुशी है कि तुम्हारी चोरी पकड़ी गयी। किन-किन कारणों से लोग चुनाव लड़ते हैं ये भी एक शोध का विषय है। किसी को मुहल्ले में धाक जमानी होती है, तो किसी को पहचान का संकट है। कोई हार कर जीतने वाले दल में शामिल हो कर अपना कैरियर बनाना चाहता है और कोई-कोई तो ऐसा है जो ये सोचकर चुनाव लड़ता है कि ख़ाली बैठे थे, सोचा चुनाव ही लड़ लूँ।मैंने एक नेताजी से पूछा -“आप चुनाव क्यों लड़ रहे हैं?”“देश सेवा के लिए। ““पिछला चुनाव भी आपने देश सेवा के लिए ही तो लड़ा था!”“हाँ... हाँ।”“फिर देश सेवा क्यों नहीं की?”“क्या करूँ, फिर लोकसभा के चुनाव आ गए, फिर राज्य सभा के। अभी साँस भी नहीं आयी थी कि नगर निगम और पंचायत के चुनाव आ गए। कुछ करने की सोचता उससे पहले अपने ही राज्य के चुनाव आ गए। देश सेवा का समय ही नहीं मिला। फिर भी जितना समय मिला मैंने देश की कुछ तो सेवा की ही है।”मैंने कहा- “क्या देश सेवा की है आपने? अपने परिवार को ही ऊपर उठाया है।”वो बोले- “परिवार से ही देश बनता है, मैंने कम से कम दस परिवारों को तो ग़रीबी की रेखा से ऊपर उठा दिया। इतने कम समय में ये क्या कम योगदान है?”नेताजी के तर्क के आगे मैं मौन था। किसी भी नेता के तर्क के आगे जनता मौन ही हो जाती है। जनता का काम है वोट देना और फिर मौन हो जाना। जनता को हर दिन ये समझाया जाता है कि वोट देना उसका कर्तव्य है। वोट देने के बाद सवाल करना देशद्रोह की श्रेणी में आता है। इसलिए हम बड़ी शिद्दत से वोट देते हैं।हरियाणे का एक बुजुर्ग वोट देने गया तो ड्यूटी पर तैनात सरकारी कर्मचारी बोला- “ताऊ राम -राम!”“राम राम भाई, देखिए तेरी ताई वोट डाल गयी के?”कर्मचारी ने पर्चियों और वोटर लिस्ट का मिलान करके बताया - “हाँ!”“ओह ! इस बार फेर देर तै आया मैं, थोड़ी तावली आ जाता तो तेरी ताई तै मिल लेता।” -ताऊ ने अफ़सोस करते हुए कहा।“क्यों ताऊ, ताई तेरे गैल न रहती?”“ना भाई, उसे मरे तो पंद्रह साल हो लिए पर हर बार वोट मेरे तै पहले घाल जा सै।”एक और दृश्य मैंने देखा। ट्रैक्टर -ट्राली चलाते एक किसान से नेताजी के चमचे ने कहा - “फलाने को वोट देना!”किसान खीझते हुए बोला-”दे देंगे, और तो म्हारे धोरे कुछ बचा कोन्या। बस या वोट बच रही सै इसने भी तम ही ले लो।”आया राम और गया राम से लेकर पूरी सरकार के दल बदलने वाले हरियाणे में चुनावी त्यौहार आ रहा है। आओ लोकतंत्र के इस त्यौहार में हम भी नाचते-गाते वोट डाल आयें और फिर अगले त्यौहार की प्रतीक्षा करें क्योंकि भारत एक चुनाव प्रधान देश है।


Source: Dainik Bhaskar September 30, 2019 01:05 UTC



Loading...
Loading...
  

Loading...